वो दौर था 1960 का जब बॉलीवुड एक नई करवट ले रहा था काली सफेद फिल्मों से रंगीन सपनों की दुनिया की ओर कदम बढ़ा रहा था हमारा सिनेमा और इसी बदलते दौर में बड़े-बड़े पोस्टर्स पर एक चेहरा उभरने लगा था एक ऐसा चेहरा जो जैसे सीधे दिल में उतर जाए मनोज कुमार ना ना कोई तामझाम ना कोई दिखावा एकदम सीधा साधा लड़का उसकी आंखों में कुछ ऐसा गहरापन था कि जैसे बरसों की कोई कहानी छुपी हो और चेहरे पर मासूमियत से भी बढ़कर एक दर्द जो शब्दों से नहीं बस महसूस किया जा सकता था.
वो दर्द ऐसा था जो पर्दे से निकल कर सीधे लड़कियों के दिलों में उतर जाता था कॉलेज की दीवारों पर उनके पोस्टर चिपकते और लड़कियां तकरार करती कि किसे ज्यादा पसंद है मनोज कुमार जी लेकिन दोस्त क्या आप जानते हैं पर्दे पर भले ही उन्होंने बार-बार भारत का किरदार निभाया हो एक देशभक्त एक आदर्श बेटा एक सच्चा नागरिक लेकिन असली जिंदगी में उनका दिल उनके जज्बात उनकी मोहब्बत किसी एक खास शख्स के लिए धड़कती थी.
हां एक ऐसी मोहब्बत थी उनकी जिंदगी में जो फिल्मों से भी ज्यादा फिल्मी थी अब कहानी तो यहीं से शुरू होती है दिल की वह बात जो कभी खुलकर कही नहीं गई पर उसकी धड़कनें उनके हर किरदार में सुनाई देती थी चलिए अब मैं आपको उस मोहब्बत की पूरी कहानी सुनाता हूं कैसे मिले वह दो दिल कहां छुपा था वो इश्क जो पर्दे के पीछे रह गया साल था शायद 19556 का जगह थी दिल्ली यूनिवर्सिटी जहां एक साधारण सपनों से भरा नौजवान पढ़ाई कर रहा था नाम था हरिकृष्ण गोस्वामी हां वही लड़का जिसे आगे चलकर पूरी दुनिया मनोज कुमार के नाम से जानने लगी वो अपनी किताबों में डूबा रहता लेकिन दिल किसी और में उलझा हुआ था हर रोज की तरह जब वो यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी में बैठता तो उसकी नजरें किसी किताब पर नहीं एक लड़की पर टिकी होती थी नाम था उसका मधु क्या कहूं उसके बारे में बिल्कुल वैसे ही जैसे पुराने जमाने के गीतों की कोई मधुर धुन नजरें झुकी हुई चाल में शालीनता और दिमाग इतना तेज कि हर प्रोफेसर तक उसे नोटिस करता मधु रोज लाइब्रेरी में आती अपनी पसंदीदा कोने में बैठती और किताबों में खो जाती और वहीं पास की एक टेबल पर बैठा मनोज कुमार किताब खोले होने का बस दिखावा करता .
असल में वह तो सिर्फ मधु को देखता रहता वो खामोश चाहत थी जिसमें ना कोई फिल्मी डायलॉग था ना किसी तरह की जुबानी जंग बस एक मासूम इंतजार कि कब वो उसे देखे और कब वो लौट जाए फिर एक दिन शायद आसमान में थोड़ा चांद ज्यादा चमक रहा था या फिर मनोज जी के दिल ने डर से लड़ना सीख लिया था उन्होंने हिम्मत करके पहली बार मधु से बात की धीरे से बोले अगर मैं कभी एक्टर बना तो तुम्हें अपनी पहली फिल्म दिखाने जरूर आऊंगा अब देखिए उस पल की खूबसूरती ना कोई घुटनों पर बैठने वाला सीन ना गुलाब का फूल बस एक सच्ची संकोची लेकिन पूरी ईमानदारी से निकली बात मधु मुस्कुरा दी कुछ नहीं कहा ना हां ना बस वो हल्की सी मुस्कान मनोज जी के दिल में हमेशा के लिए बस गई और फिर वक्त ने अपनी रफ्तार पकड़ ली.
कॉलेज खत्म हुआ और जैसे बहुत सी मोहब्बतें बिना मंजिल के रह जाती हैं मधु की शादी हो गई जा गले के फिर हसीना मनोज कुमार जो अब तक दिल में एक सपना और आंखों में एक चेहरा लिए जी रहे थे मुंबई चले आए फिल्मों की दुनिया में अपनी किस्मत आजमाने लेकिन दोस्तों कहते हैं ना कुछ चेहरे वक्त से नहीं मिटते वो चेहरा वो कभी किताबों के पीछे से झांकता था जिसकी मुस्कान बिना कुछ कहे सब कह देती थी वो मनोज जी के दिल में हमेशा जिंदा रही कहानी अधूरी जरूर थी पर उसकी मिठास उम्र भर के लिए बस गई थी तो अब उस वक्त की बात जब मनोज कुमार का सितारा बुलंदी पर था एक-एक करके उनकी फिल्में सुपरहिट होती जा रही थी शहीद ने देशभक्ति का जज्बा जगाया उपकार ने उन्हें भारत कुमार बना दिया और पूरब और पश्चिम ने जैसे उन्हें हिंदुस्तान की आत्मा का चेहरा बना दिया हर तरफ बस एक ही नाम गूंजता मनोज कुमार सादगी का चेहरा गंभीरता की आवाज और दिल से निकला अभिनय लड़कियां तो जैसे दीवानी हो जाती थी कॉलेजों में उनके नाम पर काव्य पाठ होते लड़कियों की डायरियों में उनके फोटो चिपके होते लेकिन इसी चकाचौंध के बीच एक नाम था जो धीरे-धीरे मनोज कुमार से जुड़ने लगा नाम वहीदा रहमान एक और शांत गरिमामई और संजीदा अदाकारा साल था 1971 यानी 1971 फिल्म की शूटिंग चल रही थी रेशमा और शेरा.
राजस्थान की तपती रेत धूल भरे खेत और उस सन्नाटे में एक खामोश रिश्ता जन्म ले रहा था मनोज कुमार और वहीदा रहमान दोनों ही कैमरे के सामने जितने सच्चे थे उतने ही कैमरे के पीछे भी भावनाओं से भरपूर ना कोई इश्क का इजहार हुआ ना कोई मीठे वादे ना ही देर रात की मुलाकातें बस बिना शब्दों की बातें थी बिना छुए जाने वाले एहसास थे वो सीन के बाद एक दूसरे को देखने की झिझकती सी कोशिश वो साथ बैठे-बैठे चुप रह जाना और वो नजरों का एक दूसरे से टकराकर जल्दी से हट जाना जैसे कोई अधूरी कविता जो कभी पूरी नहीं होनी थी लेकिन फिर आई वो हकीकत जिसने उस खामोश रिश्ते को वहीं रोक दिया वहीदा रहमान का दिल किसी और के लिए धड़कता था गुरुदत्त के लिए गुरुदत्त जो खुद एक टूटे हुए कवि जैसे थे और वहीदा जो उन्हें जोड़ने की कोशिश में अपनी दुनिया को अधूरा कर रही थी.
मनोज कुमार यह सब समझते थे वह जानते थे कि मोहब्बत जब किसी और की अमानत हो तो उसे छूना भी गुनाह होता है इसलिए उन्होंने कभी कोई कदम नहीं बढ़ाया ना सवाल किया ना शिकायत की बस एक कोने में बैठकर उस अनकहे एहसास को महसूस करते रहे वो इश्क जिसे सिर्फ दिल से जिया गया जुबान से कभी नहीं और यही तो खास बात थी मनोज कुमार की मोहब्बतों की ना शोर था ना प्रचार बस एक खामोश खूबसूरती याद.
साल था 1972 जब मनोज कुमार की फिल्म शोर रिलीज हुई एक ऐसी फिल्म जो सिर्फ एक बाप और बेटे की कहानी नहीं थी बल्कि खामोशियों में छिपे दर्द की चीख थी फिल्म हिट हुई क्रिटिक्स ने तारीफें की लेकिन जो बात अब मैं बताने जा रहा हूं वो किसी अवार्ड किसी इंटरव्यू या अखबार की सुर्खियों से कहीं ज्यादा गहरी है फिल्म रिलीज के कुछ दिन बाद एक चिट्ठी आई ना कोई नाम ना कोई पता बस एक सफेद लिफाफा और उसमें कागज का एक टुकड़ा उस पर सिर्फ एक लाइन लिखी थी आपका शोर हमारे दिल की आवाज है बस इतना ही लेकिन मनोज कुमार के लिए वह एक लाइन हजार तालियों से कहीं ज्यादा मायने रखती थी कहते हैं उन्होंने उस चिट्ठी को अपने तकिए के नीचे रख लिया ना वो लिफाफा फेंका ना वो कागज हर रात जब वह सोते वो चिट्ठी उनके सिरहाने रखी होती जैसे कोई अपना सिर पर हाथ रखकर कह रहा हो तुम्हें समझा गया है पर आज भी जब उनसे पुराने इंटरव्यूज में पूछा जाता है कि सबसे कीमती चीज क्या है जो आपने अपने करियर में पाई तो वह मुस्कुरा कर कहते हैं वो एक अनाम चिट्ठी क्योंकि एक कलाकार के लिए सबसे बड़ी बात यह होती है कि कोई उसके दिल से निकले काम को दिल से समझे और उस एक लाइन ने बिना नाम के उन्हें यह यकीन दिलाया कि उनकी आवाज किसी के दिल में गूंज रही है.
1965 के उस फिल्मी सेट पर जहां कैमरों की लाइट्स के पीछे रिफ्लेक्टर्स की चमक के बीच एक सच्चे और मासूम इश्क की कहानी चुपचाप जन्म ले रही थी फिल्म थी हिमालय की गोद में मनोज कुमार अपने करियर के एक और शानदार मोड़ पर खड़े थे पहाड़ों की वादियां बर्फ से ढकी चोटियां और उन सबके बीच एक ऐसा इत्तेफाक जो शायद किस्मत ने बड़ी खामोशी से लिखा था और वहीं उनकी नजर पड़ी एक लड़की पर शशला ना कोई हीरोइन ना कोई स्टार बल्कि कैमरा असिस्टेंट की छोटी बहन शशला नाम जितना सीधा उतनी ही वह खुद भी शर्मीली सादगी भरी और जब भी मुस्कुराती तो ऐसा लगता जैसे वादियों में कहीं सूरज हल्का सा झांक गया हो वो सेट पर अक्सर अपने भाई के साथ आती थी चुपचाप एक कोने में बैठती सबको काम करते देखती और जब मनोज कुमार की नजर उस पर पड़ती तो कुछ देर को जैसे सब कुछ ठहर जाता धीरे-धीरे मुलाकातें बढ़ी नजरें मिलने लगी और बिना कहे ही एक अनकहा रिश्ता बन गया.
मनोज कुमार जो पर्दे पर लाखों दिलों को छूने वाले संवाद बोलते थे असल जिंदगी में एकदम खामोश प्रेमी निकले उन्होंने शशला के साथ वक्त बिताया लेकिन वह कभी ज्यादा कुछ कह नहीं पाए फिर एक दिन जब बात शादी तक पहुंचने लगी परिवार के फैसले ने उस प्रेम कहानी की रीड तोड़ दी शशला के घर वालों को यह रिश्ता मंजूर नहीं था फिल्मी दुनिया उनके लिए दूर की डरावनी सी चीज थी और मनोज कुमार के घर वाले भी तैयार नहीं थे क्योंकि वह चाहते थे कि बेटा अब सिर्फ अपने करियर पर ध्यान दें तो मुझे जीना सिखाया इनकी मोहब्बत आज भी मेरे दिल में इस तरह रहती है जैसे शरीर में आत्मा और फिर एक सुबह शशला बिना कुछ कहे चली गई ना कोई विदाई ना कोई आंसू बस एक सन्नाटा मनोज कुमार के लिए वह पल जैसे किसी फिल्म का क्लाइमेक्स हो जहां हीरो अंत में अकेला रह जाता है और उसके बाद मनोज कुमार ने फिर कभी किसी से इजहार नहीं किया उन्होंने अपने दिल के उस पन्ने को हमेशा के लिए बंद कर दिया कई लोग आए कई रिश्ते जुड़ने की बातें हुई .
लेकिन शशला की जगह कोई नहीं ले सका क्योंकि कुछ मोहब्बतें अधूरी ही सही लेकिन सबसे सच्ची होती हैं और शायद इसीलिए उनके किरदारों में हमेशा एक हल्का सा दर्द दिखता है क्योंकि असल जिंदगी का वो एक अधूरा चैप्टर हमेशा उनके साथ रहा पर्दे के पीछे एकदम चुपचाप तो अब सुनिए उस मोड़ की कहानी जहां जिंदगी ने एक नया पन्ना खोला एक ऐसा पन्ना जिसमें ना कोई फिल्मी ड्रामा था ना अधूरे प्यार की कसक बल्कि सिर्फ सुकून समझदारी और एक शांत रिश्ता था मनोज कुमार और शशि गोस्वामी का रिश्ता जरा हल्लेह चलो मोरे साजना कुछ साल बीते थे वो पुराने जख्म जो वक्त ने दिए थे धीरे-धीरे भरने लगे थे मनोज कुमार अब भी अकेले थे पर अकेलेपन से थके हुए और तभी उनकी जिंदगी में आई शशि गोस्वामी ना फिल्म इंडस्ट्री से कोई ताल्लुक ना ग्लैमर से कोई नाता बस एक सीधी साधी लेकिन भीतर से बेहद मजबूत महिला जिन्होंने मनोज को सिर्फ उनके नाम से नहीं उनके मन से जाना उनकी शादी जोर शोर से नहीं हुई ना ही मीडिया की चकाचौंध से यह शादी दो ऐसे लोगों की थी जिन्हें दिखावे से नहीं साथ चलने की चाह थी.
शशि ने कभी मनोज कुमार की बीती जिंदगी के पन्ने पलटने की कोशिश नहीं की ना सवाल किए ना जवाब मांगे उन्होंने ना मधु का नाम लिया ना शशला की कहानी दोहराई उनकी दुनिया बस एक ही बात पर टिकी थी आज मनोज कुमार क्या महसूस कर रहे हैं वह उनके अतीत को नहीं उनके वर्तमान को अपनाना चाहती थी और शायद यही बात उन्हें सबसे खास बनाती है एक बार जब दोनों अकेले बैठे थे शशि ने चुपचाप कहा “आपकी आंखें बहुत कुछ कहती हैं ” मनोज कुमार थोड़ा चौंके और फिर एक हल्की सी मुस्कान उनके चेहरे पर आ गई शायद पहली बार किसी ने उन्हें भारत कुमार लेजेंड सुपरस्टार नहीं कहा बल्कि एक इंसान की तरह देखा जिसके अंदर भी अधूरे किस्से हैं जो भी कभी टूटा था जो भी कभी चुपचाप रोया था और मनोज कुमार उस पल में जैसे खुद से मिल पाए उन्हें लगा शायद अब जिंदगी दोबारा शुरू की जा सकती है.
तो दोस्तों हर कहानी सिर्फ पहले प्यार पर खत्म नहीं होती कभी-कभी असली कहानी वहीं से शुरू होती है जहां कोई आपको सिर्फ आपकी पहचान से नहीं आपकी खामोशी से समझने लगता है.
तो एक इंटरव्यू था मंच सजा हुआ था कैमरे भी चालू थे और सवाल पूछने वाला पत्रकार थोड़ा मुस्कुराते हुए बोला सर क्या आपने कभी किसी से प्यार इतना किया है कि आज तक भूल ना पाए हो एक पल को सन्नाटा छा गया मनोज कुमार चुप हो गए ना कोई बनावटी हंसी ना कोई घुमा फिराकर जवाब देने की कोशिश बस नजरें जरा सी झुकाई और फिर धीरे से कहा नहीं भूलता अब तो वो यादें मेरी सांसों में हैं क्या जवाब था यह ना किसी का नाम लिया ना कोई शिकवा ना कोई अफसोस बस इतना कह देना कि अब वो यादें मेरी सांसों में है यह वही कह सकता है जिसने मोहब्बत को सिर्फ जिया हो ना ही उसे दुनिया को दिखाया ना ही उससे रुसवाई की यह कोई फिल्मी डायलॉग नहीं था यह एक ऐसे दिल से निकला सच था जो जिंदगी भर अधूरा रहकर भी मनोज कुमार की रूह का हिस्सा बन चुका था शायद वो मधु की आंखें हो या शशला की चुप्पी या वहीदा रहमान के साथ बिताए वो खामोश पल जो कभी रिश्ते का नाम नहीं बन पाए पर हमेशा दिल के कोने में बसे रहे मनोज कुमार कभी ज्यादा बोलते नहीं थे.
लेकिन जब भी बोलते थे तो ऐसा लगता था जैसे दिल की दीवारें हल्की सी दक रही हो और दोस्तों यही होती है एक सच्चे कलाकार की सबसे बड़ी खूबी वो अपने किरदारों में नहीं अपने खामोश जवाबों में भी कहानियां कह जाता है तो अब चलिए मैं आपको एक ऐसे नाम की दास्तान सुनाता हूं जिसे कभी जुबान ने नहीं दोहराया कभी किसी इंटरव्यू में जिक्र नहीं हुआ और ना ही किसी डायरी के पन्ने पर वो नाम दर्ज हुआ.
लेकिन फिर भी वो नाम मनोज कुमार की रूह में बसा रहा मधु हां वही मधु जो दिल्ली यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी में चुपचाप किताबें पढ़ा करती थी और जिसे मनोज कुमार चुपचाप देखा करते थे एक ऐसा नाम जो कभी उनका नहीं हुआ लेकिन जिसे उन्होंने भी कभी खोने नहीं दिया अब सोचिए जरा एक सुपरस्टार जो लाखों दिलों की धड़कन बना जिसे दुनिया ने भारत कुमार कहा जिसने देशभक्ति और समाज के लिए न जाने कितने किरदार जिए पर उसका अपना दिल कहीं किसी अधूरी मोहब्बत में ही अटका रहा मधु का नाम उन्होंने कभी अपनी डायरी में भी नहीं लिखा क्योंकि शायद लिखते ही वह रिश्ता टूट जाता या फिर शब्दों की हदों में बंध जाता मनोज कुमार ने उस एहसास को दिल में एक मंदिर की तरह रखा जहां हर दिन वह खामोशी से बैठते और बिना कोई पूजा किए बस याद करते और जब भी किसी फिल्म की स्क्रिप्ट में कॉलेज का सीन आता क्लासरूम बेंच लाइब्रेरी या कैंटीन तो मनोज कुमार की आंखों के सामने अचानक वही चेहरा घूम जाता वही नजाकत वही मुस्कान जैसे अतीत की कोई परछाई पर्दे पर लौट आई हो शायद दर्शकों ने कभी नोटिस भी किया हो कि उन सीन में उनकी आंखों में एक अजीब सी नमी होती थी एक गहराई जो अभिनय नहीं थी बल्कि असल इश्क की परछाई थी और यही तो होता है सच्चा प्यार जो ना फोटो में कैद होता है ना ही एल्बम में बस किसी इंसान की आंखों की झलकियों में उम्र भर जिंदा रहता है रेशमा और शेरा की शूटिंग के दौरान रेगिस्तान की रेत पर बैठे मनोज कुमार और वहीदा रहमान बातें नहीं करते थे पर कुछ था जो कहा जाता था शायद दिल की जुबान आपका शोर हमारे दिल की आवाज है बस यही एक लाइन मनोज कुमार आज भी उस खत को पढ़ते हैं क्योंकि उसमें सिर्फ शब्द नहीं थे समझ थी एक कैमरा असिस्टेंट की बहन जो बिना फिल्म का हिस्सा बने मनोज कुमार की जिंदगी की सबसे बड़ी फिल्म बन गई पर किसी ने कट कहा और वह कहानी वहीं रुक गई शादी के बाद जब एक रात शशि ने पूछा क्या आपने कभी किसी से इतना प्यार किया मनोज बोले हां पर वो आज भी मुझ में जिंदा है शशि की आंखें नम थी पर मुस्कुराहट सच्ची थी क्योंकि वह जानती थी जो सच्चा है उसे बांधा नहीं जा सकता हर मोहब्बत एक फिल्म थी जिसका क्लाइमेक्स अधूरा रह गया पर मनोज कुमार की ये अधूरी कहानियां ही उन्हें अमर बनाती हैं.
कई लोग कहते हैं मनोज कुमार और नंदा के बीच कुछ था कोई रिश्ता नहीं पर एक गहराई जो सिर्फ समझने वाले समझ पाते थे एक महिला फैन जो खुद को मनोज कुमार की पत्नी बताने लगी थी हर फिल्म की रिलीज पर वो सबसे आगे बैठती एक दिन उसने कहा मैं तुम्हारी रेशमा हूं मनोज कुमार चौंक गई लेकिन उन्होंने उसे पागल नहीं कहा बल्कि इलाज करवाया क्योंकि उन्होंने कहा कि अगर कोई मेरी फिल्म को इतनी गहराई से जी ले तो उसका दर्द मेरी जिम्मेदारी है जब पत्नी ने कहा तुम आज भी किसी और से मोहब्बत करते हो मनोज कुमार चुप रहे फिर बोले कुछ लोग भुलाने के लिए नहीं आते वह बस जिंदा रहते हैं शशि मुस्कुराई उन्होंने कभी कुछ नहीं दोबारा पूछा मैंने अपने प्यार को कुर्बान किया बार-बार क्या आप उन्हें आज भी याद करते हैं नहीं अब याद नहीं करते अब वह यादें ही मेरी जिंदगी है तुम्हारी मोहब्बत ने मुझे हीरो नहीं इंसान बनाया एक चिट्ठी जो डायरी में छुपी है कभी पोस्ट नहीं हुई पर हर शब्द में सच्चाई थी.
लेकिन मनोज कुमार की जिंदगी में प्यार हार कर भी जीत गया क्योंकि वह कभी जुबान तक नहीं आया वो आत्मा में बस गया अगर उनकी मोहब्बतों पर फिल्म बने तो उसका नाम होगा अधूरी मोहब्बतें जहां ना कोई हीरो ना विलेन बस एक सच्चा दिल और उसकी खामोश धड़कनें.