बॉलीवुड की सबसे यादगार फिल्मों में से एक यह फिल्म जिसे रिलीज हुए दो दशक से ज्यादा का समय बीत चुका है लेकिन इसकी भव्यता और कहानी आज भी लोगों के दिलों में बसी हुई है इस फिल्म के सिनेमेटोग्राफर विनोद प्रधान ने हाल ही में एक दिलचस्प किस्सा साझा किया जिससे पता चलता है कि इस फिल्म की शूटिंग कितनी भव्य थी हम बात कर रहे हैं फिल्म देवदास की ये किसकी है आहट ये किसका है साया जिसको लेकर विनोद प्रधान ने बताया कि देवदास की शूटिंग के दौरान मुंबई के सभी जनरेटर्स फिल्म के सेट्स पर इस्तेमाल होते रहे थे .
इसकी वजह से कई शादियों को या तो टालना पड़ा या फिर दोबारा शेड्यूल करना पड़ा था उन्होंने बताया कि फिल्म के सेट्स इतने बड़े थे कि उन्हें रोशन करने के लिए भारी मात्रा में बिजली की जरूरत थी फिल्म के निर्देशक संजय लीला भंसाली अपनी फिल्मों में भव्यता और बारीकियों का खास ध्यान रखते हैं देवदास में विशाल हवेलियों चमचमाते झूमरों और खास लाइटिंग का उपयोग किया गया था.
विनोद प्रधान ने बताया कि फिल्म में पारो यानी ऐश्वर्या राय का घर कांच से बना था जिसकी लाइटिंग करना काफी मुश्किल था वहीं चंद्रमुखी यानी माधुरी दीक्षित का घर करीब 1 किलोमीटर लंबा सेट था जिसे रोशन करने में काफी मेहनत लगी थी हम ये हरा रंग डाला खुशी ने विनोद प्रधान के अनुसार आमतौर पर फिल्मों की शूटिंग में एक दिन में 15 से 20 शॉट्स लिए जाते हैं लेकिन देवदास में यह संख्या सिर्फ तीन से चार थी इसकी बड़ी वजह लाइटिंग थी जिसे परफेक्ट बनाने के लिए ज्यादा समय लिया गया उन्होंने कहा मैं तेजी से काम करने के बजाय क्वालिटी पर ध्यान देता हूं और देवदास के सेट पर यह संभव था क्योंकि संजय भंसाली ने मुझे पूरा सपोर्ट दिया उन्होंने आगे बताया कि फिल्म मेकिंग के दौरान बजट की दिक्कतें भी आई.
लेकिन संजय लीला भंसाली ने उनसे साफ कहा कि वे क्वालिटी के साथ कोई समझौता ना करें विनोद प्रधान इस बात से हैरान थे कि भंसाली ने उनसे जल्दी शूट खत्म करने के लिए नहीं कहा बल्कि बेहतरीन काम करने की बात कही की दुनिया में वो है पलकों की निंदिया में वो है बहरहाल साल 2002 में रिलीज हुई देवदास फेमस लेखक शरद चंद्र चट्टोपाध्याय के उपन्यास पर आधारित थी.
फिल्म में शाहरुख खान ऐश्वर्या राय और माधुरी दीक्षित ने लीड रोल प्ले किए थे अपनी भव्यता दमदार एक्टिंग और शानदार निर्देशन के कारण यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सुपरहिट रही और आज भी इसे भारतीय सिनेमा की सबसे शानदार फिल्मों में गिना जाता है कौन कमबख्त बर्दाश्त करने को पीता है हम तो पीते हैं कि यहां पर बैठ सके.