रतन टाटा की आखिरी इच्छा जानकर किसी को नहीं हुआ यकीन जाते-जाते हिंदू राष्ट्र में खुद की आहुति दे गए सटाटा पारसी धर्म से आते थे टाटा तो फिर हिंदू रीति रिवाज से क्यों हुआ अंतिम संस्कार वजह कर देगी हैरान आखिरी इच्छा इससे भी अलग जाते-जाते दो काम ऐसा कर गए 200 सालों तक याद रखेगा हिंदुस्तान हॉस्पिटल में आखिरी एक घंटे का असर सुनकर आप रो देंगे रतन टाटा की कामयाबी से ज्यादा उनकी इंसानियत पर हर किसी को यकीन है आखिरी वक्त में जब उनके पास वक्त कम बचा था तो वह उस वक्त में क्या कर रहे थे.
उनके पास कौन-कौन था उनकी आखिरी इच्छा क्या थी 86 साल की उम्र में देश को झूठ बोल रहे थे कि फिट है लेकिन उनको गंभीर बीमारी थी देश में कोई हलचल ना पैदा हो इसलिए उन्होंने डॉक्टरों और अपनों से कैसी बांग कर ली जिस पर किसी को यकीन नहीं हो रहा था यह भी कैसा इत्तेफाक है 86 साल की उम्र में रतन टाटा को जिस पे सबसे ज्यादा यकीन था उस बच्चे की उम्र 30 साल है दोस्ती उनको पसंद थी जानवर हो इंसान उनकी दोस्ती की कहानी बहुत है लेकिन अस्पताल की वह कहानी एकदम अलग है रतन टाटा के पास उस वक्त सिर्फ चार लोग मौजूद थे.
जबकि उनके साथ डॉक्टरों की टीम थी आईसीयू में जाने से पहले आखिरी बार उनकी बातचीत हुई आईसीयू में जाने के बाद वह दोबारा ना आंख खोल पाए ना ही वह कभी बोल पाए लेकिन उसके पहले उन्होंने एक ऐसी शर्त रखी वहां बावजूद हर कोई चौक गया आखिरी वक्त में जब इंसान कुछ मांगता है तो उसे कोई मना नहीं करता है रतन टाटा का जन्म पारसी धर्म में हुआ था लेकिन उनकी मांग थी कि उनका अंतिम संस्कार पारसी धर्म के मुताबिक के साथ हिंदू धर्म के साथ भी होना चाहिए पिछले 10 सालों में शांतन नायडू रतन टाटा के खास दोस्त बन गए जिन परे उन्हें सबसे ज्यादा यकीन है.
शांतन की उम्र 30 साल है वो उनके आखिरी वक्त में हॉस्पिटल में मौजूद थे रतन टाटा और शांतनु की मुलाकात के पीछे भी जानवर ही जरिया था शांतन नायडू जानवरों के लिए काम करते थे इसी बीच उनकी मुलाकात 2014 में रतन टाटा से हो जाती है रतन टाटा से मिलने के बाद शांतन नायडू ने मोटो पज नाम की एक संस्था बनाई यह संस्था सड़कों पर घूमने वाले आवारा कुत्तों की मदद करती है 17 शहरों में 250 से ज्यादा कर्मचारी काम कर रहे हैं.
यह कैसा संयोग है हर किसी की आंखें भरा आएंगी शांतन नायडू ने जो लिखा है वह पढ़कर आप कैसे से यकीन करेंगे लोग कहते हैं दोस्ती अपने उम्र के लोगों से की जाती है लेकिन यहां 50 साल से ज्यादा अंतर है ताता के निधन के बाद शंतनु लिखते हैं अपनी मित्रता के बारे में लिखते हुए कहा इस दोस्ती ने अब मेरे अंदर जो खालीपन पैदा किया है मैं अपनी बाकी की जिंदगी उसे भरने की कोशिश में बिता दूंगा प्यार के लिए दुख की कीमत चुकानी पड़ती है अलविदा मेरे प्यारे लाइट हाउस उन्होंने एक पुरानी तस्वीर भी शेयर की जिसमें वह दोनों साथ में दिखाई दे रहे हैं.
रतन टाटा की आखिरी इच्छा थी कि उनका अंतिम संस्कार हिंदू रीति रिवाज से ही होना चाहिए अंतिम संस्कार की कई विधियां हिंदू रीति रिवाज से ही होंगी तो वहीं बह पर कपड़ा रखने का पारसी विधान भी होगा रतन टाटा का अंतिम संस्कार विद्युत सौदा गृह में ही किया जाएगा रतन टाटा का यह एहसान कभी कोई हिंदू नहीं उतार पाएगा जाते-जाते उनका आखिरी संदेश भी सुनिए आज की तारीख से लगभग 120 साल पहले जब झारखंड अविभाजित बंगाल का हिस्सा होता था.
उस समय काली माटी नामक जगह पर जमशेद जी नसर वान जी टाटा ने एक सपना देखा था आदिवासियों की बस्ती साकची में टाटा कंपनी की न्यू रखी गई टाटा समूह ने काली माटी में टिस्को की स्थापना करने की सोच पैदा की वहां से जो सफर शुरू हुआ वह रतन टाटा पे आकर फिलहाल ठहर गया जमशेदपुर में शायद ही किसी के घर आज खाना बना होगा गरीबों के लिए महंगे अस्पताल के बजाय रतन टाटा ने अपनी जिंदगी में कई अस्पताल बनवाए ताकि आब इंसान आराम से इलाज करवा पाए पूरी जिंदगी कंपनी और देश की सेवा में खपा दिया.
कुछ लोग ही उनकी जिंदगी में ऐसे थे जिनसे वह खुलकर बात करते थे जिनमें से एक थे नरेंद्र मोदी हालांकि किस्मत का खेल देखिए रतन टाटा की मौत के बाद भी उनके सबसे खास नरेंद्र मोदी नहीं पहुंच पाए वो इसलिए क्योंकि उनका विदेशी दौरा था विदेशी दौरा रद्द करना पहाड़ चढ़ने जैसा होता है इसीलिए अमित शाह उनकी अंतिम यात्रा में बार-बार दिखाई दिए एक शताब्दी का अंत हो चुका है रतन टाटा की जिंदगी का सच किताबों में जोड़ना चाहिए ताकि हमारी आने वाली पीढ़ियां समझ पाए कामयाबी से भी बड़ी कामयाबी होती है.