एक कलाकार जिसने पर्दे पर भारत को जिया एक इंसान जिसने अपना पूरा जीवन देशभक्ति के नाम कर दिया और एक नाम जिसे हम सब ने हमेशा भारत कुमार के नाम से जाना लेकिन 4 अप्रैल 2025 की तड़की सुबह जब मुंबई के कोकिला बेन अस्पताल की मशीनें अचानक चुप हो गई तो साथ ही चुप हो गई वह आवाज जिसने हमें कभी पूरब और पश्चिम दिखाया था कभी रोटी कपड़ा और मकान की सच्चाई सुनाई थी और कभी क्रांति की मशाल जलाकर हमें अपने हक के लिए खड़ा होना सिखाया था.
मनोज कुमार अब इस दुनिया में नहीं रहे लेकिन उनका जाना बस एक शरीर का जाना नहीं था वह एक दौर का अंत था आज हम आपको बताएंगे भारत कुमार की आखिरी सांस तक की वह कहानी जो शायद ही आपने कहीं सुनी हो वह संघर्ष जो बना भारत कुमार मनोज कुमार का जन्म 24 जुलाई 1937 को एटाबाद जो पाकिस्तान में है वहीं हुआ था देश के बंटवारे के समय उनका परिवार भारत आ गया खाली हाथ लेकिन इरादों से भरा हुआ उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की कभी लाइब्रेरी में काम किया कभी छोटी-मोटी नौकरी की उनकी ख्वाहिश थी एक्टर बनना लेकिन कोई गॉडफादर नहीं था ना कोई पहचान सिर्फ एक सपना और कुछ पन्नों पर लिखी लाइनें धीरे-धीरे उन्होंने फिल्मों में छोटे-छोटे रोल करने शुरू किए फिर एक दिन फिल्म आई.
शहीद 1965 में भगत सिंह की भूमिका में वह छा गई इसके बाद उन्होंने जो फिल्में की वो सिर्फ फिल्में नहीं रही एक आंदोलन बन गई जीना तो उसी का जीना है पर्दे पर भारत बनने की कहानी मनोज कुमार ने भारत को इतना जिया कि लोग उन्हें भारत कुमार कहने लगे उपकार 1967 जय जवान जय किसान की कहानी पूरब और पश्चिम 1970 भारत की आत्मा और पाश्चात्य संस्कृति की टक्कर क्रांति 1981 आजादी की लड़ाई का महाकाव्य इन फिल्मों में उन्होंने ना सिर्फ एक्टिंग की बल्कि निर्देशन कहानी और संवाद सब कुछ खुद किया मनोज कुमार कहते थे “मुझे देश से प्यार है और मैं अपनी फिल्मों से यह प्यार बांटना चाहता हूं ” हूं बीमारी ने तोड़ दिया एक फौलादी इरादे वाले को अब सुनिए वो कहानी जो दिल को छू जाती है बैठ जाइए जरा दिल थाम लीजिए क्योंकि जो मैं अब सुनाने जा रहा हूं वो सिर्फ एक अभिनेता की निधन की दास्तान नहीं है वो उस इंसान की कहानी है जो जीवन भर सबका हौसला बना रहा लेकिन खुद अपनी लड़ाई चुपचाप अकेले लड़ गया मनोज कुमार एक नाम एक पहचान और एक योग पिछले कुछ महीनों से उनकी तबीयत धीरे-धीरे बिगड़ रही थी।
लेकिन क्या आपको पता है उन्होंने कभी कोई शिकायत नहीं की ना किसी को बताया ना किसी से मदद मांगी बस मुस्कुराते रहे जैसे सब ठीक है उनके करीबी कहते हैं वह दर्द भी ऐसे सहते थे जैसे कोई साधना कर रहे हो 21 फरवरी 2025 वो दिन जब परिवार ने उन्हें कोकिलाबेन अंबानी अस्पताल में भर्ती कराया शुरू में लगा मामूली बात होगी कुछ दिन में ठीक हो जाएंगे लेकिन जब डॉक्टर्स ने कहा इनफेक्शन तो घर में एक सन्नाटा छा गया आप समझ रहे हैं ना यह कोई आम नहीं होता यह वह स्थिति होती है जब दिल जो हमारे शरीर का सबसे मजबूत अंग माना जाता है वह थक जाता है खून पंप करना बंद कर देता है और तब होता है शॉक मतलब शरीर के बाकी हिस्सों को ऑक्सीजन नहीं मिलती और धीरे-धीरे सब कुछ बंद होने लगता है।
लेकिन बस यहीं तक नहीं रुकी थी तकलीफ मनोज कुमार इस दौरान एक और गंभीर बीमारी से लड़ रहे थे यह वह बीमारी होती है जब लिवर जो शरीर की सफाई करने वाली फैक्ट्री है वह खुद ही जहर बन जाती है धीरे-धीरे लीवर अपना काम करना बंद कर देता है जिसका असर पूरे शरीर पर पड़ता है कमजोरी सूजन उल्टियां यहां तक कि चेतना भी चली जाती है डॉक्टर्स ने साफ कह दिया अब ज्यादा उम्मीद नहीं है।
लेकिन हम हार नहीं मानेंगे लेकिन कोई क्या कर सकता है जब शरीर साथ छोड़ दे 4 अप्रैल की तड़के 3:30 बजे वह पलाया परिवार का हर सदस्य उनके पास था किसी ने हाथ पकड़ा हुआ था किसी की आंखों में उम्मीद बाकी थी लेकिन धीरे-धीरे उनकी उंगलियों की पकड़ ढीली पड़ती गई और जैसे ही मॉनिटर की बीप रुक गई जिंदगी का आखिरी पर्दा गिर गया मनोज कुमार चले गए लेकिन एक खामोशी छोड़ गई जो अब हर हिंदुस्तानी दिल में गूंजती है ओ मेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरे मोती मेरे देश की धरती परिवार और बेटा जो हमेशा उनके साथ खड़ा रहा अब जरा आंखें बंद कीजिए और एक पल के लिए उस कमरे की कल्पना कीजिए जहां एक बेटा जो कभी अपने पिता को पर्दे पर हीरो बनते देखता था आज उसी पिता की चुपचाप जाती हुई सांसों को पकड़ने की कोशिश कर रहा है।
कुणाल गोस्वामी वही बेटा जिसने कभी एक्टिंग की दुनिया में कदम रखने की कोशिश की थी लेकिन जिसने अपने पापा मनोज कुमार की ऊंचाई को कभी नहीं छू पाया ना ही कभी उनसे आगे निकलने की कोशिश की क्योंकि वह जानते थे उनके पापा कोई आम एक्टर नहीं एक विचार थे जब मीडिया वालों ने उन्हें घेर लिया कैमरे माइक लाइट तो एक थकी थकी सी मुस्कान के साथ उन्होंने कहा पापा बहुत समय से बीमार थे लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी श्री साईं बाबा की कृपा से वह शांति से गए श्री बाबा की दया है कि वह चैन से आराम से इस दुनिया से बस इतनी सी बात लेकिन इस एक लाइन के पीछे जितनी पीड़ा जितना प्रेम और जितनी श्रद्धा छुपी थी वो शब्दों में नहीं समा सकती अब जरा उनकी पत्नी शशि गोस्वामी की तरफ नजर दौड़ाइए मीडिया में कभी नहीं आई ।
लाइमलाइट से हमेशा दूर रहीं लेकिन जब पति बीमार हुए तो एक पत्थर की तरह उनके सिरहाने बैठी रहीं ना किसी ने उन्हें थकते देखा ना रोते बस चुपचाप हर पल उनके साथ जैसे कोई छाया जैसे कोई ताकत जैसे एक सच्चा जीवन साथी होता है जब दुनिया ने मनोज कुमार को भुला दिया पुराने दोस्त खो गए इंडस्ट्री ने मुंह मोड़ लिया तब भी उनका परिवार कभी नहीं टूटा उनका बेटा उनकी पत्नी और सबसे प्यारे उनके पोते और नाती कुणाल बताते हैं पापा अपने पोतों से बहुत प्यार करते थे वह उन्हें देशभक्ति के गीत सुनाते भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद की कहानियां सुनाते कहते थे बेटा बड़ा आदमी बनने से पहले अच्छा इंसान बनो और यही वह चीज है जो मनोज कुमार को एक एक्टर से ऊपर उठाकर एक विचार एक आदर्श और शायद एक प्रेरणा बना देती है प्रेम जीवन पर्दे से दूर की सच्चाई अब जरा इस हिस्से की कहानी क्योंकि जब हम किसी अभिनेता के रोमांस की बात करते हैं तो जेहन में सबसे पहले फिल्मी पर्दे पर झूलती बाहें बरसती बारिश और किसी नायक की बाहों में सिमटी नायिका की तस्वीर उभरती है।
लेकिन मनोज कुमार की असली जिंदगी का प्यार उनकी रियल लाइफ के रोमांस से कहीं ज्यादा सच्चा गहरा और शांत था मनोज कुमार की जिंदगी में रोमांस सिर्फ फिल्मों की कहानी तक सीमित नहीं था लेकिन उनका असली प्यार वो था जो पर्दे पर नहीं बल्कि पर्दे के पीछे हर सुखदख में हर बीमारी हर उतार-चढ़ाव में चुपचाप साथ चल रहा था उनकी पत्नी शशि गोस्वामी एक ऐसी महिला जिन्होंने ना कभी किसी माइक के सामने बात की ना कभी किसी अवार्ड फंक्शन में सजीध नजर आई लेकिन वह मनोज जी की जिंदगी में एक स्थिर प्रकाश स्तंभ की तरह मौजूद रहीं जहां आजकल प्यार भी ट्रेंड बन चुका है जहां रिश्ते Instagram स्टोरी की तरह बदल जाते हैं वहीं मनोज और शशि का रिश्ता सादगी में गहराई की मिसाल था उनका प्रेम ना दिखावटी था ना जुबान का मोहताज बस एक साथ होने की खामोश ताकत में था।
हां कुछ पुरानी मीडिया रिपोर्ट्स में यह जरूर कहा गया कि मनोज कुमार और मारा सिन्हा के बीच एक समय बेहद करीबी रिश्ता था दोनों ने एक साथ कई फिल्मों में काम किया और दर्शकों को उनकी जोड़ी भी बेहद पसंद थी लेकिन यह रिश्ता कभी विवाद नहीं बना ना कभी कोई बयानबाजी ना कोई आरोप ना कोई अखबार की चीखती हेडलाइन मनोज कुमार ने इस बारे में कभी खुलकर कुछ नहीं कहा ना स्वीकारा ना नकारा और शायद यही उनकी परिपक्वता थी वह जानते थे कि कुछ रिश्ते समझने के लिए होते हैं समझाने के लिए नहीं उनकी प्रेम कहानी कोई बॉलीवुड मसालेदार कहानी नहीं थी बल्कि वह एक ऐसी किताब थी जिसे धीमे-धीमे पढ़ा जाता है हर पन्ना भरोसे सम्मान और समर्पण से भरा हुआ इब्तदा इश्क में हम शशि उनके जीवन की वह पंक्ति थी जो ना कभी ऊंची हुई ना कभी टूटी बस हर वक्त हर परिस्थिति में साथ चलती रही गांव और जड़ों से रिश्ता अब जरा एक पल के लिए सोचिए किसी का बचपन जिसकी जड़े उस मिट्टी में हो जहां अब सरहदें खींच चुकी हो जहां यादें तो हैं मगर पहुंच मुमकिन नहीं।
यह कहानी है उस भारत कुमार की जिसका दिल भले ही भारत के हर कोने में धड़कता था लेकिन उसकी यादें उसकी जड़े उसकी आत्मा अब भी वहीं कहीं अटकी हुई थी एटाबाद पाकिस्तान में बंटवारे के बाद जब लाखों लोग घर बार छोड़कर भारत आ गए मनोज कुमार का परिवार भी उनमें से एक था वह सब कुछ पीछे छोड़ आई आंगन की वो मिट्टी वो नीम का पेड़ जिसके नीचे बैठकर कहानियां सुनी थी वो गलियां जिनमें बचपन भागा करता था सब कुछ दिल्ली में जिंदगी फिर से शुरू हुई लेकिन एक हिस्सा हमेशा पीछे रह गया कई सालों बाद इंटरव्यू में जब उनसे उस गांव के बारे में पूछा गया तो उनकी आंखों में नमी थी गला भर आया था और उन्होंने सिर्फ इतना कहा वो गलियां वो मिट्टी वो बचपन सब वहीं छूट गया बस इतना ही कहा लेकिन इसमें पूरी जिंदगी की कसक थी क्या आप समझ सकते हैं उस दर्द को वह घर वह जमीन जहां आपने चलना सीखा जो अब किसी और देश में है और जहां आप वापस भी नहीं जा सकते एक बार पाकिस्तान सरकार की ओर से उन्हें सम्मानित करने का प्रस्ताव आया पर क्या किया मनोज कुमार ने उन्होंने शालीनता से लेकिन बड़ी दृढ़ता से कहा जो देश मेरे परिवार का दर्द बना वहां से सम्मान नहीं चाहिए जब तुझे देखूं मेरा धड़के दिया।
यह लाइन किसी स्क्रिप्ट का डायलॉग नहीं थी यह एक ऐसे इंसान की भावनाएं थी जिसने अपने परिवार को उस दर्द से गुजरते देखा था जो बंटवारे ने पूरे हिंदुस्तान को दिया और आज भी उस पाकिस्तानी गांव के बूढ़े लोग जहां मनोज बचपन में मिट्टी में खेला करते थे आज जब टीवी पर उनकी तस्वीर देखते हैं तो कहते हैं वो बच्चा जो कभी मिट्टी में खेला करता था आज भारत का हीरो बन गया यह सिर्फ किस्मत नहीं थी दोस्तों यह एक कहानी है जड़ों से जुड़े रहने की और उस मिट्टी को हमेशा याद रखने की जिसे आप भले ही छू ना पाएं लेकिन जिसने आपको वह इंसान बनाया जो आज आप हैं कितनी संपत्ति छोड़ी भारत कुमार ने मनोज कुमार का जीवन बहुत सादा रहा लेकिन उन्होंने जो कमाया वह अपने सिद्धांतों के दम पर कमाया मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार उन्होंने अपने पीछे करीब 20 मिलियन डॉलर लगभग 170 करोड़ की संपत्ति छोड़ी है जिसमें मुंबई के जूहू और बांद्रा इलाके में बंगलोस फ्लैट्स और इन्वेस्टमेंट्स शामिल हैं उनका अधिकांश पैसा उन्होंने परिवार और ट्रस्ट के लिए छोड़ा है ताकि वह समाज के लिए काम करता रहे फिल्म इंडस्ट्री में क्यों हुए अकेले अब जरा इस पल की तस्वीर बनाइए एक समय था जब सेट पर कैमरे मनोज कुमार के आने से पहले चालू कर दिए जाते थे जब डायरेक्टर की कुर्सी पर वह बैठते थे तो सब खामोश हो जाते थे और जब उनका नाम पर्दे पर आता था तो सिनेमाघरों में सीटियां बजती थी तालियां गूंजती थी।
लेकिन वक्त बदला सिनेमा बदला और मनोज कुमार चुपचाप उस बदले हुए सिनेमा से पीछे हटते चले गए धीरे-धीरे उन्होंने खुद को इंडस्ट्री से दूर कर लिया क्यों क्योंकि उन्होंने देखा कि अब कहानियों में आत्मा नहीं रही अब फिल्मों का मकसद सिर्फ कमाई है संवेदना नहीं अब कलाकार नहीं ब्रांड बनते हैं और वह कहते थे मैं पैसा नहीं असर छोड़ना चाहता हूं क्या गजब की बात है ना आज जहां हर दूसरा इंसान इंस्टाग्राम पर फॉलोअर्स के पीछे भाग रहा है मनोज कुमार जैसे कलाकार बस यह चाहते थे कि उनका काम लोगों के दिलों में जगह बनाए वो सिनेमा करें जो समाज को कुछ दे कुछ सिखाए इसलिए जब तक एक्टिंग की उपकार पूरब और पश्चिम क्रांति रोटी कपड़ा और मकान जैसी फिल्में दी जो आज भी स्कूलों कॉलेजों और टीवी चैनल्स पर दिखाई जाती हैं हर पीढ़ी से लोग अब भी उनसे प्रेरणा लेते हैं।
लेकिन यह दुनिया है यहां यादें जल्दी फीकी पड़ती हैं इंडस्ट्री ने उन्हें भी धीरे-धीरे भुला दिया तेरे शरण पडूं मैं किसकी शरण ना कोई रेड कारपेट पर बुलावा ना किसी अवार्ड फंक्शन में सम्मान ना किसी डायरेक्टर ए स्टार का फोन बस कुछ पुराने दोस्त वही जिनके साथ संघर्ष के दिन बिताए थे और उनका परिवार यही बन गई थी मनोज कुमार की पूरी दुनिया और इस सन्नाटे में भी वह कभी शिकायत ही नहीं हुए उन्होंने कभी कैमरों से गिला नहीं किया कभी कभी मीडिया से नहीं पूछा मुझे क्यों भुला दिया क्योंकि शायद वह जानते थे जो असर छोड़ता है उसे तालियों की जरूरत नहीं होती सम्मान और अंतिम विदाई मनोज कुमार को पद्मश्री 1992 में और दादासाहब फाल्के अवार्ड 2015 में जैसे प्रतिष्ठित सम्मानों से नवाजा गया उनके अंतिम संस्कार में कुछ पुरानी फिल्मी साथी पहुंचे ।
लेकिन उस संख्या में कमी थी जो उनके योगदान से मेल खा सके लोगों ने सोशल मीडिया पर लिखा मनोज कुमार को देश ने बहुत कुछ दिया पर इंडस्ट्री ने उन्हें भुला दिया भारत कुमार की विरासत अब जरा एक पल ठहरिए अपनी आंखें बंद कीजिए और सोचिए क्या आपने कभी किसी कलाकार के भीतर इतनी गहराई से भारत देखा है क्योंकि जब हम मनोज कुमार को याद करते हैं तो हमें सिर्फ एक अभिनेता की तस्वीर नहीं दिखती हमें दिखता है एक ऐसा इंसान जो कैमरे के सामने अभिनय करता था लेकिन कैमरे के पीछे भी अपने देश से उतना ही प्रेम करता था आज जब हम पीछे मुड़कर देखते हैं तो यह एहसास और भी गहरा होता है कि मनोज कुमार सिर्फ नाम नहीं थी वह एक विचार थे एक ऐसा विचार जो आज भी जिंदा है हर उस इंसान में जो अपने देश को सबसे पहले रखता है हर उस कलाकार में जो अपनी कला को सेवा मानता है हर उस युवा में जो सफलता की बजाय सम्मान कमाना चाहता है।
मनोज कुमार हमें सिखा गए कि स्टारडम सिर्फ चमकदमक से नहीं आता बल्कि सच्चाई ईमानदारी और देशभक्ति यही सबसे बड़ी दौलत है वो कहते नहीं थे जीते थे और शायद इसीलिए उनकी बातें आज भी दिल को छू जाती हैं अब अगर यह कहानी वाकई आपके दिल तक पहुंची हो तो बस चुप मत रहिए।