उत्तर प्रदेश में सामने आया अजीबो गरीब किस्सा, बच्चेदानी में नहीं महिला के लीवर में पल रहा था गर्भ।

उत्तर प्रदेश का बुलंदशहर यहां एक 30 साल की महिला रहती हैं। पिछले 2 महीनों से उन्हें पेट दर्द और उल्टियां हो रही थी। डॉक्टर को दिखाया लेकिन कुछ खास आराम नहीं मिला। फिर वह अपना इलाज कराने मेरठ पहुंची। यहां महिला की जांच हुई। पता चला कि महिला प्रेग्नेंट है। पर उनका फीटस बच्चेदानी में नहीं बल्कि महिला के लिवर में विकसित हो रहा था। गर्भ 12 हफ्ते यानी करीब 3 महीने का था। वो जिंदा था और लगातार बढ़ रहा था। उसकी धड़कन तक सुनाई दे रही थी। भारत में इसे अपनी तरह का पहला केस बताया जा रहा है।

आमतौर पर जो प्रेगनेंसी होती है उसमें गर्भ गर्भाशय यानी बच्चेदानी में विकसित होता है। लेकिन कुछ केसेस में भ्रूण गर्भाशय के बाहर विकसित होने लगता है। इसे एक्टोपिक प्रेगनेंसी कहा जाता है। यह खतरनाक और जानलेवा कंडीशन है। दुनिया भर में जितनी भी प्रेगनेंसीज होती हैं, उनमें से करीब 2% एक्टोपिक प्रेगनेंसीज होती हैं। एक्टोपिक प्रेगनेंसी के बारे में हमने सब कुछ जाना। क्लाउड नाइन हॉस्पिटल फरीदाबाद में कंसलटेंट गानेकोलॉजिस्ट डॉक्टर शैली शर्मा से डॉक्टर शैली बताती हैं कि एक नॉर्मल प्रेगनेंसी गर्भाशय के अंदर होती है।

लेकिन कभी-कभी प्रेगनेंसी गर्भाशय के बाहर भी हो जाती है। इसे एक्टोपिक प्रेगनेंसी कहते हैं। ऐसी प्रेगनेंसी आमतौर पर फिलोपियन ट्यूब में होती है। फैलोपियन ट्यूब यानी वो नली जो अंडाशय को गर्भाशय से जोड़ती है। कभी-कभी यह सर्विक्स यानी गर्भाशय के मुंह या फिर ओवरी में भी हो सकती है। बुलंदशहर की महिला के केस में यह लिवर में हुई। जब भ्रूण गर्भाशय की जगह लिवर में विकसित होने लगता है तो इसे प्रेगनेंसी कहते हैं। अगर भ्रूण गर्भाशय के अलावा शरीर में किसी दूसरी जगह पर विकसित हो तो गर्भ ज्यादा समय तक जीवित नहीं रह सकता।

उसका विकास रुक जाता है। महिला की जान तक जाने का खतरा होता है। एक्टोपिक प्रेगनेंसी कई वजहओं से हो सकती है। जैसे अगर किसी महिला की फैलोपियन ट्यूब में सूजन, ब्लॉकेज या कोई ट्रिटमेंट हुई है तो स्पर्म से मिल चुका हुआ जो अंडा है वो गर्भाशय तक नहीं पहुंच पाता। इससे एक्टोपिक प्रेगनेंसी हो सकती है। अगर एक बार एक्टोपिक प्रेगनेंसी हो जाए तो इसके दोबारा होने का चांस बढ़ जाता है। अगर किसी महिला को है तब भी इस तरह की प्रेगनेंसी होने का रिस्क रहता है।

गर्भाशय से जुड़ी एक बीमारी है। इसमें गर्भाशय की लाइनिंग बनाने वाले टिश्यूस की ग्रोथ असामान्य हो जाती है और वह यूट्रस के बाहर तक फैलने लगते हैं। प्रेगनेंसी के लक्षण शुरुआत में नॉर्मल प्रेगनेंसी जैसे ही होते हैं। लेकिन जैसे-जैसे भ्रूण बढ़ता है और गर्भाशय के बाहर दबाव बनाता है तब दिक्कतें भी बढ़ने लगती हैं।

पेट में एक तरफ तेज ऐंठन या चुभन हो सकती है। ब्लीडिंग हो सकती है। कंधे या कमर में दर्द हो सकता है। कमजोरी होती है। चक्कर आते हैं। उपकाई और उल्टी भी खूब होती है। प्रेगनेंसी का पता प्रेगनेंसी टेस्ट से चल सकता है। लेकिन गर्भ कहां विकसित हो रहा है यह जानने के लिए किया जाता है।

खासकर ट्रांस । अगर प्रेगनेंसी जल्दी पकड़ में आ जाए तो दवाओं की मदद से भ्रूण के विकास को रोका जा सकता है। लेकिन अगर फिलोपियन ट्यूब फटने का चांस हो या बहुत देर हो जाए तो सर्जरी की जरूरत होती है। समय पर इलाज ना मिले तो महिला की जान भी जा सकती है। इसलिए लक्षण दिखते ही डॉक्टर से मिलना बहुत जरूरी है।

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