लंबे समय तक भारतीय उद्योग जगत के आधार स्तंभ रहे रतन टाटा के निधन से लोगों को गहरा धक्का लगा है क्योंकि रतन टाटा एक ऐसे उद्योगपति थे जिन्होंने कारोबारियों में कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी की भावना जगाई रतन टाटा ऐसे शख्स थे जो अपने समूह के मुनाफे का आधे से ज्यादा हिस्सा परोपकार के लिए दान कर देते थे हालांकि परोपकार के कामों का प्रचार प्रसार उन्हें कतई पसंद नहीं था यही वजह है कि रतन टाटा के निधन से सबसे ज्यादा धक्का उन गरीब मजलूम लोगों को लगा है जो टाटा ट्रस्ट के माध्यम से लाभान्वित हो रहे हैं.
भारतीय उद्योग जगत का सबसे शीतल छायादार लोक हितकारी बट वृक्ष अब अनंत में विलीन हो चुका है रतन टाटा के निधन से भारतीय उद्योग जगत को गहरा आघात लगा है लेकिन मुफलिसी के मारे वो मजलूम आज खुद को अनाथ महसूस कर रहे हैं जो रतन टाटा की खामोश फराग दिल्ली के साय में खुद को महफूज महसूस कर रहे थे क्या आप यकीन करेंगे कि उद्योग जगत की मुनाफा वसूली की गला काट प्रतिस्पर्धा की अंधी दौड़ में रतन टाटा जैसा इंसान अपने समूह का 60 फीस से ज्यादा मुनाफा परोपकार के कार्यों के लिए दान कर देता था.
जी हां जिस दौर में उद्योगपति मुनाफा कमाने के लिए तमाम नैतिक अनैतिक कामों से परहेज नहीं करते उस दौर में रतन टाटा ने टाटा ट्रस्ट के जरिए गरीब मजलूम जरूरतमंद लोगों की हरचंद मदद का पीड़ा उठाया और शिक्षा चिकित्सा से लेकर शोध और बुनियादी ढाचे के विकास के लिए अपने समूह के कुल मुनाफा का आधे से ज्यादा हिस्सा लोकहित में लगाने का फैसला किया जिस प्रकार से उन्होंने देश के लिए और समाज के लिए काम किया है.
उन्होंने केवल सफल उद्योग नहीं खड़े किए एक विश्वास हरता कड़ी की एक ऐसा ब्रांड खड़ा किया जिसने हमारे देश को एक ग्लोबल इमेज दी और उसके साथ-साथ अपनी संपत्ति को टाटा ट्रस्ट में विलीन करते हुए उन्होंने इस विश्वस्त व्यवस्था से ट्रस्ट से जिस प्रकार के फिथ पिक काम उन्होंने किए हैं चाहे वह शिक्षा के क्षेत्र में हो चिकित्सा के क्षेत्र में हो रिसर्च के क्षेत्र में हो बुनियादी क्षेत्र में हो समाज और देश के उपयोगी जो कार्य उन्होंने टाटा ट्रस्ट के माध्यम से किए हैं मैं ऐसा मानता हूं कि जितने महत्त्वपूर्ण उनके उद्योग है उतने महत्त्वपूर्ण य कार्य भी है.
इसीलिए एक बहुत बड़े मन का व्यक्ति आज हमारे बीच से चला गया है देश के लिए बहुत बड़ा नुकसान है अजीब इत्तेफाक यह है कि बड़े औद्योगिक घराने के महफूज साय में पैदा होने के बाद भी रतन टाटा बचपन में ही अनाथ कर दिए गए रतन टाटा जब महज 10 साल के थे तो इनके माता-पिता नवल टाटा और सुनी कमिसार एट ने अलग होने का फैसला कर लिया और रतन टाटा को जैन पेटीट पारसी अनाथालय में डाल दिया गया.
अपने ते के अनाथ आश्रम में होने की खबर जब रतन टाटा की दादी नवाज भाई टाटा को लगी तो उनका मन कराह उठा और उन्होंने फैसला किया कि उनके रहते उनका पौत्र अनाथ आश्रम में नहीं पलेगा दादी नवाज भाई रतन को अपने साथ ले आई और उनका पूरे नाजो से पालन पोषण किया हालांकि अनाथ आश्रम में बिताए अपने नामाकूल दिनों की याद रतन टाटा के दिलो दिमाग में हमेशा के लिए जजब हो गई और जब ईश्वर ने उन्हें मौका दिया तो देश के हर जरूरतमंद की मदद के लिए उन्होंने अपने खजाने का मुंह खोल दिया सचमुच रतन टाटा भारत के एक अनमोल रतन थे और उनके जाने से ना सिर्फ उद्योग जगत बल्कि सियासत शिक्षा धर्म विज्ञान और संस्कृति के क्षेत्र से जुड़े लोगों को गहरा सदमा पहुंचा है अनमोल कहते हैं.
वो रहा नहीं ये भारत का कोहिनूर हरफलाइलर रहा नहीं हमसे बिछड़ गया है ऐसा मैं कहूंगा और रतन टाटा जी हमारे में नहीं रहे यह बहुत ही वेदना दई दुखद घटना है हमारे लिए पूरे देश के लिए पूरे देश का एक अभिमान था हमारे महाराष्ट्र का भी अभिमान था 28 दिसंबर 1937 को नवल और सोनू टाटा के घर जन्म रतन टाटा साल 1962 में बतौर असिस्टेंट टाटा समूह से जुड़े थे साल 1991 में उन्होंने जेआरडी टाटा से टाटा सस और टाटा ट्रस्ट के चेयरमैन पद का उत्तराधिकार हासिल किया एक बेमिसाल संवेदनशील इंसान होने के साथ ही रतन टाटा एक बेहतरीन प्रोफेशनल भी थे.
यही वजह है कि टाटा समूह का नेतृत्व हाथ में लेने के बाद समूह का मुनाफा तेजी से बढ़ने लगा रतन टाटा 1991 से 2012 तक लगातार टाटा समूह के चेयरमैन बने रहे और इन 21 सालों में टाटा ग्रुप का मुनाफा 50 गुना से ज्यादा बढ़ गया अपने वतन से रतन टाटा को बेपनाह मोहब्बत थी यही वजह है कि चेयरमैन बनने के 7 साल बाद साल 1998 में उन्होंने देश की पहली स्वदेशी कार टाटा इंडिका लच की हालांकि शुरुआती कामयाबी नहीं मिलने के कारण एक साल बाद उन्होंने अमेरिका की नामी गिरामी ऑटोमोबाइल कंपनी फड को टाटा इंडिका भेजने का फैसला किया तब फोर्ड के तत्कालीन चेयरमैन बिल फोर्ड ने रतन टाटा पर तंज कसते हुए कहा कि आपने पैसेंजर का डिवीजन शुरू ही क्यों कि जब आपको इस बारे में कोई ज्ञान और अनुभव नहीं था.
यह डील करके हम आप पर एहसान ही करेंगे संवेदनशील और स्वाभिमानी रतन टाटा को बिल फोर्ड की ये बात बहुत ज्यादा चुप गई और उन्होंने फोर्ड के साथ डील निरस्त कर दी वक्त का खेल देखिए कि साल 2008 में जब वैश्विक मंदी ने दस्तक दी तो फोर्ड दिवालिया होने के कगार पर पहुंच गया और तब रतन टाटा ने फोर्ड के दो पॉपुलर ब्रांड जगुआर और लैंड रोवर को 2.3 बिलियन डॉलर में खरीद लिया दर दरअसल रतन टाटा के हृदय का हर स्पंदन मानवीय संवेदना से प्रेरित था.
एक बार रतन टाटा ने मुंबई की सड़कों पर तेज बारिश के दौरान एक परिवार के चार लोगों को टू व्हीलर पर भीगते हुए देखा बचपन से ही परोपकार की प्रेरणा से लबरेज रहे रतन टाटा का मन इस दृश्य को देखकर आहत हो गया और उन्होंने लोअर मिडिल क्लास के लिए दुनिया की सबसे सस्ती कार बनाने का फैसला किया उसी दिन रतन टाटा ने अपने इंजीनियर्स को या और ₹1 लाख में बजट कार बनाने की प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार करने का निर्देश दिया 23 मार्च 2009 को टाटा मोटर्स ने नो को लच किया.
और इस तरह वह लोग जो टू व्हीलर्स के सपने को जैसे-तैसे पूरा कर पाते थे कार पर चलने का उनका भी सपना पूरा हो गया आपको बता दें कि रतन टाटा आजीवन अविवाहित रहे हालांकि उनकी जिंदगी में चार मौके ऐसे आए जब उनकी शादी तय हो गई थी लेकिन विधाता को शायद यह म जोर नहीं था 86 साल की उम्र में आखिरकार उन्होंने इस दुनिया को अविवाहित रहते हुए ही अलविदा कह दिया.