जिस समुदाय के थे रतन टाटा उसकी सच्चाई जान हो जाएंगे हैरान!..

दुनिया के सबसे पुराने धर्मों में से एक पारसी धर्म को मानने वाले की संख्या घट रही है दुनिया भर में सिर्फ 115000 के आसपास इस वक्त पारसियों की जनसंख्या बची है पारसी आबादी का करीब 40 फीसद हिस्सा मुंबई में रहता है आखिर पूरी दुनिया में कम क्यों हो रहे हैं पारसी समुदाय के लोग इस रिपोर्ट में आपको दिखाते हैं रतन टाटा भारतीय उद्योग जगत का वह अनमोल रत्न जो अब स्मृतियों का ध्रुवतारा बनकर चमक रहे हैं रतन टाटा एक ऐसे उद्योगपति जिन्हें देश के लोग बेइंतहा प्यार करते थे और जब वह पंचतत्व में विलीन हुए तो पूरे भारत ने उन्हें भाव भीनी श्रद्धांजलि दी रतन टाटा पारसी धर्म को मानते थे.

पारसी धर्म विश्व के प्राचीन और महान धर्मों में से एक है लेकिन अब इस धर्म को मानने वाले लोगों की संख्या दुनिया में ज्यादा नहीं बची है पारसी धर्म को मानने वाले लोगों की आबादी तेजी से घट रही है साल 2001 की जनगणना में पारसियों की आबादी 69601 थी जो साल 2011 में घटकर 57264 रह गई हालात ऐसे हैं कि सरकार ने पारसियों की घटती जनसंख्या को बचाने का मिशन शुरू किया है वहीं रास्ट्रीय स्टडी सेंटर के मुताबिक दुनिया में पारसियों की संख्या करीब 11000 बची है.

इनमें से 40 प्र पारसी सिर्फ मुंबई में रहते हैं पारसी समुदाय भारत के अलावा ईरान अमेरिका इराक उज्बेकिस्तान और कनाडा में बसा हुआ है पाकिस्तान में भी पारसियों की आबादी हजार के आसपास ही बची है अब सवाल उठता है कि आखिर पारसी हैं कौन और कहां से आए हैं दरअसल पारसी धर्म दुनिया के सबसे पुराने धर्मों में से एक है इसे मानने वाले लोगों को पारसी या जोरा बियन कहा जाता है.

इसकी स्थापना जरथ ने प्राचीन ईरान में 3500 साल पहले की थी काफी समय तक यह ताकतवर धर्म के रूप में रहा यहां हत्या के डर से पारसी समुदाय के लोग दुनिया भर में पलायन करने लगे यही वक्त था जब पारसियों ने भारत की ओर आना शुरू किया यह गुजरात के वलसाड से होते हुए मुंबई पहुंचे और बड़ी संख्या में वहां बस गए माना जाता है कि मुंबई को असल में पारसियों की मेहनत ने ही बसाया मुंबई में कई इलाके हैं.

जहां पारसी बस्तियां हैं और यहां पारसी खानपान की झलक दिखती है पारसी दिमाग से तेज होते हैं इसलिए बिजनेस में जल्दी तरक्की करते हैं अमेरिका समेत मुंबई में भी बड़े बिजनेस किसी ना किसी पारसी परिवार के हैं अब सवाल उठता है कि अपनी धरती को छोड़ने के लिए विवस होने वाला पारसी समुदाय सामाजिक आर्थिक और औद्योगिक रूप से अपनी सशक्त पहचान बनाने में सफल रहा लेकिन आबादी के मामले में वह पिछड़ क्यों रहा है इसे जानने के लिए हमें पारसी समुदाय की मान्यताओं और तौर तरीकों को समझना होगा दरअसल पारसी समुदाय के बहुत से लोग शादी देर से करते हैं या नहीं करते हैं.

एक अनुमान के मुताबिक शादी की उम्र के 30 फीसद पार्सी अविवाहित हैं और जो शादी कर चुके हैं उनमें भी बच्चा देर से पैदा करने या ना करने का चलन है इस समुदाय का फर्टिलिटी रेट 0.8 है यानी हर साल पारसी समुदाय में 300 बच्चे जन्म लेते हैं जबकि 800 लोगों की मौत हो जाती है यानी आबादी का रेशियो माइनस में चल रहा है आबादी घटने का दूसरा सबसे बड़ा फैक्टर उनका सोशल स्ट चर है दरअसल पारसी युवती अगर अपने धर्म से बाहर शादी करें तो वह पारसी नहीं मानी जाती कई बार युवती ज्यादा पढ़ी लिखी या कामयाब होती है.

तो उसे अपने समुदाय में बराबरी का दूल्हा नहीं मिल पाता ऐसे में वह या तो दूसरे धर्म में शादी करती है या फिर बहिष्कार के डर से अविवाहित रह जाती है अगर वह युवती दूसरे धर्म में विवाह कर लेती है तो उसके पति या बच्चों को पारसी नहीं माना जाता है यही हाल पुरुषों के साथ है वह अपने धर्म से बाहर शादी तो कर लेते हैं लेकिन उन पर कहीं ना कहीं अपने धर्म के लड़की चुनने का दबाव रहता है यूं तो हर धर्म में धर्मांतरण के लिए अलग नियम है लेकिन पारसियों में यह इतने सख्त हैं कि किसी दूसरे धर्म का शख्स चाहकर भी पारसी नहीं बन सकता.

पारसी होने के लिए धार्मिक शुद्धता को पहले रखा जाता है इसलिए किसी दूसरे को धर्म अपनाने की इजाजत नहीं दी जाती है भारत समेत दुनिया भर में पारसियों की आबादी कम होने से रोकने के लिए भारत सरकार कई कोशिशें कर रही है भारत ने जिओ पारसी स्कीम लॉन्च की है जिसके जरिए मिनिस्ट्री ने खुद ऑनलाइन डेटिंग और मैरिज काउंसलिंग की पहल की है जिससे पारसियों की घटती आबादी को बढ़ाया जा सके.

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