फिल्मों में आने से पहले कहा रहते थे गोविंदा, जानिए सुपरस्टार बनने से पहले की कहानी।

कभी सोचा है जो इंसान अपनी एक्टिंग से करोड़ों लोगों के दिलों पर राज करता है जिसके डांस मूव्स ने 90 के दशक की धड़कनें तेज कर दी थी उसका असली घर कहां है उसका गांव कैसा दिखता है आज हम बात करेंगे उस चेहरे की जिसने बॉलीवुड को हंसना सिखाया स्टाइल का नया रंग दिया और अपने गांव से निकलकर पूरी इंडस्ट्री का हीरो नंबर वन बन गया दिल जाने जिगर तुझ पे निसार किया है हां दोस्तों हम बात कर रहे हैं गोविंदा की और आज की कहानी सिर्फ उसकी फिल्मों की नहीं बल्कि उसके गांव घर संघर्ष और इंसानी जज्बातों की भी है.

1963 तारीख 21 दिसंबर जगह विरार जो आज मुंबई की चकाचौंध में घुल चुका है मगर तब तब वह एक खामोश और हरियाली से लिपटा हुआ गांव हुआ करता था ना हाईवे ना मॉल ना कोई ट्रैफिक का शोर बस खेतों की हवा मिट्टी की महक और लोगों की सीधी साधी जिंदगी और वहीं उसी विरार के एक कोने में एक छोटा सा खपरैल वाला घर था जिसकी दीवारें मिट्टी की थी जहां छत से बारिश की बूंदे टपकती थी और आंगन में मां के गीतों की गूंज होती थी उसी घर में जन्म लिया एक मासूम से बच्चे ने जिसका नाम रखा गया गोविंदा अरुण आहूजा अब कहानी उनके खून में बहते टैलेंट की गोविंदा के पिता अरुण कुमार आूजा बॉलीवुड के उस दौर के एक जाने-माने अभिनेता थे 1940 के दशक में उन्होंने कई फिल्में की शहरत भी कमाई तालियां भी बटोरी लेकिन किस्मत का खेल देखिए एक दौर ऐसा भी आया जब फिल्में फ्लॉप होने लगी कर्जा बढ़ा सपने सिकुड़ गए और आखिरकार अरुण जी ने फिल्म इंडस्ट्री को अलविदा कह दिया अब परिवार की जिम्मेदारी आई मां पर निर्मला देवी एक शास्त्रीय गायिका जिनकी आवाज में आत्मा बसती थी वो रेडियो पर गाती थी मंचों पर परफॉर्म करती और साथ ही छह बच्चों की परवरिश भी करती.

जी हां गोविंदा के परिवार में थे चार बेटे और दो बेटियां लेकिन सबसे छोटा सबसे प्यारा और सबसे ज्यादा मां के कलेजे से चिपका रहने वाला जो बच्चा था वह था हमारा गोविंदा जिसके गालों पर हर समय मुस्कान खेलती थी जो खेतों में भागता कभी नाचता तो कभी अकेले ही पेड़ के नीचे फिल्मी डायलॉग बोलने की कोशिश करता कौन जानता था विरार की उस धूल भरी गली से उठकर यह बच्चा एक दिन हीरो नंबर वन कहलाएगा क्योंकि असली स्टारडम वहीं से शुरू होता है जहां सपनों की शुरुआत होती है अपने गांव अपनी मिट्टी से आज आप गोविंदा को जूहू के शानदार बंगले में देखें जहां बाहर महंगी गाड़ियां खड़ी होती हैं और अंदर झूमते हैं क्रिस्टल के झूमर तो जरा एक पल को आंखें बंद कीजिए और उस दौर में जब गोविंदा का असली घर था विरार की एक साधी सी गली में हां वही विरार जहां घर के बाहर नीम का पेड़ था और अंदर मिट्टी की दीवारें टूटी हुई खाटें और एक वो मां की ममता भरी नजर वो घर ना सीमेंट से बना था ना वहां बिजली थी ना टीवी लेकिन फिर भी वहां रोशनी थी बच्चों की खिलखिलाहटों की और मां की आवाज में गूंजती लोरी की एक बार किसी ने गोविंदा से पूछा “आपका बचपन कैसा था?” तो उन्होंने मुस्कुराकर जवाब दिया हमारा घर एक झोपड़ी जैसा था पर वहां बहुत प्यार था क्योंकि वह घर सिर्फ ईंट पत्थरों से नहीं बना था वो बना था मां के आंचल से उस थाली से जिसमें छह बच्चों का खाना एक साथ परोसा जाता था और उस मंदिर की घंटी से जहां हर शाम गोविंदा की मां उन्हें हाथ पकड़ कर ले जाया करती थी.

कई लोग सोचते हैं कि मंदिर जाना एक परंपरा होती है पर निर्मला देवी के लिए वह एक आशीर्वाद की प्रक्रिया थी हर दिन वह अपने बेटे गोविंदा को मंदिर ले जाकर भगवान से कहती थी इसे बड़ा इंसान बना देना पर इसका दिल छोटा ना करना और वही हुआ वो बच्चा जो टूटी चप्पलों में स्कूल से भागकर आता था और मंदिर की घंटी के नीचे आंखें मूंद कर कुछ मांगता था वो एक दिन करोड़ों लोगों की दुआ बन गया कहते हैं ना जहां बचपन बीता हो वह महल नहीं मंदिर होता है और गोविंदा का मंदिर था वह मिट्टी का घर विरार में अब जरा सोचिए एक ऐसा लड़का जो विरार की गलियों से निकलकर वसई के कॉलेज तक पहुंचा जहां बाकी लड़के फॉर्म भरते वक्त सोचते थे कि आगे बैंक में नौकरी करनी है वहीं एक गोविंदा था जिसकी आंखें क्लास रूम की दीवारों में नहीं बल्कि कैमरे की चमक में सपने ढूंढ रही थी.

गोविंदा ने अन्ना लीला कॉलेज वसई से कॉमर्स की डिग्री ली कागज पर लिखा था बीकॉम पर दिल की डायरी में लिखा था एक दिन पर्दे पर छा जाना है मुझको तो भा गई हुस्न की सादगी कॉलेज की क्लासें तो बस एक औपचारिकता थी असल पढ़ाई तो चल रही थी मुंबई लोकल के डिब्बों में जहां वह हर दिन सफर करता था अपने सपनों की ओर उसने फिल्मों में आने से पहले बहुत मेहनत की छोटे-मोटे विज्ञापनों में काम किया जहां किरदार से ज्यादा उसकी आंखें डायलॉग बोलती थी डांस सीखा स्टाइल ऐसा कि हर मूव में बिजली दौड़ जाए बॉडी बनाई कंधे ऐसे कि जिम्मेदारी उठा लें और खुद को हर उस मुकाम के लिए तैयार किया जहां से सिर्फ नसीब वालों की एंट्री होती है पर यह रास्ता रेड कारपेट वाला नहीं था दोस्त यह रास्ता कांटों से भरा था क्योंकि तब का बॉलीवुड ना तो स्टार किड्स का गढ़ था और ना ही नेपोटिज्म का इतना जोर था कि एक फोन कॉल से फिल्म मिल जाए वो दौर था मेहनत संघर्ष और असली टैलेंट का जहां किसी गॉड फादर की नहीं बल्कि अपनी मां की दुआ और अपने पसीने की जरूरत होती थी.

गोविंदा वह नाम है जो बिना किसी गॉड फादर के सिर्फ अपने हुनर आत्मविश्वास और अपने एक सपने के दम पर सपनों की नगरी में अपनी एक जगह बना गया और शायद इसीलिए जब वो पहली बार स्क्रीन पर आया तो लोगों को लगा यह कोई नया चेहरा नहीं यह तो अपना सा लगता है अब कहानी उस मोड़ पर पहुंचती है जहां एक साधारण लड़के का सपना पहली बार सिल्वर स्क्रीन पर चमकता है साल था 1986 फिल्म का नाम था इल्जाम और पर्दे पर पहली बार वो चेहरा दिखाई दिया जो ना किसी फिल्मी खानदान से था ना ही पीछे कोई बड़ा नाम था फिर भी जैसे ही स्क्रीन पर आया तो दर्शकों ने सीटियां बजा दी अंगना में बाबा दुआारे पे मां गोविंदा का डेब्यू हुआ और बस यहीं से इतिहास लिखा जाने लगा कहते हैं ना कुछ लोग अभिनय करते हैं और कुछ खुद में ही अभिनय होते हैं और गोविंदा उन्हीं में से थे इल्जाम के बाद तो जैसे सिलसिला शुरू ही हो गया हर शुक्रवार हर हफ्ता सिनेमाघर में बस एक ही नाम गोविंदा.

इतना काम इतनी स्पीड कि लोग कहने लगे अगर फिल्मों की ट्रेन चल रही है तो उसमें ड्राइवर सिर्फ गोविंदा है डायरेक्टर्स का कहना था गोविंदा सिर्फ एक एक्टर नहीं है वो एक पूरी एनर्जी है कैमरा ऑन होते ही जैसे बिजली दौड़ जाती है उसमें फिर आई वो फिल्में जो आज भी नस्टेल्जिया का दूसरा नाम है कुली नंबर वन जहां उन्होंने साबित कर दिया कि कॉमेडी और रोमांस दोनों में उनका कोई सानी नहीं राजा बाबू जिसमें उनके मासूम यट बदमाश किरदार ने हर दिल को जीत लिया हीरो नंबर वन जिसने उन्हें लिटरली नंबर वन बना दिया और फिर शोला और शबनम जिसमें उनका एक्शन इमोशन और स्टाइल आ हा हा तीनों का तड़का था इन फिल्मों ने गोविंदा को सिर्फ सुपरस्टार नहीं बनाया बल्कि वो जनता का हीरो बन गया ऐसा स्टार जो ना चश्मे से एटीट्यूड दिखाता था ना महंगे सूट पहनकर घमंड करता था वो बस अपनी मासूम हंसी झकास डांस और बेमिसाल टाइमिंग से लोगों के दिलों में उतर गया यूपी वाला ठुमका लगाऊं के हीरो जैसे नाच के दिखाऊं गोविंदा का नाम अब टिकट खिड़की की गारंटी था थिएटर के बाहर भीड़ अंदर हंसी की गूंज और पर्दे पर एक ऐसा चेहरा जो हर उम्र को अपना सा लगता था.

अब आप जरा आंखें बंद कीजिए और सोचिए एक ऐसा बंगला जिसके गेट पर चमचमाती नाम पट्टी लगी हो आूजा विला हां यही है आज का गोविंदा का ठिकाना मुंबई के जूहू इलाके का वो आलीशान बंगला जहां हर ईंट में कामयाबी की कहानी बसती है भीतर दाखिल होते ही दिखता है एक खूबसूरत लॉन जहां हरियाली में भी कैमरे की चमक सी झलकती है स्विमिंग पूल है जिम है पूजा घर है जहां हर सुबह अगरबत्तियों की खुशबू के साथ प्रार्थना होती है और एक कोना वो भी है जहां फिल्मी यादों के पोस्टर पुरानी तस्वीरें और अवार्ड सजे हुए हैं जैसे दीवारें भी कह रही हो यह वही है जो कभी विरार की गलियों में नाचता था लेकिन दोस्त इस बंगले की सबसे बड़ी पहचान ना तो उसका साइज है और ना ही उसकी चमक इस घर की सबसे अनमोल चीज है गोविंदा का दिल वह दिल जो आज भी विरार में धड़कता है.

आज भी जब गोविंदा किसी गांव के मैदान में बच्चों को नाचते हुए देखते हैं तो उनके होठों पर एक मासूम मुस्कान आ जाती है क्योंकि वह जानते हैं वह बच्चा मैं ही तो था एक वक्त था जब उन्होंने भी बिना चप्पल बिना म्यूजिक सिस्टम के बस तालियों पर डांस करना सीखा था और आज जब वह उन्हीं बच्चों में वही जुनून वही चमक देखते हैं तो उनके अंदर का विरार वाला गोविंदा फिर से जिंदा हो उठता है क्योंकि बंगले बदल जाते हैं लेकिन बचपन की मिट्टी कभी नहीं छूटती वो कहते हैं ना जहां से चले हो अगर वह याद रहे तो मंजिल कभी घमंड नहीं बनती गोविंद आज सुपरस्टार हैं लेकिन वह आज भी उसी विरार की रूह रखते हैं जहां सपने आंखों से पहले दिल में पलते हैं तो अब कहानी पहुंचती है उस मोड़ पर जहां एक सुपरस्टार का दिल धड़कता है सिर्फ कैमरे के लिए नहीं बल्कि अपने प्यार अपने परिवार के लिए भी गोविंदा की जितनी जिंदगी रंगीन फिल्मों में दिखती है उससे कहीं ज्यादा इमोशनल और सच्ची है उनके दिल की दुनिया उन्होंने शादी की अपनी बचपन की दोस्त सुनीता से एक ऐसा रिश्ता जो पर्दे से दूर लेकिन दिल के बेहद करीब था यह शादी थी लव मैरिज पर वैसी नहीं जैसी आजकल इंस्टाग्राम पर होती है यह थी एक गोपनीय कहानी जिसे उन्होंने सालों तक मीडिया से छुपा कर रखा क्योंकि उस दौर में एक एक्टर की शादी उसके करियर को खतरे की तरह देखा जाता था।

लेकिन गोविंदा ने रिश्ते को पर्दे पर नहीं अपने सीने में संभाल कर जिया सुनीता एक शांत समझदार और मजबूत स्त्री जो गोविंदा के पीछे खड़ी नहीं रही बल्कि उनके साथ कदम से कदम मिलाकर चली जब शोहरत का सैलाब आया तो उन्होंने अपने परिवार को थामे रखा और जब विवादों की आंधियां आई तो उन्हीं ने गोविंदा को संभाला आज उनके दो बच्चे हैं नर्मदा जिन्हें हम टीना आूजा के नाम से भी जानते हैं उन्होंने फिल्मों में कदम रखा लेकिन वो छाया कहां मिलती है जो खुद गोविंदा की परछाई में भी स्टारडम से भरी है और बेटा यशवर्धन आूजा जो अपने पिता की तरह कैमरे की दुनिया में उतरने की तैयारी कर रहे हैं पर गोविंदा जैसा बनने के लिए सिर्फ डीएनए नहीं वह दीवानगी चाहिए जो विरार की मिट्टी से आती है आज गोविंदा का परिवार एक साथ है मजबूत मुस्कुराता हुआ और गर्व से भरा हुआ और जब उनसे कोई पूछता है आप इतने बड़े स्टार होकर भी इतने जमीन से जुड़े कैसे हैं तो उनका जवाब होता है क्योंकि हम विरार से हैं पर दिल से हमेशा बड़े थे क्योंकि गोविंदा की कहानी सिर्फ एक्टर बनने की नहीं है बल्कि एक बेहतर पति एक सच्चे पिता और एक सरल इंसान बनने की भी है कभी-कभी जिंदगी की सबसे खूबसूरत कहानियां वहां से शुरू होती हैं जहां उम्मीदें कमजोर और जेबें खाली होती हैं और गोविंदा की कहानी भी कुछ ऐसी ही थी।

एक वक्त था जब वह विरार की गलियों में बिना चप्पल के दौड़ते थे पैरों में छाले होते थे लेकिन सपनों की रफ्तार थमती नहीं थी उस बच्चे के पास ना जूते थे ना फिल्मी रिश्ते बस एक जुनून था कुछ कर दिखाने का और आज वही बच्चा दुनिया के सबसे महंगे डांस रियलिटी शो में जज बनता है जहां उसकी एक मुस्कान करोड़ों की टीआरपी बन जाती है और उसका उठाया एक हाथ हजारों टैलेंट्स का सपना बन जाता है अच्छा एक और किस्सा सुनिए जब गोविंदा फिल्मों में आना चाहते थे तो उन्होंने एक बार एक नामी एक्टिंग स्कूल में दाखिले के लिए फॉर्म भरा था लेकिन उन्हें यह कहकर ठुकरा दिया गया कि आप में स्टार जैसी पर्सनालिटी नहीं है आज हालात यह हैं कि उन्हीं एक्टिंग स्कूलों में गोविंदा की क्लिप्स दिखाकर अभिनय सिखाया जाता है और उसकी मिमिक्री लाखों लोग करते हैं क्योंकि उसकी चाल उसके डायलॉग्स और उसका हंसने का अंदाज सबके लोगों की जुबान पर है बैठ के आंधी कमरिया से सारी के आई अब आंटी की बारी अब जरा इस दृश्य को देखिए एक वक्त था जब गोविंदा अपनी मां के हाथों की गर्म पराठों के लिए तरसते थी वो मां जो कभी अपने बेटे को दो वक्त की रोटी भी मुश्किल से दे पाती थी आज वो मां उसी बेटे के साथ विदेश घूमती है।

फाइव स्टार होटल्स में रहती है और सबसे अहम बात पूरी दुनिया उस बेटे को देखती है जिसे कभी सिर्फ मां ही पहचानती थी यह कहानी सिर्फ एक सफलता की नहीं है यह कहानी है कर्म किरदार और किस्मत को बदल देने की क्योंकि अगर सपना सच्चा हो तो विरार से निकलकर चूहू तक की दूरी सिर्फ वक्त की बात होती है तो दोस्तों अगली बार जब आप गोविंदा को स्क्रीन पर देखेंगे तो सिर्फ उनकी कॉमिक टाइमिंग ही नहीं उनकी विरार की जड़े भी याद रखिएगा क्योंकि सुपरस्टार तो बहुत होते हैं पर हीरो नंबर वन सिर्फ एक ही होता है।

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