2 अप्रैल की सुबह थी मौसम एकदम शांत था जैसे हवाओं को भी पता हो कि आज कोई अपना बहुत दूर जा रहा है ना मीडिया की चिल्लुपव ना कोई बड़ी घोषणा सिर्फ एक सादा सा बयान आया भारत कुमार नहीं रहे मनोज कुमार वो नाम जिसे सुनकर देशभक्ति की परिभाषा बदल जाती थी वो चेहरा जो कभी तिरंगे के साथ खड़ा था आज एक तिरंगे में लिपट कर चला गया कई लोग सिर्फ फिल्मी सितारे होते हैं लेकिन कुछ एक विचार बन जाते हैं और मनोज कुमार उन्हीं में से एक थे हरिकिशन गिरी गोस्वामी से भारत कुमार तक का सफर उमर बहानी है.
24 जुलाई 1937 को एक बच्चा जन्म लेता है अबाबाद आज जो पाकिस्तान में है उनका नाम रखा गया हरिकिशन गिरी गोस्वामी लेकिन तकदीर ने उसके लिए कुछ और ही लिखा था बंटवारे के बाद उनका परिवार दिल्ली आया एक नए देश में नए हालातों के बीच वह बच्चा बड़ा होता रहा और सपने देखता रहा सिनेमा के और देश के कभी राज कपूर की फिल्में देखकर आंखें चमक उठती कभी दिलीप कुमार के डायलॉग्स दिल में उतर जाते और फिर एक दिन जब उन्होंने खुद कैमरे के सामने कदम रखा तो नाम रखा मनोज कुमार शुरुआत में तो कोई नहीं जानता था कि यही लड़का एक दिन भारत की आवाज बन जाएगा जब सिनेमा में देशभक्ति बोलने लगी उपकार 1965 की बात है भारतपाक चल रहा था प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने एक नारा दिया जय जवान जय किसान मनोज कुमार इस नारे से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने इसे एक फिल्म बना डाली उपकार यह फिल्म एक मेल का पत्थर बन गई .
देश के हर कोने से तालियां गूंजी क्योंकि पहली बार किसी ने सैनिक और किसान दोनों को हीरो बना दिया था मनोज कुमार को भारत कुमार का नाम यहीं से मिला पूरब पश्चिम और रोटी कपड़ा मकान एक अभिनेता नहीं एक आंदोलन मनोज कुमार की फिल्में सिर्फ मनोरंजन नहीं थी वह आंदोलन थी वादे प्यार वफा सब बातें हैं पूरब और पश्चिम में उन्होंने पश्चिमी संस्कृति पर सवाल उठाई तो रोटी कपड़ा और मकान में बेरोजगारी गरीबी और इंसान की लाचारी को गहराई से दिखाया उनके डायलॉग्स लोगों के जहन में उतरते गए जैसे जो धरती को सींचता है वही धरती का असली बेटा है मां सिर्फ जन्म नहीं देती.
वह जीना सिखाती है मनोज कुमार हर उस दर्द को पर्दे पर लाते थे जो आम आदमी चुपचाप जीता था चमकती रोशनी से दूर एक सादा जीवन शोहरत की बुलंदियों पर पहुंचने के बावजूद मनोज कुमार ने कभी लाइमलाइट का दुरुपयोग नहीं किया जब 80 के दशक में सिनेमा में बदलाव आया तो उन्होंने खुद को पीछे कर लिया ना कोई विवाद ना कोई गसिप बस शांति से अपने काम में लगे रहे उनकी शादी शशि गोस्वामी से हुई जो खुद एक सादगी पसंद महिला थी उनके बेटे कुणाल गोस्वामी ने फिल्मों में कोशिश की लेकिन वो ऊंचाई नहीं छू पाई जो उनके पिता ने पाई थी मनोज कुमार की संपत्ति एक साधारण दिखने वाला असाधारण आदमी अब देखिए जनाब फिल्मी दुनिया है ही ऐसी यहां बातें भी करोड़ों में होती हैं और सपने भी हर चमकता सितारा कोई ना कोई कहानी अपने पीछे छोड़ जाता है .
कभी ताली वाली तो कभी आंसू वाली और मनोज कुमार वह भी इस मायावी दुनिया के हिस्सा थे पर एक फर्क के साथ आपको जानकर हैरानी नहीं होनी चाहिए कि मनोज जी ने अपने जीवन में लगभग 50 से 70 करोड़ की संपत्ति अर्जित की थी यह मैं नहीं कह रहा यह मीडिया रिपोर्ट्स कहती हैं मुंबई के जूहू इलाके में उनका एक शानदार बंगला है जो आज भी पहचान है उनके अस्तित्व की लोग गुजरते हुए उंगली उठाकर कहते हैं यहीं तो रहते थे भारत कुमार सिर्फ बंगला ही नहीं उनके पास मुंबई और उत्तर भारत के कई इलाकों में जमीनें थी फ्लैट्स थे और कुछ ऐसी संपत्तियां जो वक्त के साथ खुद एक विरासत बन गई तौबा ये मतवाली चाल झुक जाए फूलों की डाल लेकिन साहब अगर आप मुझसे पूछे मनोज कुमार की सबसे बड़ी संपत्ति क्या थी तो मैं कहूंगा ना वो बंगलो ना वो जमीनें उनकी असली दौलत थी उनकी छवि वो इज्जत जो आज भी हर सच्चे भारतीय के दिल में जिंदा है वो फिल्में जो देशभक्ति की किताबों से ज्यादा असर करती हैं वो संवाद जो आज भी मां अपने बच्चों को सुनाकर उन्हें अच्छा इंसान बनाना चाहती हैं मनोज कुमार की विरासत दीवारों में नहीं दिलों में बसती है और यही दौलत उन्हें अमर बनाती है एक युग का अंत वह सुबह भी आई थी लेकिन जरा अलग थी 2 अप्रैल 2025 का दिन था कोई हलचल नहीं कोई अफरातफरी नहीं टीवी चैनल्स पर कोई ब्रेकिंग न्यूज़ की चीख नहीं सुनाई दी सोशल मीडिया पर भी शुरुआत में सन्नाटा था और शायद होना भी चाहिए था क्योंकि मनोज कुमार कभी शोर मचाने वाले इंसान नहीं थे वो जैसे जिए वैसे ही चुपचाप इस दुनिया को अलविदा कह गए .
सादगी से शांति से मानो कह रहे हो हां मेरा किरदार पूरा हुआ उनकी अंतिम यात्रा में ना कोई भारी भीड़ थी ना लंबी गाड़ियों का काफिला बस कुछ बेहद अपने लोग कुछ उम्रदराज चेहरे कुछ पुराने साथी और वह चुप खड़ी भावनाएं जो आंखों से बहकर जमीन तक पहुंच रही थी भीड़ में एक बुजुर्ग महिला बार-बार एक ही बात कहे जा रही थी मेरे बच्चों को देश क्या होता है यह मनोज कुमार की फिल्मों से पता चला मैंने उन्हें तिरंगा दिखाने से पहले उपकार और पूरब और पश्चिम दिखाई थी उसके चेहरे पर गर्व था पर आंखों में आंसू शायद उसे किसी रिशेदारी की नहीं एक आदर्श की विदाई महसूस हो रही थी मनोज कुमार चले गए यह कहना शायद तकनीकी रूप से सही हो लेकिन भारत कुमार वो तो आज भी जिंदा है हर उस दिल में जो देश को सिर्फ जमीन का टुकड़ा नहीं मां समझता है कभी किसी फिल्म के एक डायलॉग में उन्होंने कहा था देश के लिए मरने से पहले उसके लिए जीना सीखो और उन्होंने वही किया सिनेमा के पर्दे पर भी और जिंदगी की हकीकत में भी जब फिल्में सिर्फ फिल्में नहीं रही वो बन गई आंदोलन आज का सिनेमा ग्लैमर स्पॉटलाइट हाई बजट और सोशल मीडिया की लाइक्स में सिमट चुका है बड़े-बड़े सेट चकाचौंध भरी लोकेशनेशंस और डायलॉग्स जिनका असर बस टिकट खिड़की तक सीमित रह गया है क्यों मेरी बहन खुश हो जाएंगी कैसे मेरी बहन ने मेरे लिए पुट्टी देखी लेकिन एक जमाना था दोस्तों जब सिनेमा सिर्फ एक मनोरंजन नहीं बल्कि समाज का आईना हुआ करता था और उस जमाने के सबसे सच्चे सबसे साहसी आईने का नाम था मनोज कुमार उनकी फिल्में देखने लोग टिकट लेकर नहीं उम्मीद लेकर आते थे और जब बाहर निकलते थे तो मनोरंजन नहीं कुछ महसूस करके निकलते थे.
उनकी फिल्मों का हर सीन हर संवाद दिल में चुभता भी था और आंखें खोलता भी था ऐसा लगता था जैसे पर्दे पर कहानी नहीं हमारी जिंदगी चल रही हो अब देखिए ना रोटी कपड़ा और मकान कोई सोच भी सकता है कि यह सिर्फ एक फिल्म थी नहीं जनाब यह तो उस आम आदमी की चीख थी जो रोज घर लौटते वक्त अपनी जेब देखता है और फिर अपना आत्मसम्मान जेब में डालकर जीना सीख लेता है उस फिल्म ने ना सिर्फ बेरोजगारी या गरीबी दिखाई उसने उस इज्जत की लड़ाई को दिखाया जो हर इंसान चुपचाप लड़ता है और फिर आई शोर एक पिता की कहानी जो अपने बहरे बेटे के इलाज के लिए दुनिया से भिड़ जाता है थिएटर में बैठे हर शख्स की आंखें नम हो गई क्योंकि वहां पर्दे पर सिर्फ एक किरदार नहीं रो रहा था हर पिता हर मां अपनी औलाद के लिए तड़पती दिख रही थी और जब क्रांति रिलीज हुई तो जैसे लोगों के दिलों में फिर से आजादी की आग जल उठी वो फिल्म नहीं वह एक दौर था एक जुनून था जिसने हर हिंदुस्तानी को याद दिलाया कि आजादी सिर्फ मिली नहीं थी .
उसे लड़कर छीना गया था मनोज कुमार की फिल्में से लोग सिनेमाघर में ताली बजाकर नहीं निकलते थे वह सोचते हुए निकलते थे कुछ बदलने की चाह लेकर कुछ कहने की हिम्मत लेकर उनके सिनेमा ने नायक नहीं गड़े इंसान बनाए निजी जीवन चमक के पीछे की सादगी अब देखिए जनाब आज के जमाने में फिल्मी सितारों की पहचान क्या रह गई है बड़ी गाड़ियां महंगी घड़ियां चमचमाती पार्टियां और पेज थ्री की हेडलाइंस जहां पहले आई सभ्यता जहां पहले हर तरफ बस दिखावा जितना ज्यादा शोर उतना बड़ा स्टार लेकिन मनोज कुमार अरे वो तो जैसे किसी और ही मिट्टी के बने थे सिनेमा के सबसे बुलंद दौर में भी जब वह सुपरस्टार थे तब भी उन्होंने ना कभी अफेयर्स के चर्चों में जगह पाई ना किसी गसिप कॉलम में ना झगड़ों की सुर्खियों में ना किसी टीआरपी की हेडलाइन में जहां भी दिखाई दिए सफेद कुर्ता हल्की मुस्कान और आंखों में एक शांति एक ऐसी सादगी जो आज के दौर में ढूंढे से भी नहीं मिलती और उस सादगी को पूरा करती थी उनकी पत्नी शशि गोस्वामी कैमरे से दूर लाइमलाइट से दूर पर मनोज कुमार जी के हर सफर में कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाली एकदम वैसी जीवन संगिनी जैसी कहानियों में मिलती है उनके बेटे कुणाल गोस्वामी ने भी फिल्मों की दुनिया में कदम रखा घूंघट कलंक का टीका पैदाइश जैसी कुछ फिल्मों में दिखाई दिए मगर क्या कहें पापा जैसी ऊंचाई ना पा सके लेकिन मनोज कुमार ने कभी उस तुलना का बोझ अपने बेटे पर नहीं डाला एक बार किसी इंटरव्यू में उन्होंने बड़ी खूबसूरती से एक बात कही थी हर किसी को भारत नहीं बनना पड़ता बेटा बस अच्छा इंसान बनो वही सबसे बड़ी फिल्म है सोचिए कितनी गहराई है इस बात में जहां आज के पिता बच्चों को टॉपर और सक्सेसफुल बनने का प्रेशर देते हैं वहां मनोज कुमार ने बस इतना कहा इंसानियत मत छोड़ना क्योंकि मनोज जी जानते थे पर्दे पर हीरो बनना आसान है लेकिन असली जिंदगी में एक अच्छा इंसान बन पाना सबसे मुश्किल काम है .
परिवार को मिली विरासत अब जब मनोज कुमार हमारे बीच नहीं है तो दिल में एक सवाल बार-बार उठता है कि अब उनकी विरासत का वारिस कौन है कौन संभालेगा वह सब कुछ जो उन्होंने इतने वर्षों की मेहनत ईमानदारी और सादगी से कमाया कहने को तो बहुत कुछ है मुंबई के जूहू इलाके में उनका आलीशान बंगलो वो घर जो सिर्फ ईंट पत्थर का ढांचा नहीं बल्कि सिनेमा के इतिहास का एक हिस्सा है इसके अलावा शहर के अलग-अलग हिस्सों में फ्लैट्स उत्तर भारत में कुछ जमीनें सब कुछ आज उनकी पत्नी शशि गोस्वामी और बेटे कुणाल के पास है और क्यों ना हो यह दौलत उन्होंने अपने खून पसीने से कमाई थी और दौलत सिर्फ जमीन जायदाद तक सीमित नहीं थी उनके नाम से आज भी फिल्मों की रॉयल्टी आती है फिल्में जब भी किसी चैनल पर दिखाई जाती है तो सिर्फ पर्दे पर नहीं मनोज कुमार फिर से जिंदा हो जाते हैं और उनके नाम से बनी कुछ कंपनियां भी हैं जिनसे आज भी आमदनी होती है एक सशक्त स्थिर विरासत लेकिन दोस्तों अगर आप मुझसे पूछें कि मनोज कुमार की असली विरासत क्या है तो मैं कहूंगा वो ना तो बंगला है ना बैंक बैलेंस उनकी असली विरासत है वह एहसास जो उन्होंने हिंदुस्तान के दिलों में जगा दिया वो देशभक्ति जो उन्होंने पर्दे से लोगों के लहू में उतार दी आज भी जब कोई बच्चा जय जवान जय किसान सुनता है तो उसके साथ मनोज कुमार की छवि उभरती है.
जब कोई नौजवान रोटी कपड़ा और मकान की बहस करता है तो असल मुद्दों पर सवाल उठता है वही जो उनकी फिल्मों ने उठाई थी इसलिए विरासत दीवारों में नहीं दिलों में जिंदा रहती है और मनोज कुमार की सबसे बड़ी विरासत आज भी हर उस इंसान के दिल में धड़क रही है जिसे अपने देश से प्यार है जनता की प्रतिक्रिया जब सड़कों पर सन्नाटा था उनकी मौत की खबर जब सामने आई तो कुछ टीवी चैनल्स ने सिर्फ एक लाइन चलाई बॉलीवुड के भारत कुमार का निधन लेकिन सोशल मीडिया पर जैसे सैलाब आ गया एक बुजुर्ग व्यक्ति ने ट्वीट किया बचपन में मनोज कुमार की फिल्म देखी थी तभी देश से प्यार हुआ था किसी ने लिखा अब भारत सिनेमा के पर्दे से चला गया तो किसी ने कहा अब कौन दिखाएगा हमें सच्चा हिंदुस्तान उनकी अंतिम यात्रा बहुत सादा रही जैसा वह खुद थे लेकिन जितने लोग उनके लिए घर में बैठे बैठे रोए शायद किसी सितारे को वह खामोश श्रद्धांजलि नहीं मिली होगी एक सवाल क्या कभी लौटेगा भारत कुमार आज जब हम बॉलीवुड की ओर देखते हैं.
वहां बड़े सितारे हैं बड़ी गाड़ियां करोड़ों की फिल्में लेकिन क्या कोई ऐसा है जो भारत की तरह बात करता है क्या अब कोई फिल्मकार होगा जो किसान की गरीबी को ग्लैमर से बड़ा मानेगा क्या कोई फिर से पूरब और पश्चिम जैसा सपना दिखाएगा शायद नहीं शायद मनोज कुमार इसलिए भी खास थे क्योंकि वह वक्त अब बीत चुका है लेकिन अगर कहीं से कोई बच्चा आज उनकी फिल्म देखे और कहे मैं बड़ा होकर भारत बनूंगा तो समझिए मनोज कुमार आज भी जिंदा है अंतिम शब्द एक अमर नाम मनोज कुमार चले गए हां अब वो हमारे बीच नहीं है उनकी आवाज अब किसी स्टूडियो में गूंजती नहीं उनकी आंखें अब किसी सीन में नहीं चमकती लेकिन जो छू जाता है ना वह यह है कि उनकी पत्नी उनका बेटा और उनका पूरा परिवार आज भी उस खालीपन को महसूस कर रहा है जो सिर्फ एक इंसान नहीं एक युग छोड़कर जाता है और हम हम दर्शक हम भी उन्हें उसी भाव से याद कर रहे हैं जिस भाव से कभी उन्होंने हमें सिनेमा के जरिए देश से जोड़ दिया था और शायद शायद तिरंगा भी आज कुछ मायूस है क्योंकि जिस शख्स ने उसे पर्दे पर इतनी इतनी इज्जत इतना गौरव दिया वो अब उसे सलाम करने के लिए मौजूद नहीं है.
एक बात पक्की है दोस्तों जब भी देशभक्ति की बात होगी जब भी पर्दे पर कोई मां अपने बेटे को सीमा पर भेजेगी जब भी कोई किसान आसमान की तरफ देखकर इंतजार करेगा बादलों का तब मनोज कुमार याद आएंगे उनकी आंखें उनके शब्द उनका चेहरा हर उस पल में जिंदा होंगे जहां दिल हिंदुस्तान के लिए धड़केगा मनोज कुमार आप सिर्फ एक अभिनेता नहीं थे आप इस देश की आत्मा थी अगर आज आपकी आंखें भी नम है अगर आपको भी लगता है कि मनोज कुमार ने हमारे दिलों में कुछ छोड़ दिया है तो यह वीडियो सिर्फ देखिए नहीं इस श्रद्धांजलि को और लोगों तक पहुंचाइए वीडियो को लाइक जरूर करिए और कमेंट में बस इतना लिखिए भारत कुमार अमर रहें क्योंकि कुछ लोग सिर्फ फिल्मों में नहीं हमारी रूह में जिंदा रहते.