क्यों मनोज कुमार को बदमाश बोल गई अमिताभ बच्चन की पत्नी !

4 अप्रैल की वो स्या सुबह जब बॉलीवुड की फिजाओं में एक भारी सन्नाटा बस रहा था सुबह के 3:30 बजे खबर आई भरत कुमार अब इस दुनिया में नहीं रहे मनोज कुमार वो नाम जो सिर्फ फिल्मों में हीरो नहीं थे असल जिंदगी में भी कईयों के लिए उम्मीद थी लेकिन जब उन्हें अंतिम विदाई दी जा रही थी एक चेहरा वहां नहीं था जया बच्चन का क्यों नहीं पहुंची वह और क्यों सालों पहले जया ने मनोज कुमार को सेट पर ही कह दिया था.

एक ऐसा चेहरा जो पर्दे पर आते ही दिलों में देशभक्ति की लौ जला दे एक ऐसा नाम जो सिर्फ सिनेमा नहीं सोच बन गया मनोज कुमार लेकिन जनाब यह नाम तो शोहरत के बाद मिला असल नाम था हरिकृष्ण गोस्वामी अब यह कोई मामूली इंसान नहीं थे जब वह पर्दे पर आते थे ना तो बस एक्टिंग नहीं करते थे.

वह अपने किरदारों में जीते थे उपकार में भारत मां के बेटे बने तो लोग नम हो गए पूरब और पश्चिम में देश और संस्कृति की जो टक्कर दिखाई वह आज भी गूंजती है और रोटी कपड़ा और मकान भाई साहब यह फिल्म नहीं थी यह उस आम आदमी की चीख थी जिसे दो वक्त की रोटी और इज्जत की छत के लिए लड़ना पड़ता है लेकिन पर्दे पर जितने शांत गंभीर और संस्कारी नजर आते थे मनोज कुमार कैमरे के पीछे उतने ही सख्त और परफेक्शनिस्ट थे डायरेक्टर मनोज कुमार के सामने गलती की कोई गुंजाइश नहीं थी एक-एक सीन एक-एक संवाद सब कुछ उनकी नजर में परख के काबिल होता था कहते हैं वह सीन जब तक रीिटेक कराते थे जब तक उनकी आत्मा हां नहीं कह देती तो जब लोग कहते हैं कि मनोज कुमार सिर्फ एक अभिनेता थे तो यकीन मानिए वह बहुत कम कह रहे हैं वो एक सोच थे एक आंदोलन थे एक ऐसा आईना जिसमें हिंदुस्तान अपनी असली तस्वीर देखता था अब आइए सुनिए कहानी उस दौर की जब सिनेमा के सबसे बड़े शहंशाह बनने वाला एक नौजवान अपनी किस्मत से हार मानने ही वाला था नाम था अमिताभ बच्चन.

जी हां उस समय अमिताभ बैक टू बैक फ्लॉप फिल्मों का सामना कर रहे थे हर शुक्रवार उनके लिए एक इम्तिहान बन चुका था एक के बाद एक फिल्में बॉक्स ऑफिस पर ओंधे मुंह गिर रही थी और हालात इतने बिगड़ चुके थे कि खुद अमिताभ ने मन ही मन तय कर लिया था बस अब बहुत हुआ शायद यह दुनिया मेरे लिए नहीं बनी अब लौट जाना चाहिए लेकिन कहते हैं ना जब इंसान हार मान लेता है तब किस्मत किसी ना किसी रूप में एक दरवाजा जरूर खोल देती है और अमिताभ के लिए वह दरवाजा लेकर आए मनोज कुमार ना कोई शोर ना कोई ढोल नगाड़े बस एक शांत संजीदा शख्सियत लेकिन एक ऐसा इंसान जो अपने फैसलों से लोगों की तकदीर बदल देता था मनोज कुमार ने ना सिर्फ अमिताभ बच्चन की प्रतिभा को पहचाना बल्कि उन्हें अपनी फिल्म रोटी कपड़ा और मकान में एक बेहद अहम रोल देकर दोबारा मौका दिया यह कोई छोटा रोल नहीं था.

यह वो किरदार था जिसने अमिताभ को फिर से खड़ा किया इस फिल्म ने ना सिर्फ बॉक्स ऑफिस पर कमाल किया बल्कि अमिताभ को वो पहचान दी जिसकी उन्हें उस वक्त सबसे ज्यादा जरूरत थी आत्मविश्वास की और शायद यही वजह है कि आज भी अमिताभ बच्चन जब मनोज कुमार का नाम लेते हैं तो आंखों में सम्मान और दिल में अपनापन भर आता है वह उन्हें सिर्फ मनोज जी नहीं बल्कि प्यार से बड़े भाई कहते हैं क्योंकि कुछ रिश्ते खून से नहीं एहसानों और उस वक्त की दोस्ती से बनते हैं और मनोज कुमार अमिताभ के लिए वही लकी चाम बनकर आई थी जो उनकी जिंदगी की दिशा ही बदल गई.

लेकिन जया बच्चन क्यों थी वो नाराज इंसान इस दुनिया में चार दिन की जिंदगी गुजारने आता है लेकिन 40 दिन का गम उसे घेरे रखता है जहां एक तरफ मनोज कुमार अमिताभ बच्चन की जिंदगी में एक लकी चाम बनकर आई एक बड़े भाई एक मेंटोर की तरह वहीं दूसरी ओर उसी मनोज कुमार का नाम जया बच्चन के लिए एक ऐसी याद बन गया जिसे उन्होंने शायद कभी दिल से माफ नहीं किया बात है 1972 की फिल्म शोर की शूटिंग चल रही थी सेट पर सब कुछ ठीक-ठाक लग रहा था लेकिन पर्दे के पीछे कुछ ऐसा घट रहा था जिसने जया को भीतर तक हिला दिया बाद में जया बच्चन से इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने एक इंटरव्यू में खुलकर कहा मनोज कुमार की नजरें मुझे असहज करती थी वह बार-बार मुझे कपड़े ठीक करने को कहते थे मैं बहुत परेशान हो गई थी.

अब यह सुनकर किसी को भी हैरानी होगी क्योंकि मनोज कुमार की छवि एक गंभीर संस्कारी और देशभक्त अभिनेता की रही है लेकिन जया की बातों में जो झुंझुलाहट थी वह यूं ही नहीं थी वो कहती हैं कि जब एक महिला कलाकार को बार-बार उसकी ड्रेस या हावभाव को लेकर टोका जाए तो वह प्रोफेशनल सेट भी असहज जगह बन जाता है और शायद यही वजह थी कि उस दिन के बाद जया ने मनोज कुमार से दूरी बना ली एक दूरी जो कभी खत्म नहीं हुई यह वही फिल्म थी जिसमें जया ने अपने करियर का एक बेहतरीन किरदार निभाया लेकिन उसके पीछे छिपा वो अनुभव आज भी उनके जहन में कहीं ना कहीं ताजा है कहानी में यह वो लम्हा था जहां दो कलाकारों के रास्ते हमेशा के लिए अलग हो गए एक का रिश्ता इज्जत और अपनापन बन गया और दूसरे के लिए बस एक दर्दनाक याद वो दिन जब सेट पर मचा बवाल.

एक ऐसा दिन जब सेट पर सन्नाटा नहीं बल्कि सन्नाटा चीरती हुई आवाज गूंजी आप हैं मनोज जी जी हां यही वो लम्हा था जब जया बच्चन का सब्र टूट गया और पूरा सेट हक्का-बक्का रह गया साल था 1972 फिल्म थी शोर और सीन था एक इमोशनल ड्रामा का लेकिन जैसे ही कैमरा बंद हुआ सेट पर जो हुआ वो किसी फिल्मी सीन से कम नहीं था जया बच्चन जो आमतौर पर शांत प्रोफेशनल और संयमित मानी जाती हैं उस दिन उनका गुस्सा फूट पड़ा उन्होंने खुल्लम खुल्ला मनोज कुमार को कह दिया और यह महज कोई तंज नहीं था उनके लहजे में दर्द था गुस्सा था और हद से ज्यादा परेशान एक अभिनेत्री की तड़प थी.

उन्होंने आरोप लगाया कि मनोज कुमार बार-बार उन्हें बुली कर रहे थे बार-बार उनकी पोशाक उनके सुहावभाव और उनके अभिनय में टोकाटाकी हो रही थी और उस दिन जया ने सिर्फ गुस्सा नहीं दिखाया उन्होंने एक बहुत बड़ा बयान दे दिया उन्होंने कहा था यह भारत को कुमार वाली इमेज महज दिखावा है उसने मचा दिया अब सोचिए मनोज कुमार जिनकी छवि एक आदर्श राष्ट्रभक्त और मर्यादा में रहने वाले अभिनेता की थी उनके बारे में ऐसा बयान यह बात सिर्फ सेट तक नहीं रुकी यह पूरे बॉलीवुड में आग की तरह फैल गई कोई यकीन नहीं कर पा रहा था कि जिस अभिनेता को पूरा देश आदर्श मानता है.

उसके बारे में इतनी गंभीर बात कही जा रही है कुछ लोगों ने जया का पक्ष लिया तो कुछ मनोज कुमार के समर्थन में खड़े हो गए लेकिन एक बात तो तय थी उस दिन मनोज और जया के रिश्ते में जो दरार पड़ी वह कभी नहीं भर सकी कहानी का यह हिस्सा हमें याद दिलाता है कि पर्दे के पीछे की दुनिया अक्सर उतनी खूबसूरत नहीं होती जितने वह पर्दे पर दिखती है मनोज कुमार की सफाई और अधूरी दोस्ती तो अब कहानी का वो मोड़ आता है जहां एक गलतफहमी कुछ ना कहे गए शब्द और एक चुपचाप बना लिया गया फैसला दो दिग्गजों को हमेशा के लिए अलग कर देता है.

मनोज कुमार जिन पर उस समय जया बच्चन ने गंभीर आरोप लगाए थे उन्होंने अपनी सफाई में सिर्फ इतना कहा मैं तो बस निर्देशन कर रहा था उनका दावा था कि उन्होंने जया को फिल्म गुड्डी में देखकर पसंद किया था उनकी मासूमियत उनकी सहज एक्टिंग यही सब देखकर मनोज ने उन्हें शोर में लिया लेकिन कहानी यहां खत्म नहीं होती जब शोर का ट्रायल शो हुआ वो खास शो जिसमें टीम के करीबी लोग बुलाए जाते हैं जहां सराहना मिलती है जहां आलोचना होती है और कलाकार को लगता है कि वह परिवार का हिस्सा है जया को वहां नहीं बुलाया गया और यह बात उन्हें भीतर तक चुभ गई इसके साथ ही शूटिंग के दौरान बार-बार कपड़े ठीक करने की हिदायतें बार-बार छोटे-छोटे टोकने यह सब एक कलाकार की गरिमा पर चोट करते रहे जया ने यह सब सहा लेकिन एक वक्त के बाद उन्होंने मन ही मन तय कर लिया अब और नहीं यहीं से दोनों की राहें हमेशा के लिए अलग हो गई कभी ना खुलने वाला एक दरवाजा बंद हो गया अमिताभ बच्चन ने भले ही आगे चलकर मनोज कुमार के साथ काम किया लेकिन जया उन्होंने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा ना कोई मुलाकात ना कोई फिल्म ना कोई सार्वजनिक मंच पर साथ आने की कोशिश कभी-कभी रिश्ते शब्दों से नहीं खामोशी से टूटते हैं और यह वही खामोशी थी जो सालों तक बॉलीवुड गलियारों में गूंजती रही अंतिम दर्शन एक अधूरा रिश्ता 5 अप्रैल 2025 वो दिन जब सिनेमा का एक अध्याय हमेशा के लिए बंद हो गया.

मनोज कुमार जिनके नाम से देशभक्ति की धड़कनें तेज हो जाया करती थी जिनकी फिल्मों में भारत सिर्फ एक देश नहीं भावना बनकर उभरता था वो अब इस दुनिया को अलविदा कह चुके थे उनकी अंतिम यात्रा में पूरा बॉलीवुड उमड़ा था फूलों से सजी एंबुलेंस श्रद्धांजलि में डूबे चेहरे और नम आंखों में तैरते अनगिनत यादों के समंदर और वहां खड़े थे अमिताभ बच्चन सफेद कुर्ते में लिपटा उनका गमगीन चेहरा झुकी हुई नज़रें और हाथ जोड़े हुए खामोश विदाई यह वही मनोज थे जिन्होंने कभी अमिताभ के करियर को नई दिशा दी थी और अब उन्हीं को आखिरी सलाम देने अमिताभ खुद चलकर आए थे लेकिन एक चेहरा नहीं देखा जया बच्चन वो नहीं आई और बस यहीं से सवालों का तूफान खड़ा हुआ क्या पुरानी कड़वाहट अब भी बाकी थी क्या इतने सालों बाद भी वह घटना उनके दिल में ज्यों की त्यों चुभ रही थी कई लोग कहते हैं समय सब कुछ ठीक कर देता है लेकिन कुछ जख्म ऐसे होते हैं जो वक्त के साथ सूखते नहीं और शायद जया के लिए मनोज कुमार के साथ जुड़ा वह अनुभव एक ऐसा ही जख्म था उन्होंने कभी खुलकर कुछ नहीं कहा लेकिन उनकी गैर मौजूदगी ने बहुत कुछ कह दिया शायद यह भी मुमकिन है कि वह निजी कारणों से ना आ पाई हो लेकिन जब इतिहास लिखा जाएगा तो सवाल तो पूछे ही जाएंगे कि जब एक दौर में साथ काम किया गया जब मंच साझा किया गया तब आखिरी विदाई में इतनी दूरी क्यों कहानी का यह आखिरी दृश्य भावनाओं से भरा है एक शख्स चला गया लेकिन पीछे छोड़ गया अनकहे सवाल अधूरे रिश्ते और कुछ दिलों में आज भी बजती चुप्पी कोई वो आवाज जो बस सुनाई नहीं देती पर महसूस होती है.

बॉलीवुड की चमक-धमक के पीछे रिश्तों की ये जटिल परतें अक्सर छिप जाती हैं मनोज कुमार एक ऐसा नाम थे जिसने नायक भी बनाए और खुद विरोध के निशाने पर भी आए पर आज जब वो नहीं है सवाल यही है क्या कोई अनबन इतनी बड़ी हो सकती है कि इंसान अंतिम विदाई तक ना पहुंचे.

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