अमेरिका टैरिफ से भारत के किन सेक्टर पर प्रभाव पड़ेगा।

अब बड़ा सवाल यह है कि क्या टैरिफ के इस जाल में अमेरिका खुद भी फंस सकता है या फिर बाकी देशों को ही फंसा रहा है क्या अमेरिका अपने ही जाल में खुद तो नहीं फंस जाएगा राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा था कि जो देश अमेरिका पर जितना लगाता है अमेरिका भी उन देशों पर उतना ही लगाएगा लेकिन आज वह ऐसा कर नहीं पाए इसकी जगह उन्हें सभी उन्होंने सभी देशों को 50 पर का डिस्काउंट उन्हें देना पड़ा और ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि यह अमेरिका के लिए भी एक बड़ी चुनौती है.

कैसे चुनौती है उदाहरण के लिए अमेरिका अब तक भारत के किसानों से जो सेब खरीदता था उस पर 0 पर टैक्स लगाता था अगर भारत से कोई सेब ₹2000000 किलोग्राम के रेट पर बिकता था यानी अमेरिका इस पर कोई टैक्स नहीं लगा आता था बाकी ऊपर सेसे जो खर्चा होता था जैसे ट्रांसपोर्टेशन का खर्चा है या दूसरा खर्चा है या वहां का जो लोकल वेंडर है वह अपना मुनाफा लेगा उसको मिलाकर ₹ का सेब वहां ज्यादा से ज्यादा में बिकता था लेकिन अब से अमेरिका भारत के इन्हीं सेबों पर 26 पर का लगाएगा जिससे इन सेबों की कीमत अमेरिका के बाजार में बढ़कर 500 किलो हो जाएगी यानी यह सेब या कोई भी भारत में बना हुआ सामान अब अमेरिका में पहले के मुकाबले महंगे दाम पर बिकेगा इसका मतलब यह हुआ कि इस टैरिफ के बढ़ने से सिर्फ अमेरिका में अपना सामान बेचने वाले तमाम देशों को नुकसान नहीं होगा बल्कि अमेरिका में भी विदेशों से आने वाले प्रोडक्ट्स अब महंगे हो जाएंगे और वहां लंबे समय तक महंगाई दर 5 पर से ज्यादा रह सकती है.

इसको आप ऐसे समझिए कि अगर भारत से एक्सपोर्ट किया गया सेब 00 की बजाय वहां 00 में मिलने लगेगा या किसी भी देश का कोई सामान जो अब अमेरिका में वहां के बाजार में बिकता है अगर वह पहले के मुकाबले ज्यादा दाम पर बिकेगा तो इसका पैसा आखिर किसकी जेब से आ रहा है इसका पैसा अमेरिका में रहने वाले लोगों की जेब से आएगा क्योंकि जो व्यक्ति पहले का सेब खरीद रहा था अब उसे उसी के लिए देने पड़ेंगे यह जो अतिरिक्त हैं यह अमेरिका के जो निवासी हैं वही तो देंगे यानी अमेरिका के बाजारों में महंगाई आ जाएगी ऐसी स्थिति में अमेरिका में कॉस्ट ऑफ लिविंग का संकट बढ़ जाएगा.

वहां पर रहना खाना हर चीज महंगी हो जाएगी और अमेरिका में आर्थिक मंदी भी आ सकती है जिससे लोग बेरोजगार हो सकते हैं क्योंकि लोगों का जो मंथली खर्चा है वह बढ़ जाएगा क्योंकि वहां पर सारा सामान महंगा हो जाएगा यह अनुमान अमेरिका के ही एक मशहूर बैंक गोल्डमैन सेक्स का है जिसने यह कहा कि इस फैसले से अम अमेरिका में मंदी का खतरा 20 पर से 35 पर तक बढ़ गया है अमेरिका के लिए सबसे बड़ी चुनौती है कि मौजूदा समय में उसकी अर्थव्यवस्था 15 पर तक उसके आयात पर निर्भर है और अगर टैरिफ के कारण आयात यानी इंपोर्ट कम हो जाता है तो उसकी अ अर्थव्यवस्था अस्थिर हो जाएगी और अमेरिका बहुत बड़ी आर्थिक मुश्किल में भी फस सकता है इस बात को राष्ट्रपति ट्रंप भी जानते हैं और इसीलिए उन्होंने प्रोकल टैरिफ को लागू करते हुए इसमें चुपचाप 50 पर की छूट भी दे दी और ऐसा करके उन्होंने किसी देश पर एहसान नहीं किया है बल्कि यह उनकी अपनी यानी अमेरिका की अपनी मजबूरी है क्योंकि आप यह समझिए कि जैसे ही अमेरिका में यह सारा सामान महंगा होगा वहां पर कॉस्ट ऑफ लिविंग बढ़ जाएगी लेकिन अमेरिका के जो लोगों की तनख्वा हैं वह तो वैसी नहीं बढ़ रही वह तो उतनी ही है इस बात को आप भारत के ही एक और उदाहरण से समझिए.

राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा है कि वह भारत पर 26 पर टैरिफ लगाएंगे लेकिन उन्होंने इसमें भारत से आने वाली दवाइयों फार्मास्यूटिकल प्रोडक्ट्स सेमीकंडक्टर चिप्स तांबे सोने और ऐसे एनर्जी रिसोर्सेस और मिनरल्स पर 0 पर टैरिफ जारी रखने का ऐलान किया है जो अमेरिका में इस समय नहीं है वन नहीं बनते अमेरिका ने ऐसा करके भारत पर नहीं बल्कि खुद पर एहसान किया है क्योंकि अगर वह भारत से आने वाली दवाइयों पर भी 26 पर लगाता तो यह दवाइयां अमेरिका में और महंगी हो जाती और अमेरिका में मेडिकल इंफ्लेशन यानी इलाज और दवाइयों की महंगाई पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा हो जाती वहां लोगों को अब दवाइयों के लिए ज्यादा पैसा देना पड़ता यहां आपको यह भी समझना चाहिए कि राष्ट्रपति ट्रंप टैरिफ पर आखिर इतना जोर दे क्यों रहे हैं क्या यह टैरिफ लगाना जरूरी था अमेरिका अब तक अपने व्यापार घाटे पर ज्यादा ध्यान नहीं देता था और उसकी सोच यही थी कि वह तेल और हथियार बेचकर दुनिया भर में अपने व्यापार घाटे को कम कर लेगा या कम से कम बराबरी पर ले आएगा.

लेकिन अब पिछले कुछ वर्षों से अमेरिका दुनिया को ना तो ज्यादा हथियार बेच पा रहा है और ना ही ज्यादा तेल और गैस बेच पा रहा है जिसके कारण उसका व्यापार घाटा बढ़ता जा रहा है और इस घाटे को ही कम करने के लिए राष्ट्रपति ट्रंप अब रेसिप प्रोकल टैरिफ की ये नई नीति लेकर आए हैं नया आईडिया लेकर आए हैं भारत ने भी इस साल अमेरिका से तेल की खरीद को 67 पर तक बढ़ा दिया लेकिन इससे अमेरिका के घाटे में ज्यादा अंतर नहीं आया जिसके बाद राष्ट्रपति ट्रंप ने भारत पर भी रेसिप प्रोकल टैरिफ लगा दिया भारत की शुरुआत में सोच यह थी कि अमेरिका को क्या चाहिए पैसा ही तो चाहिए तो भारत ने शायद यह कोशिश की पहले कि आप यह टैरिफ मत लगाइए हम आपको किसी दूसरे रूप में पैसा दे देते हैं हम आपसे तेल खरीद लेंगे हम आपसे हथियार खरीद लेंगे आपका जेट इंजन खरीद लेंगे और बाकी का सामान खरीद लेंगे आपको पैसे से मतलब है यह पैसा चाहे टैरिफ के रूप में आए या किसी और सौदे के रूप में आए तो हम आपको वह पैसा दे देंगे लेकिन आप टैरिफ मत लगाइए शुरू में भारत ने कोशिश की और इसीलिए भारत ने अमेरिका से तेल खरीदना शुरू कर दिया और अमेरिका से खरीदे जाने वाले तेल में उन्होंने वृद्धि कर दी.

लेकिन फिर भी अमेरिका माना नहीं अमेरिका का मानना है कि उसके ज्यादा टैरिफ लगाने से अगर दुनिया के आधे देश भी अपने यहां लगने वाले टैरिफ को कम कर लेते हैं तो इससे अमेरिका की कंपनियों का सामान इन देशों में सस्ता हो जाएगा और अमेरिका का इन देशों में निर्यात बढ़ जाएगा तो आप इसको ऐसे समझिए कि अमेरिका अपने यहां इंपोर्ट कम करना चाहता है और एक्सपोर्ट ज्यादा करना चाहता है वह चाहता है कि उसका जो सामान है व ज्यादा से ज्यादा देशों में सस्ते दामों पर बिके और अमेरिका दूसरे देशों से अपने इंपोर्ट को कम कर सके उदाहरण के लिए भारत अमेरिका की गाड़ियों पर 70 पर टैरिफ लगाता है जिसकी वजह से अमेरिका में बनने वाली 40 लाख की एक गाड़ी भारत में आकर 8 लाख की हो जाती है अब सोचिए ₹ लाख की गाड़ी को 68 या 70 लाख रप में भारत में कौन खरीदेगा और इसीलिए भारत में अमेरिका की गाड़ियां बिकती ही नहीं है आपने देखा होगा लेकिन अगर भारत की कंपनी अमेरिका में अपनी गाड़ियों को बेचना चाहती है तो अमेरिका उस उस पर सिर्फ % का टैक्स ही लगाता है जिससे भारत में बनी कोई 40 लाख की गाड़ी वहां ज्यादा से ज्यादा 41 लाख में बिकती है और इससे अमेरिका में भारत की गाड़ियां और दूसरा सामान सस्ते दामों पर बिकता है लेकिन अमेरिका का बना हुआ सामान भारत में महंगे दामों पर मिलता है.

इससे अमेरिका के प्रोडक्ट्स टैरिफ की वजह से यहां हमारे भारत के बाजारों में महंगे हो जाते हैं और इस महंगे होने के कारण भारत में उन्हें कोई खरीदता नहीं लेकिन भारत के जो प्रोडक्ट्स हैं वो अमेरिका में सस्ते मिलते हैं और सस्ते होने के कारण वो अमेरिका में ज्यादा बिकते हैं और भारत को अमेरिका से व्यापार में जबरदस्त फायदा इस समय होता है अब देखिए भारत ऐसा क्यों करता है कि वो अमेरिका से आने वाले सामान पर टैक्स लगा देता है वो इसलिए करता है क्योंकि भारत को अपने यहां हमारी जो देशी कंपनियां हैं हमारी जो भारतीय कंपनियां हैं उनको भी बचा कर रखना है भारत चाहता है कि वो पहले अपनी कंपनियों को प्रमोट करें इसीलिए विदेशों से आने वाले सामान को महंगा कर देता है और भारत में बने सामान को सस्ते दाम पर भारत में बेचा जाता है ताकि भारत के लोग भारत के ही सामान को खरीदें और हम अपनी कंपनियों को प्रमोट करें आपने देखा होगा विदेशों में बनी जो बड़ी-बड़ी गाड़ियां हैं जैसे जर्मनी में जो गाड़ियां बनती हैं वर्ष 2023 और 24 में अमेरिका ने भारत को ₹ 49000 करोड़ का सामान निर्यात किया था जबकि भारत ने अमेरिका को 6 42000 करोड़ का सामान निर्यात किया तो देखिए अमेरिका से हम लगभग 35 लाख करोड़ का सामान खरीदते हैं लेकिन अमेरिका हमारे यहां से लगभग 65 लाख करोड़ का सामान खरीदता है और इसी को व्यापार घाटा कहते हैं अमेरिका का यह व्यापार घाटा है जो लगभग लाख करोड़ रुपए का व्यापार घाटा आपको इसमें दिखाई दे रहा है.

अमेरिका इस व्यापार घाटे को कम करना चाहता है इसका मतलब यह कि अमेरिका को लगभग 3 लाख करोड़ रुपए का व्यापार घाटा हुआ जिसे हम अंग्रेजी में ट्रेड डेफिसिट भी कहते हैं हालांकि यह घाटा चीन के मुकाबले कुछ भी नहीं है अमेरिका को चीन से हर साल 26 लाख करोड़ रुपए का व्यापार घाटा होता है यानी देखिए भारत से तो सिर्फ 3 लाख करोड़ का व्यापार घाटा हो रहा है लेकिन चीन से इससे कहीं ज्यादा व्यापार घाटा होता है और पूरी दुनिया से अमेरिका को 80 लाख करोड़ रुपए का व्यापार घाटा होता है जिसे अब वो कम करना चाहता है और इसी वजह से राष्ट्रपति ट्रंप ये नया आईडिया लेकर आए हैं रेसिप प्रोकल टैरिफ का अब आप ये देखिए कि इस फैसले से भारत के किस-किस सेक्टर को कितना नुकसान होगा और कितने लोगों की नौकरियां खतरे में आ जाएंगी आप सब ये शायद सोचते होंगे कि ये सारी जो बातें हैं ये तो अर्थव्यवस्था की बातें हैं गणित के एक मुश्किल सवाल की तरह है जिसे देखते ही आदमी को बुखार चढ़ जाए लोग समझना नहीं चाहते लेकिन हम सरल भाषा में आपको यह बात समझा रहे हैं यह सिर्फ अर्थशास्त्रियों के नहीं इससे आपके जीवन पर भी असर पड़ेगा अच्छा असर भी पड़ सकता है बुरा भी पड़ सकता है भारत अमेरिका को हर साल 122000 करोड़ के स्मार्टफोन सर्किट बोर्ड्स और दूसरा इलेक्ट्रॉनिक सामान निर्यात करता है एक्सपोर्ट करता है बेचता है जिस पर अमेरिका जीरो से 2 पर का बहुत ही मामूली सा टैरिफ लगाता है और भारत में बने स्मार्टफोंस और इलेक्ट्रॉनिक आइटम्स अमेरिका में बहुत ही सस्ते बिकते हैं क्योंकि अमेरिका उन पर बहुत मामूली टैक्स लगा रहा है लेकिन अब इसी पर इसी सामान पर अमेरिका 26 पर टैरिफ लगाने लगेगा जिसकी वजह से हमारा जो ये निर्यात है यह कम हो सकता है क्योंकि इतने महंगे दाम पर भारत में बना ये सामान अमेरिका में लोग खरीदेंगे नहीं ऑर्डर नहीं मिलेंगे और इस प्रकार से भारत की जो कंपनियां हैं वह अमेरिका में सामान बेचना कम कर देंगी या बंद कर देंगी क्योंकि अमेरिका में जब सामान बिकेगा ही नहीं तो भारत की कंपनियां निर्यात कैसे करेंगी और भारत में तमिलनाडु और कर्नाटक की कंपनियों को इससे बहुत नुकसान हो सकता है.

यह वह कंपनियां हैं जो इस प्रकार के प्रोडक्ट्स का उत्पादन करती हैं और इन कंपनियों में बड़ी संख्या में कर्मचारियों की अब छटनी भी हो सकती है नौकरी जा सकती है या फिर उनकी सैलरीज कम हो सकती है क्योंकि इन कंपनियों के जो ऑर्डर्स हैं यानी जो इनकी मांग है अमेरिका में वह बहुत कम हो जाएगी जब मांग कम हो जाएगी तो सामान भी कम बनाएंगे सामान कम अगर बनाएंगे और बिक्री कम होगी तो जाहिर है इन्हें कॉस्ट कटिंग करनी पड़ेगी और अपने कर्मचारियों को नौकरी से निकालना पड़ेगा यह कहते हुए कि भाई अब हमें इतने सामान बेचने की जरूरत ही नहीं है तो आप अपने घर जाइए सबसे बड़ी बात यह है कि अमेरिका की कंपनी बहुत बड़ी कंपनी एल आपने नाम सुना होगा जो बनाती है एप्पल बेजती है दुनिया भर के बाजारों में अमेरिका में वापस बिकने के लिए जाएगा तो उस पर 26 पर टैक्स लगेगा चीन में बना हुआ कोई और हाथ से बने आभूषण निर्यात करता है लेकिन अब इन पर भी 26 पर टैरिफ लगने से अमेरिका में यह सारे आभूषण और यह सारी ज्वेलरी जेम्स यह सब महंगे हो जाएंगे जो कीमती पत्थर हम वहां पर बेज बेचते हैं और अगर इस सेक्टर में भारत का निर्यात कम होता है तो इससे पैसे का नुकसान तो होगा ही साथ ही सूरत और महाराष्ट्र की जो कंपनियां इन चीजों को निर्यात करती हैं उन्हें भी बहुत सारे लोगों को अब नौकरियों से निकालना पड़ेगा या फिर उनकी तनख्वा हों को कम करना पड़ेगा जो इस प्रकार के आभूषणों को अमेरिका निर्यात करते हैं इस फैसले से भारत के किसान भी बहुत प्रभावित होंगे क्योंकि भारत के किसान हर साल करोड़ रुपए की सब्जियां फल अनाज और चावल अमेरिका को निर्यात करते हैं और इस समय अमेरिका इन पर ज्यादा से ज्यादा सिर्फ 3 पर का टैक्स लगाता है यानी श का चावल अगर भारत से अमेरिका जाता है तो वह वहां 03 में बिकेगा यह टैक्स लगाकर लेकिन अब से भारत के किसानों के चावल अनाज और दूसरे सामानों पर 26 पर का लगेगा जिससे इस निर्यात में भी कमी आ सकती है क्योंकि अब यह सारा सामान खाने पीने का जो सामान है फल है सब्जियां है अनाज है।

भारत का यह वहां पर महंगा हो जाएगा और भारत के किसानों को इससे जबरदस्त नुकसान हो सकता है अमेरिका की नाराजगी इसलिए भी है क्योंकि अमेरिका के चावल पर भारत 80 पर लगाता है लेकिन भारत के चावल पर अमेरिका सिर्फ 2.7 पर टैरिफ लगाता है तो अमेरिका का अगर चावल कोई 00 का चावल अगर भारत में आता है तो टैक्स लगाकर वो ₹10 का हो जाता है भारत अगर ₹1 का चावल बेचता है अमेरिका में तो वो सिर्फ 03 का बिकता है तो इतना फर्क है और इसीलिए हमारे देश के जो लोग हैं वो कभी भी इतने महंगे दाम पर अमेरिका का चावल या अमेरिका का अनाज नहीं खरीदेंगे वह अपने देश का अनाज ही खरीदेंगे क्योंकि सस्ता है और इसीलिए आप में से ज्यादातर लोग ना तो अमेरिका से आने वाले फलों को खरीदते हैं ना सब्जियों को खरीदते हैं ना अनाज को खरीदते हैं ना वाक बादाम और अखरोट को खरीदते हैं हमारे किसानों के सामने सबसे बड़ी चुनौती है कि भारत में फसलों की औसत पैदावार दुनिया के कई देशों की औसत पैदावार से बहुत कम है आज भी हमारे किसान दुनिया भर के किसानों से पैदावार के मामले में बहुत पीछे हैं अमेरिका के बाद भारत में सबसे ज्यादा खेती की जमीन है लेकिन फसल उत्पादन अमेरिका से चार गुना कम है और चीन भारत से कम जमीन पर खेती करता है लेकिन हमसे कहीं ज्यादा फसल उगाता है भारत के किसानों के पास 1.08 हेक्टेयर का लैंड होल्डिंग साइज है औसतन जबकि चीन के पास सिर्फ औसतन 0.67 हेक्टेयर का लैंड होल्डिंग साइज है फिर भी चीन का कृषि उत्पादन भारत के किसानों से तीन गुना ज्यादा है यानी उतने ही हिस्से पर अगर भारत के किसान खेती करते हैं अमेरिका के किसान खेती करते हैं और चीन के किसान खेती करते हैं समान हिस्से पर तो चीन के किसान और अमेरिका के किसान उसी जमीन के हिस्से पर कहीं ज्यादा पैदावार करते हैं और हमारे किसान उससे बहुत कम पैदावार कर पाते हैं ऐसा इसलिए क्योंकि चीन रिसर्च और डेवलपमेंट पर ज्यादा खर्च करता है और वहां की खेती में विविधता है वहां पर टेक्नोलॉजी का भी बहुत इस्तेमाल होता है और वहां के किसान जो हैं वो बहुत विविधता के साथ दिमाग लगाकर टेक्नोलॉजी के साथ तब अपना अनाज उगाते हैं लेकिन भारत में ऐसा नहीं है और आज भी पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में बहुत सारे किसान सिर्फ एमएसपी के लिए गेहूं और धान की खेती करते चले जाते हैं।

इसके अलावा कुछ और उगाना नहीं चाहते क्योंकि उन्हें एमएसपी चाहिए जबकि अगर यही किसान दाल की खेती करना शुरू कर दें कोई और सब्जियां उगाना शुरू कर दें तो यह कहीं ज्यादा पैसा कमा सकते हैं और उनकी प्रति एकड़ फसल की पैदावार आज के मुकाबले बहुत बढ़ सकती है लेकिन हमारे किसान सिर्फ वही पैदावार करना चाहते हैं वही अनाज उगाना चाहते हैं जिन पर उन्हें एमएसपी मिलता है इसलिए जब भारत के कृषि बाजार में अमेरिका की एंट्री होगी और अमेरिका का चावल अमेरिका के सेब अमेरिका की दूसरी सब्जियां भारत की सब्जियों और फलों के दाम पर ही भारत में मिलने लगेंगे तो लोग किस देश के किसानों का सामान पहले खरीदेंगे आप खुद सोचिए अगर आपको अमेरिका का सेब और भारत का सेब एक ही दाम पर मिलने लगे तो आप किसे खरीदेंगे और यह तब होगा कि अगर भारत ने भी दबाव में आकर इस टैरिफ को कम कर दिया तब अमेरिका का सामान भी भारत में सस्ता हो जाएगा इसे आप यह समझ सकते हैं इससे कि इस फैसले से भारत की कंपनियों की चुनौती और उनका कंपटीशन बहुत बढ़ने वाला है इस समय भारत के लोग अमेरिका की कंपनियों का सामान इसलिए नहीं खरीद पाते क्योंकि यह सामान बहुत महंगा होता है और इस पर भारत सरकार 50 से 75 पर का टैरिफ लगाती है उदाहरण के लिए अमेरिका की एक बड़ी मशहूर कंपनी है जो मोटरसाइकिल बनाती है उसका नाम है हार्ले डेविडसन यह मोटरसाइकिलों की बड़ी मशहूर कंपनी है आपने भी देखा होगा और आप में से बहुत सारे लोग खास तौर पर हमारे देश के जो युवा हैं वह सपना देखते हैं कि एक दिन मुझे हार्ले डेविडसन की बाइक खरीदनी है यह सुपर बाइक मुझे खरीदनी है लेकिन आज मैं खरीद नहीं सकता क्योंकि यह बहुत महंगी है मेरी पहुंच से बाहर है क्योंकि भारत में इन मोटरसाइकिल्स पर 50 पर का टैरिफ लगता है जिससे ₹ लाख की एक मोटरसाइकिल यहां आते-आते 75 लाख की हो जाती है और बाद में फिर इस पर जीएसटी लगता है रोड सेस अलग से लगता है जिससे इस आर्ले डेविडसन की जो कीमत है ₹ लाख की जो बाइक है यह 9 से 10 लाख रुप की हो जाती है भारत के बाजार में लेकिन अब अमेरिका के रेसिप प्रोकल टैरिफ के बाद अगर भारत भी अपने को कम कर देता है तो यही हार्ले डेविडसन की मोटरसाइकिल आपको पा से 6 लाख रप में मिलने लगेगी अब जरा सोचिए जब हार्ले डेविडसन की मोटरसाइकिल भारत में 5छ लाख रुप की मिलने लगेगी तो इसी तरह की मोटरसाइकिल बनाने वाली भारतीय कंपनियों के लिए यह कंपटीशन कितना मुश्किल हो जाएगा।

आज आप खुद सोचिए अगर आपको 5 लाख रप में भारत में बनी रॉयल इन फील्ड मिल रही है और 5 लाख रप में ही या 55 लाख रप में आपको यह शानदार हार्ले डेविडसन की बाइक मिल रही है तो आप दोनों में से किसे खरीदेंगे और अगर आपने यह तय किया कि मैं तो इतने पैसे में हार्ली डेविडसन खरीद दूंगा तो फिर यल एनफील्ड के लिए या दूसरी जो भारत की बाइक हैं उनके लिए मुश्किल खड़ी हो जाएगी उनके पास क्या विकल्प है एक विकल्प तो यह है कि वह बाजार में अपनी मोटरसाइकिल्स की कीमत और कम करें इन्हे और सस्ती करें जिससे उनका मुनाफा कम हो जाएगा और दूसरा विकल्प यह है कि वह इतने ही पैसे में हार्ले डेविडसन से बेहतर मोटरसाइकिल बनाकर आपके सामने पेश करें इसी तरह से अमेरिका के सेब पर भारत 50 पर लगाता है जिससे इस सेब को भारत के आम लोग कभी नहीं खरीद सकते लेकिन अगर भारत इस सेब पर टैरिफ को कम करता है तो भारत के सेब के दामों में ही अमेरिका का सेब भी आपको बाजार में मिलने लगेगा और भारत के किसानों का कंपटीशन तब बढ़ जाएगा आपके सामने एक विकल्प होगा कि उतने ही पैसे में आप अमेरिका का सेब खरीदेंगे या फिर भारत में उगा हुआ सेब खरीदेंगे और हो सकता है कि अमेरिका के सेब की क्वालिटी और टेस्ट दोनों अच्छा हो अनुमान है कि अमेरिका के रेसिप प्रोकल टैरिफ से भारत की जीडीपी को सिर्फ इससे ही 0.7 का नुकसान हो सकता है जो ढाई से 3 लाख करोड़ रुपए के बीच का होगा यानी हमारी जो जीडीपी है वो इतनी गिर जाएगी सिर्फ एक ट्रंप के एक फैसले से इससे भारत में निवेश भी घट सकता है निर्यात कम होने से डॉलर के मुकाबले रुपया और ज्यादा कमजोर हो सकता है और भारत में इससे सात से 8 लाख लोगों की नौकरियां भी जा सकती हैं और यही वजह है कि भारत ने कहा है कि वह इस फैसले का अभी आंकलन कर रहा है और उसकी एक टीम अमेरिका के साथ लगातार संपर्क में है ।

आज भारत चाहे तो वह चीन मेक्सिको ब्राजील और यूरोपीय यूनियन की रणनीति को भी अपना सकता है यानी भारत को अब ऐसे में क्या करना होगा या तो अमेरिका के सामने झुक जाए और जो अमेरिका कह रहा है वह मान ले या फिर कुछ और भी कर सकता है तो इन देशों से क्या सीख सकते हैं इन तमाम देशों ने कहा है कि वोह इस रेसिप प्रोकल टैरिफ के जवाब में अमेरिका के सामान पर अपने टैरिफ को और बढ़ा सकते हैं यानी और ज्यादा महंगा कर देंगे अगर अमेरिका ने चीन के 67 पर टैरिफ पर अभी 34 पर टैरिफ लगाया है तो चीन इस 67 पर टैरिफ को 80 पर या 90 पर तक ले जा सकता है और इससे होगा यह कि अमेरिका का बना हुआ सामान चीन जैसे देशों में और ज्यादा महंगा हो जाएगा और महंगाई के दबाव में अमेरिका भी इन देशों के सामान पर रेसिप प्रोकल टैरिफ को ज्यादा बढ़ा नहीं पाएगा।

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