मुलायम जी की बात नहीं कर रहे अपने शिल्पा शेट्टी से। जितने कैबिनेट मिनिस्टर थे, मुख्यमंत्री थे, सब लोग आए प्रीमियर में। दो चार दिन पहले अयोध्या में बम ब्लास्ट हुआ था। टाइम्स ऑफ इंडिया ने लिखा कि ये किसी अयोध्या के लिए सिक्योरिटी मीटिंग नहीं है। ये फरेब फिल्म का प्रीमियर और नेता जी ने टैक्स फ्री किया फिल्म।
तो मुलायम जी की बात नहीं कर रहे अपने शिल्पा शेट्टी से। नहीं मुलायम सिंह की बात होती थी। मुलायम सिंह तो ऐसे भी भाई जो अपना फेस्टिवल करते रहते थे अपने गांव। अच्छा हां उनको तो वैसे भी सैफई में तो जबरदस्त बॉलीवुड का आनााना लगा रहता है। आनााना लगा रहता था। तो इससे आपके इसमें इसमें कोई बुराई नहीं है।
बॉलीवुड भी हमारे एक समाज का हिस्सा है और नेता जी का देखो नेता जी का जितना जमीनी नेता थे वो वैसा नेता होना बहुत आसान नहीं है। मुझे लगता है कि उतना जमीन पर पकड़ इतना पकड़ होना सब सब किसी नेता के पास था नहीं। हां मतलब जो कंट्रास्ट हमेशा अट्रैक्ट करता है।
तो जिन्होंने जिंदगी भर हमेशा जमीनी नहीं किया वो बॉलीवुड आकर्षित करता था। भीड़ लाती है। हमने देखा संजय दत्त को भी उन्होंने टिकट दिया था। बाद में नहीं लड़ पाए वो अलग बात है। बट बॉलीवुड से उस टाइम की सपा का बड़ा क्लोज रिश्ता रहा है।
नहीं सबका अट्रैशन रहता है। मैंने कल्याण सिंह के जन्मदिन में कल्याण सिंह जी को अनूप जलोटा के लिए गेट पर खड़े हाई कोर्ट के जजेस हैं, मंत्री हैं। तमाम लोग अंदर घर में वेट कर रहे हैं। लेकिन वो अनूप जलोटा को रिसीव करने के लिए गेट पर खड़े थे। तो बॉलीवुड का अट्रैक्शन तो रहा है। अनूप जी आने वाले हैं। पूछूंगा सवाल। हां हां बिल्कुल पूछिएगा।
कल्याण सिंह वाला मैं इमेजिन नहीं कर पा रहा हूं कल। हां बिल्कुल मैं अपने आप सामने बता रहा हूं। हालांकि उस टाइम अनूप जी भजन गाते थे। बाद में उनका भी थोड़ा मन डोला। सैयद कादरी साहब को कैसे जानते हैं आप? कमाल के लिरिसिस्ट हैं। बहुत कम सोशल मीडिया पे आते हैं। बातें कम करते हैं। आप कैसे जानते हैं उन्हें? सैयद कादरी का एक फेस था जब मेरे ख्याल से फिल्म रिलीज हुई थी। कहो ना कहो और भीगे होठ तेरे। वहां से सैद कादरी का सफर शुरू हुआ।
बल्कि उससे भी पहले एक जिस्म पिक्चर आई थी। उसमें आवारापन बंजारापन करके गाना उन्होंने एक लिखा था। तो सैयद कादरी का एक फेस था जब जितने भी अवार्ड होते थे स्टार डस्ट अवार्ड हो, फिल्मफेयर अवार्ड हो अगर तीन गाने सेलेक्ट हो रहे हैं तो दो गाने उन्हीं के सिलेक्ट होते थे। संजोग से हमारे भी दोनों बार जो है हमारे गाने सिलेक्ट हुए अनवर में मौला मेरे मौला हुआ और बरस जा बादल उसमें हुआ फरेब में तो सैयद कादरी ने हमारे लिरिक्स लिखे और अच्छा हमारी दोस्ती हो गई थी उस दरमियान उनसे तो कुछ उनके बारे में बताई ना दोस्ती उनके बारे में लोग जानते ही कम है। मित्र हैं तो कुछ इंसाइडल कहानी आप सुना सकते हैं उनके बारे में। सैयद कादरी की तो मेन कहानी है कि वो फिल्म में लिखने आए थे।
गाने लिखने आए थे लेकिन उनको मौका नहीं मिल रहा था और महेश भट्ट साहब के बहुत अच्छे मित्र थे वो और वहां से एक काश फिल्म आई थी जिसमें वो गाना गाना गाना लिखना चाहते थे और महेश भट्ट साहब उसके डायरेक्टर थे। कोशिश बहुत किए लेकिन प्रोड्यूसर ने डांट दिया कि नहीं भाई नहीं आप हम इनसे नहीं नए राइटर से नहीं लिखवाएंगे गाना। तो रात में जब यह बहुत अपसेट हुए महेश भट्ट मना कर दिया इनको कि भाई गाना हम नहीं ले पा रहे हैं तुम्हारा तो यह बस पकड़े और बस पकड़े कहे कि अब सलाम कर रहा हूं बॉम्बे को वापस लौट रहा हूं और जोधपुर लौट आए हम धीरे-धीरे करके भट्ट साहब बहुत बड़े हो गए लेकिन ये जो है अपना बीमा एजेंट बन गए जाके जोधपुर में और अपना शायरीवारी लिखते थे डायरी में बहुत दिनों बाद 20 सालों बाद करीब महेश भट्ट साहब जोधपुर जब गए जोधपुर गए तो बोले यार एक हमारा मित्र था यहां पर जोधपुर का वो शायर है शईद कादरी तो लोग बोले शायर तो नहीं है लेकिन वह बीमा एजेंट है। वहां से जो है फिर भट्ट साहब उनके घर पहुंचे पता करके तो सैयद कादरी साहब से बोले यार तुम आए नहीं मैं तो इतना फिल्म बनाने लगा तब भी तुम नहीं आए कहे अब क्या आते जब इतना उसी समय बेइज्जत हो चुके थे बॉम्बे में तो कहे और नया क्या लिखे हो तो मैं उन्होंने कहा कि मैं आपके ऊपर एक गाना लिखा था आने के बाद आवारापन बंजारापन तो वो गाना उन्होंने उठाया उनसे और उसके बाद फिर इनकी 2.0 शुरुआत हुई और फिर वहां से शुरुआत हुई और अच्छी शुरुआत हुई।
बट ये भी कमाल की कहानी नहीं कि 20 साल बाद एक आदमी को उस की उचित सम्मान मिला। स्टार है वह जब जब लिखा है तो उस समय होना है तो आप मानते हैं समय बड़ा ताकतवर बिल्कुल होता है बिल्कुल समय के आगे सब बिल्कुल बिल्कुल बिल्कुल आपको अगर गुमान है कि आप भगवान बन रहे हैं तो आप ना उत्तर आइए समय कब उतार देगा समय समय सब ईश्वर है जब जो चीज स्टार आपका है उस समय समय आता है तो ये कर्मों के हिसाब से होता है या किस्मत के हिसाब से होता है जरा इंपॉर्टेंस कौन है कर्म या किस्मत प्रारब्ध और कर्म थोड़ा इसको व्याख्या कीजिए देखिए देखिए हमारे हिंदू मेथोलॉजी में ये जीवन जो है ये जन्म नहीं है। पूर्व जन्म और उसके पूर्व जन्म से पीछे से चला आता है और रिब्थ की एक साइकोलॉजी है हमारे यहां हिंदू परंपरा में कि हम लोग अपने कर्म के अनुसार जो है फिर जन्म पाते हैं और जहां पर यात्रा आपकी समाप्त होती है जैसे कोई आप संत हैं और आप खत्म होते हैं तो आपकी जो साधना है वो खत्म नहीं होती.
वहीं से आप स्टार्ट लेते हो या जो यात्रा आप कर रहे हो अभी आप पडकास्ट इतना अच्छा कर रहे हो या एंटरटेनमेंट कर रहे हो अगला यात्रा भी आपका जहां छोड़ोगे वहीं से स्टार्ट होगा तो प्रारब्ध उसी को कहते हैं कि आप पीछे से जो लेके आ रहे हो उसके के हिसाब से फिर आदमी आगे मोदी जी को आप देख लो मोदी जी के एक जन्म में कि एक आदमी हिमालय पर जाकर तपस्या भी कर लिया हो एक आदमी संघ का प्रचारक भी हो तमाम बार आप देखते होंगे वायरल होता है कि वो संघ के कार्यालय में झाड़ू भी लगा रहे हैं और 13 साल मुख्यमंत्री भी रह लेते हैं दिल्ली में दरी बिछाई दरी बिछाई और 12 साल प्रधानमंत्री भी 15 साल रह लेते हैं तो यह एक जन्म की यात्रा नहीं हो सकती किसी भी आदमी की हम लोग ये सोचते हैं यार कैसे यह संभव है तो यह हमको लगता है जन्मों की यात्रा होती है जो पीछे से आदमी भी लेके आता है। तो कर्म के साथ-साथ आपकी डेस्टिनी भी है। बिल्कुल पिछले जन्मों का लेखाजोखा और मौजूदा आदि गुरु शंकराचार्य किस उम्र में खत्म हो गए आप कल्पना करो। 30 साल में 30 साल में और उतने में वो चारों धाम ना हवाई जहाज थी ना गाड़ी थी। चारों धाम की स्थापना कर लेना। तो ये सवाल तो मैं सच में सोच के हैरान होता हूं। मतलब आप कल्पना करो कहां पर बद्री आश्रम कहां पर रामेश्वरम? आज केदारनाथ जाने में हालत खराब होती है। आप नहीं कर पाओगे।
आज केदारनाथ इसको जाना होता अगर आप पैदल जा रहे हो। पैदल जा रहे हो तो जबकि आप वहां तक तो गाड़ी से जाते हो। सिर्फ ऊपर चढ़ान की यात्रा पैदल करनी होती है और हमारी हालत खराब हो जाती है। तो ये यात्रा आदि गुरु शंकराचार्य की निश्चित तौर पर एक जन्म की नहीं है। वो पीछे से यात्रा चली आ रही थी जो उन्होंने 30 वर्ष में पूरा कर लिया। और जब वह पूरा करते हो आप तो समय आपका एक तरह से पूरा होता है। तो जीवन और मृत्यु के विवेकानंद की यात्रा देखो आप कितने समय में कितनी पॉपुलरिटी तो ये यात्रा है। तो फिर जीवन और मृत्यु कैसे देखते हो आप? जीवन और मृत्यु तो एक बहुत सामान्य है। हम लोग इसको बहुत हमें तो लगता है कि मृत्यु जो है इससे आपका और विकसित वर्जन है। हम लोग के लिएकि मोह है तो हम लोग सोचते हैं कि यार मर गया ये तो अब बताओ रोना पीटना मच जाता है। लेकिन हमें नहीं लगता कि आत्मिक दृष्टि से वो कोई कष्ट की बात है। भाई आप एक कुत्ते को भी बांध के रखो तो स्वतंत्रता चाहता है ना। यह शरीर तो हमारा आपका बंधन है ना। आत्मा के लिए यह बंधन है और ऐसे भी कहा गया है कि मृत्यु लोक में हम भोगने आते हैं।
पर हम तो इसी को सब कुछ मान के बैठे हैं। इसी को सब कुछ मान के बैठे हैं। लेकिन हमें हमारा अपना आकलन है कि इसके बाद की यात्रा ज्यादा सुखद होगी। क्योंकि बंधन से मुक्ति हर आदमी चाहता है। ये शरीर से जब आत्मा मुक्त होगी तो 100% वो ज्यादा सुखदाई होगी। तो मोह से कैसे बचें? फिर क्योंकि मुंह तो है। यह मेरा स्टूडियो है। यह मेरा घर है। यह मेरा परिवार है। ये मेरी बीवी है। ये मेरा बच्चा है। यह मेरा पैसा है। यह मेरा सामान है। आपने अनुभव से क्या सीखा फिर? कैसे बचे मुंह से? वो अपने आप ईश्वर जब चाहेंगे तो छुड़ा देंगे। वो वही बताए कि प्रारब्ध का सब फल है कि आपको अगर कोई यात्रा तय करनी है तो आप प्रेम से तय करोगे नहीं तो कष्ट से तय करोगे। करा तो ईश्वर तो करा लेगा। हम जो ईश्वर ने आपको आपके लिए तय किया है हम वो अगर आपको ये लिखा है कि बच्चों के लिए आपको काम करना है या गांव में जाकर सेवा करना है तो आप या तो प्रेम से करोगे और आप अगर बहुत मोह में फंसे हुए हो ये पैसा और यह धंधा ये होटल ये तो ईश्वर फिर जबरदस्ती कराएगा करा लेगा यहां से आपके आगे यात्रा क्या है अभी भी महत्वाकांक्षाएं हैं या मान लिया है कि यात्रा ही है जो एक्सप्लोर होता जाएगा यात्रा है महत्वाकांक्षा नाम की कोई चीज नहीं यात्रा इस यात्रा को आज सुबह उठे आज सुबह से कैसे उसको सफल करें क्या अच्छा करें जो किसी काम आ सके यह शरीर काम आ सके जो आपने कमाया है वो काम आ सके तो फिर फल है जैसे कहीं सुगबुगाहट पढ़ी थी मैंने कि आपने बीजेपी से टिकट मांगा आपको नहीं मिला.
तो ये महत्वाकांक्षा नहीं थी देखिए बीजेपी से टिकट मांगने के पीछे एक कारण था हम लोग बहुत संघर्ष करते थे और आज भी करते हैं हमारे कैंप में 5- 5000 आदमी आते हैं उतना बड़ा टेंट लगाने की हमारे पास व्यवस्था नहीं होती तो हम लोग विद्यालयों में जाते थे कि एक दिन के लिए विद्यालय अपना दे दीजिए। जब विद्यालय लेते थे तो विद्यालय के ऊपर जो है दबाव बनता था। नेता को यह डर लगता था कि यार यह तो बहुत लोकप्रिय हो रहा है। तो कैंप वहां पर जो अध्यापक हैं या प्रिंसिपल हैं उसको सस्पेंशन होने लगता था। तो यह लगा कि यह सुविधा है। मतलब जो काम जो हमारी यात्रा है उस यात्रा में सपोर्ट हो जाएगा। लेकिन नहीं भी हुआ तो कोई बात नहीं। अगला कैंप हम जेल में लगा रहे हैं। हमें लगता है कि सबसे ज्यादा आध्यात्मिकता कष्ट में, अध्यात्म में और मेरे ख्याल से अवसाद में जेल के अंदर में रहने वाले लोग हैं। तो अब अगर विद्यालय में किसी को सस्पेंड करते हो.
, आप यह करते हो तो जेल में तो आपको परेशानी नहीं होनी चाहिए। तो हम लोग जेल चुने हैं अभी कि जेल में जितने लोग एक-एक जेल में इतने बंदी हैं परेशान हैं। बट जैसे आपके पास पैसा है, नाम है, सब कुछ है। महतत्वाकांक्षाएं आती हैं कि मेरे को अब राजनेता बन जाना है, विधायक, मंत्री या अब नहीं लगता हमें। आप यकीन नहीं मानोगे। लगता है कि यार ऐसी कोई इज्जत राजनीति में दिखती नहीं कि आपकी इज्जत बहुत बढ़ जाने वाली है या कुछ बहुत विशेष हो जाने वाला है। हमें तो लगता है कि राजनीति में करने के बाद आपको गाली ही सुनना है। कुछ इज्जत तो बढ़ने वाली नहीं।
