70 और 80 के दशक में हिंदी सिनेमा में अपनी दिलकश आवाज से धूम मचाने वाले एक अजीम फनकार मोहब्बत अब त जारत बन गई है जब वो गम और बेबसी के नग मेंे गाते तो गीत संगीत के कद्रदान मानो गमगीन होठते और जब वह प्यार के नगमे गुनगुनाते तो फिजाओं में जैसे बाहर आ जाती रब से ज्यादा इनकी आवाज में ऐसी मिठास थी मानो सुनने वालों के कानों में शहद घोल देती थी और इनकी आवाज सुनकर ऐसा लगता था मानो रफी साहब गा रहे हैं और इसी कारण इन्हें रफी साहब का बेटा समझा जाता था।
बस में हम अपनी जान के खाए चले गए वो उस गाने के जो रिकॉर्ड्स मार्केट में आए तो लोग बोले ये मिस प्रिंट हुआ है गाना मोहम्मद रफी के नाम के बजाय अनवर कैसे लिख दिया यह तक लोगों ने सवाल फिर बोला नहीं शायद उनके बेटे हैं लेकिन क्या आप जानते हैं कि इनके पिता एक प्रसिद्ध हारमोनियम वादक थे और प्रसिद्ध म्यूजिशियन गुलाम हैदर के असिस्टेंट थे और साथ ही इनकी मां और बहन एक एक्ट्रेस और इनके सौतेले भाई एक बेहतरीन रहे तकदीर है क्या मैं क्या जानू मैं आशिक हूं और क्या आप मानेंगे इनका एक गाना सुनकर रफी साहब खुद चौक गए थे कि यह गाना मैंने कब गाया और जब उन्हें पता चला कि यह गाना उन्होंने नहीं बल्कि अनवर ने गाया है तो उन्होंने इन्हें अपना वारिस तक बता दिया था।
जी हां दोस्तों हम बात कर रहे हैं साहब की हूबहू आवाज वाले सिंगर अनवर हुसैन उर्फ अनवर की दोस्ती इम्तिहान लेती है दोस्तों की जान क्या आप सोच सकते हैं कि अपने घमंड और खराब व्यवहार के कारण इन्होंने अपना शानदार करियर खुद बर्बाद कर लिया।
हिंदी फिल्म इंडस्ट्री अगर प्रतिभावान कलाकारों को सर आंखों पर बिठा है तो ऐसे कलाकारों को जो सफलता मिलने पर नखरे दिखाने लगे उन्हें अर्श से फर्श पर लाने में भी समय नहीं लगा द यही वजह है कि बहुत से कलाकार धूम केतु की तरह चमके और फिर गायब हो गए अनवर ने बतौर प्लेबैक सिंगर उस दौर में बॉलीवुड में अपने कदम रखे थे जब मोहम्मद रफी किशोर कुमार मन्ना डे और महेंद्र कपूर जैसे दिग्गज गायकों का बॉलीवुड में सिक्का चल रहा था ऐसे में रफी साहब जैसी आवाज के साथ उस दौर में अपना सिक्का जमाना कोई आसान काम नहीं था संगीत को बड़े ध्यान से सुनने वाला ही इनके और रफी साहब की गायकी में फर्क बता सकता था जिसके यह हकदार थे खैर पहले बात करते हैं कौन थे अनवर और इनका फिल्मों में कैसे आना हुआ अनवर का जन्म 1 फरवरी 1949 को मुंबई में हुआ था इनके पिता का नाम आशिक हुसैन था जो कि एक हारमोनियम और सितार वादक थे और मशहूर म्यूजिशियन गुलाम हैदर के असिस्टेंट भी थे इनकी मां का नाम रंजना था जो कि हिंदी फिल्मों की एक एक्ट्रेस थी ।
दोस्तों बहुत कम लोगों को ही यह पता होगा कि जानी-मानी एक्ट्रेस आशा सचदेव इनकी सगी बहन हैं और फेमस एक्टर अर्शदीप सौतेले भाई हैं बचपन से ही संगीत में रुचि रखने वाले अनवर का मन पढ़ाई में नहीं लगता था म्यूजिक में इनकी दिलचस्पी देखकर इनके पिता इन्हें इसकी शिक्षा के लिए मशहूर उस्ताद अब्दुल रहमान खान के पास ले गए यहां आपको बता दें कि यह वही रहमान साहब थे जिनसे मोहम्मद रफी मन्ना डे और महेंद्र कपूर जैसे दिग्गज गायकों ने संगीत की तालीम ली थी तो जब उस्ताद अब्दुल रहमान खान ने इन्हें पहली बार सुना तो कहा कि अनवर तुम्हारी आवाज तो मोहम्मद रफी से बहुत मिलती-जुलती है और यह बात जब इनसे कई लोगों ने कही तो इन्होंने डिसाइड कर लिया कि इन्हें भी रफी साहब की तरह ही प्लेबैक सिंगर बनना है और इसके बाद ये शादियों पार्टियों में मोहम्मद रफी के ही सोंग्स गाने लगे लोग भी ताज्जुब करते और आकर की तारीफ करती।
इस तरह यह सिलसिला चलता रहा सारी खुशिया तुझ पे वा के चला मैं तो उस दौरान यह ऐसे प्रोग्राम्स वगैरह में एक गाना गाने का ₹ तक लिया करते थे ऐसी ही एक पार्टी में इन्हें गाना गाते हुए म्यूजिक कंपोजर कमल राजस्थानी ने सुना और बेहद प्रभावित [संगीत] हुए उसके बाद कमल साहब इनसे अपने गानों के स्क्रैचेज गवाने लगे फिर एक दिन इन्होंने उनसे कहा कि आप अपने गानों की प्रैक्टिस तो मेरे साथ करते हैं लेकिन गाना रफी साहब से गवा लेते हैं आप मुझे कब मौका देंगे इस पर कमल राजस्थानी ने कहा कि अपनी नेक्स्ट फिल्म में मैं तुमसे गाना जरूर गवा हंगा और उन्होंने इस वादे को निभाया भी तो फिल्म मेरे गरीब नवाज में अनवर को गाने का मौका मिल गया कसम हम अपनी जान इससे जुड़ा एक रोचक वाकया भी हुआ ।
दरअसल जब साल 1973 में आई इस फिल्म के इस गाने की स्टूडियो में मिक्सिंग हो रही थी तो उस समय वहां मोहम्मद रफी साहब भी किसी गाने की डबिंग के लिए पहुंचे थे और जब उन्होंने यह गाना सुना तो चौक गए और अपने सेक्रेटरी से पूछा कि यह गाना मैंने कब गाया तो इत्तफाक से रफी साहब उसी स्टूडियो में आए गए और उन्होंने मेरी आवाज सुनी तो अपने साले से मतलब उनका जो सेक्रेटरी था काम भी देखता था जहीर जी जहीर ये गाना मैंने कब गाया तब उनके सेक्रेटरी ने मुस्कुराते हुए कहा कि यह एक नए लड़के अनवर की आवाज है जो आपका बड़ा फैन है कहक गए थे वो केना आए ये सुनकर रफी साहब भी हैरान रह गए और बोले कि मेरे बाद अगर कोई मेरी जगह लेगा तो वह यह लड़का ही होगा हद तो तब हो गई जब गाने के रिकॉर्ड्स मार्केट में आए और उस समय उस पर अनवर का नाम देखकर लोग यह कंप्लेन करने लगे कि यहां सिंगर के नाम का मिस्प्रिंट हो गया है और रफी साहब की जगह किसी अनवर का नाम लिख दिया गया है।
खैर लोगों ने इस गाने के लिए इनकी गायकी की तारीफ तो की मगर फिल्म बुरी तरह फ्लॉप हो जाने की वजह से इन्हें गाने से कोई खास फायदा नहीं हुआ और यह स्ट्रगल ही करते रहे बताते हैं कि इसके बाद अनवर एक बार ईद के मौके पर रफी साहब से मिलने उनके घर पहुंच गए और वहां वहां उन्होंने जो कहकर सबसे इनकी तारुफ कराई उनसे यह दंग रह गए बोलते लोग कहते हैं यह मेरा बेटा है ऐसे करके हंस की आवाज में बात करते थे और लगता भी मेरे जैसा है मेरी तरह गाता है मैं बोला नहीं नहीं नहीं साहब मैं तो आपके पैर की धूल भी नहीं हूं नहीं नहीं नहीं बोले आई अंदर चले तो मैं तो डर गया लेकिन रफी साहब जैसी आवाज होने की वजह से इन्हे एक बड़ी समस्या का सामना ही करना पड़ता।
दरअसल जब यह किसी भी म्यूजिक डायरेक्टर के पास जाते और अपना गाना सुनाते तो वह इनसे यही कहते कि जब ओरिजिनल रफी साहब मौजूद हैं तो हम आपको मौका क्यों दें कई लोग मिज डक्टर बोलते थे रफी साहब तो हैं फिर आप आपको हम क्यों लेंगे तो काम मिलता ना देख यह काफी परेशान रहने लगे तभी एक दिन इन्होंने अपनी परेशानी अपने एक दोस्त कैरेक्टर आर्टिस्ट अनवर अली को बताई जिनसे इनकी दोस्ती अपनी डेब्यू फिल्म गरीब नवाज के दौरान हुई थी तब उन्होंने कहा कि तुम जाकर मेरे भाई से मिलो वो जरूर तुम्हें काम देंगे और उनके भाई कोई और नहीं बल्कि महमूद थे जो उन दिनों अपनी फिल्म कुंवारा बाप बना रहे थे जब अनवर ने उन्हें अपना गाना सुनाया तो उन्होंने कहा कि मैं तुम्हें अगली फिल्म में मौका जरूर दूंगा
यह फिल्म रही साल 1977 में रिलीज हुई जनता हवलदार जो कि सुपरहिट रही और फिल्म में इनके गाए सभी गाने भी जबरदस्त हिट साबित हुए हम सका भूल हुए जो ये सजा हमका मिल इस फिल्म से जुड़ा एक किस्सा भी अनवर साहब ने खुद अपने इंटरव्यू में बताया था हुआ यूं कि इस फिल्म का एक गाना रिकॉर्ड करके महमूद साहब फिल्म के एक्टर राजेश खन्ना के पास पहुंचे जो उन दिनों इस बात से दुखी थे कि इनके ऊपर कोई अच्छा गाना नहीं फिल्माया जा रहा महमूद साहब ने कहा कि मैं तुम्हारे लिए एक बहुत अच्छा गाना लेकर आया हूं और जब राजेश खन्ना को व गाना सुनाया तो उन्होंने कहा कि बड़े दिनों के बाद रफी साहब ने कोई गाना मूड में गाया है।
इस फिल्म के गीतों के पॉपुलर होने के बाद इन्होंने कई हिट गाने दिए जिन सभी की चर्चा एक वीडियो में करना पॉसिबल नहीं होगा तो इनके पॉपुलर गीतों की बात करें तो साल 1981 की फिल्म नसीब का यह गाना भला कौन भुला सकता है जो कि अमिताभ बच्चन शत्रुगन सिन्हा और रीना रॉय पर फिल्माया गया था दोस्ती इम्तिहान ले क है दोस्तों की जान इसी साल इन्होंने फिल्म आहिस्ता आहिस्ता के टाइटल सॉन्ग को भी आवाज दी जो कि ऑडियंस द्वारा बेहद पसंद किया गया नजर से फूल चुनती है नजर आहिस्ता आस्ता अगले साल 1982 में अनवर ने सुपरहिट फिल्म प्रेम रोग के लगभग सभी गीत गाए लेकिन अफसोस कि इनमें से सिर्फ एक गीत को छोड़कर बाकी सभी गाने दूसरे सिंगर से डब करा दिए जिसकी चर्चा हम वीडियो में आगे करेंगे कि इसके पीछे वजह क्या रही सारी खुशिया तुझ के चला इसी साल यह फिल्म विधाता में दिलीप कुमार की आवाज बने और इसके गाने भी बेहद पॉपुलर हुए तकर है क्या मैं क्या जानू मैं आश इसके बाद साल 1983 में फिल्म अर्पण में जितेंद्र पर फिल्माया गया यह गीत गाया और यह भी कमाल कर गया मोहब्बत अब तिजारत बन गई है अगले साल 1984 में अनवर ने सोहनी महिवाल के गीतों को आवाज दी जो कि सुपरहिट रहे सोनी मेरी सोनी सोनी और नहीं कोई होनी सोनी रब से ज्यादा इसी साल आई फिल्म ये इश्क नहीं आसा के गीतों को अनवर ने ही गाया और फिल्म के सारे गीत बहुत पसंद किए गए तेरे हिजाब ने मुझे शायर बना इस फिल्म के एक्टर ऋषि कपूर फिल्म के गानों के लिए मोहम्मद रफी साहब जैसी ही आवाज चाहते थे और साल 1980 में रफी साहब के इंतकाल के बाद अनवर या शब्बीर कुमार ही थे जिनकी आवाज रफी साहब के बेहद करीब थी तो यह मौका अनवर को मिला और फिल्म में इन्होंने जो गजलें गाई वो लाजवाब रही।
लेकिन इन फिल्मों के बाद म्यूजिक कंपोजर्स ने इनसे किनारा करना शुरू कर दिया क्योंकि रफी साहब के जाने के बाद अनवर में घमंड आ गया कि अब मैं ही रफी साहब की कमी को पूरा कर सकता हूं लेकिन यह भूल गए कि इनकी आवाज तो रफी साहब से मिलती थी लेकिन मिजाज नहीं क्योंकि रफी साहब जैसा होना हर किसी के बस की बात नहीं हो सकती उनमें जो शालीनता और सादगी थी उसे मैच करना इतना आसान नहीं था और अनवर के लिए तो बिल्कुल भी नहीं ऐसा हम क्यों कह रहे हैं। अनवर ने तब मौके का फायदा उठाने के मकसद से डायरेक्टर से अनाप शना पैसे मांगने शुरू कर दिए जिसकी वजह से इन्हें बहुत सी फिल्मों से हाथ धोना पड़ा फिर क्या था इन्हें साइडलाइन किया जाने लगा कहते हैं कि हर स्टार को अपनी जिंदगी में कभी ना कभी निराशा का सामना करना होता है लेकिन अनवर के लिए यह निराशा काफी लंबी रही और यही इनके पतन का कारण बनी।
रातों-रात मिली शोहरत इंसान के अंदर अहंकार भर देती है और यही हुआ अनवर के साथ अनवर ने कुछ इंटरव्यूज में खुद बताया है कि मनमोहन देसाई की फिल्म मर्द के लिए इन्हें सभी गाने गाने के ऑफर मिले थे और हर गाने के लिए ₹5000000 उनके असिस्टेंट ने आके मुझसे पूछा कितना आपको देना है तो मैंने 6000 की डिमांड की उनको बहुत बुरा लगा कि अनवर अगर 5000 औरों से ले रहा है तो मुझसे 6000 क्यों आज के बाद मैं उसको गवा हंगा नहीं फिल्म बहुत बड़ी हिट साबित हुई जिसका फायदा रफी साहब जैसी आवाज वाले इन दोनों सिंगर्स को हुआ इन दोनों सिंगर्स पर ज्यादा जानकारी के लिए आप हमारे चैनल पर इनके वीडियो भी देख सकते हैं जिसके लिंक हमने डिस्क्रिप्शन में दे दिए हैं तो इनका घमंड यही नहीं रुका इसी तरह शोमैन राज कपूर साहब इनसे अपनी फिल्म प्रेम रोग के सभी गाने गवा रहे थे।
लेकिन जब पेमेंट की बारी आई तो इन्होंने उनके असिस्टेंट से ज्यादा पैसे मांग लिए और यह बात जब ऋषि कपूर को पता चली तो वो आग बबूला हो गए और कहा कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में लोग कपूर बैनर का हिस्सा बनना अपना सौभाग्य समझते हैं और अनवर इसी बैनर से पैसे की ज्यादा डिमांड कर रहे हैं जिसके बाद राज कपूर ने सिर्फ एक गाने को छोड़कर फिल्म के बाकी सारे गाने सुरेश वाडकर से गवा लिए और आगे से इन्हें अपनी किसी भी फिल्म में काम नहीं दिया राज कपूर के साथ काम करना एक ऑनर की बात है हम हम और मैं मुझे बिल्कुल समझ नहीं थी पॉलिटिक्स जानता नहीं था सीधा था तो यह गलती हुई तो बिगड़ गए ऋषि कपूर बोले मुझे इसकी आवाज नहीं चाहिए एक किस्सा और सामने आया जब एक गाने की रिकॉर्डिंग के वक्त अनवर शराब पीकर स्टूडियो पहुंच गए उस गाने में आशा भोसले इनके साथ गाने वाली थी जब उन्होंने अनवर को नशे में देखा तो इनके साथ गाने से ही इंकार कर दिया बल्कि कई संगीतकारों से अनवर को गाना ना गवाने की हिदायत भी दे डाली और इस तरह धीरे-धीरे यह फिल्म इंडस्ट्री से गायब होने लगे दौलत ही को जब सब कुछ समझा जाता है तो अच्छा खासा 90 में इन्होंने साथी और हीर रांझा फिल्म के कुछ गीतों को आवाज जरूर दी।
वही दौर था जब कुमार सानू और उदित नारायण जैसे सिंगर्स का उदय हो रहा था जिसके कारण ज्यादातर पुराने सिंगर्स को अब काम मिलना कम होता गया और सभी काम पाने के लिए स्ट्रगल करने लगे अब ऐसे में पहले से ही हाशिए पर चल रहे अनवर से फिल्म इंडस्ट्री ने एकदम किनारा कर लिया और इन्हें काम मिलना लगभग बंद ही हो गया।
अनवर साहब अमेरिका चले गए साल 2007 में एक वेबसाइट को दिए अपने इंटरव्यू में इन्होंने यह सारी बातें खुद ही बताई थी वहां के सैंट फ्रांसिस्को और लॉस एंजेलिस में यह म्यूजिक क्लासेस देने लगे और लाइव शोज भी करने लगे वहां पर इन्होंने अपना म्यूजिक इंस्टीट्यूट खोलने के बारे में भी सोचा और इसी बीच लोन लेकर तोहफा नाम का एक म्यूजिक एल्बम भी बनाया मोहब्बत अब तिजारत बन गई है लेकिन अफसोस वह एल्बम नहीं चल पाया जिस वजह से अनवर लोन भी नहीं चुका पाए और उसके एवज में इनका मुंबई का घर जब्त कर लिया गया और फिर एक ऐसा दौर भी आया जब इन्हें अपने परिवार के भरण पोषण के लिए भी एक एक बियर बार में गाना पड़ा इसी दौरान इन्होंने अपने सौतेले भाई अरशद वारसी से भी फाइनेंशियल हेल्प मांगी लेकिन अनवर के मुताबिक तब उन्होंने इनकी कोई मदद नहीं की ।
हालांकि इस बात की सच्चाई नहीं पता कि इनमें आपस में क्या रहा होगा तो आखिरकार यह प्रतिभाशाली गायक गुमनामी के अंधेरे में खो गए जिसके जिम्मेदार काफी हद तक यह खुद ही थे आज भी अनवर साहब स्टेज शोज में रफी की यादें नाम से उनके पुराने गाने गाते हैं और अपना गुजर बसर करते हैं तेरी आंखों की चाहत में तो मैं सब कुछ लुट इनके गाने सुनकर तो यही लगता है कि रफी साहब की कमी यह पूरी कर सकते थे।
लेकिन ऐसा हुआ नहीं साथ ही इनकी जिंदगी के बारे में जानकर यह भी समझ में आता है कि सिर्फ आवाज से रफी साहब जैसा नहीं बना जा सकता था उसके लिए उनके दिखाए रास्तों पर भी चलना जरूरी था रफी साहब ने कभी किसी फिल्म मेकर से पैसों की डिमांड नहीं की और सैकड़ों गानों के लिए तो उन्होंने कभी मेहनताना तक नहीं लिया यहां तक कि वह तो रॉयल्टी के भी बिल्कुल खिलाफ थे।