क्या दुनिया को सितंबर में एक नया देश मिलने वाला है? क्या मिडिल ईस्ट का नक्शा हमेशा के लिए बदलने वाला है? सऊदी अरब ने एक ऐसा ऐलान कर दिया है जिससे इजराइल की टेंशन बढ़ गई है और फ्रांस ने तो तारीख की तरफ भी इशारा कर दिया है। आज हम बात करने वाले हैं उस ऐतिहासिक मीटिंग की जिसने पूरी दुनिया में हलचल मचा दी है। एक तरफ सऊदी अरब का पैसा और दबदबा। दूसरी तरफ फ्रांस की डिप्लोमेटिक ताकत और इन सबके बीच एक नए देश फिलिस्तीन के जन्म की कहानी। आखिर हुआ क्या है यूएन में?
न्यूयॉर्क में मौजूद यूनाइटेड नेशंस के हेड क्वार्टर में एक बहुत बड़ी कॉन्फ्रेंस हुई। मुद्दा था इजराइल और फिलिस्तीन का सालों पुराना विवाद। लेकिन यह कोई आम मीटिंग नहीं थी। इस मीटिंग की अगुवाई कर रहे थे दो बड़े देश सऊदी अरब और फ्रांस। और यहां जो बातें कही गई वो किसी जिओपॉलिटिकल भूकंप से कम नहीं है। सबसे पहले माइक पर आए सऊदी अरब के विदेश मंत्री प्रिंस फैसल बिन फरहान। और उन्होंने आते ही जो कहा उसने सारी दुनिया का ध्यान खींच लिया। प्रिंस फैसल ने साफ-साफ कहा अगर मिडिल ईस्ट में शांति और स्थिरता चाहिए तो इसका सिर्फ एक ही रास्ता है। टू स्टेट सॉल्यूशन। अब आप पूछेंगे कि ये टू स्टेट सॉल्यूशन क्या भला है? देखिए बिल्कुल सिंपल भाषा में इसका मतलब है एक ही जमीन पर दो देश। एक इजराइल और दूसरा फिलिस्तीन। दोनों शांति से अपनी-अपनी सीमाओं में रहें। और सऊदी अरब ने कहा है कि फिलिस्तीन देश बनना चाहिए 1967 की सीमाओं पर और उसकी राजधानी पूर्वी यरूशलेम होनी चाहिए।
लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं हुई। सऊदी प्रिंस ने इसके बाद एक ऐसी लाइन बोली जो इजराइल के लिए एक सीधी चेतावनी है। उन्होंने कहा सऊदी अरब तब तक इजराइल के साथ कोई भी डिप्लोमेटिक रिश्ता नहीं बनाएगा जब तक एक आजाद फिलिस्तीनी देश नहीं बन जाता। सोचिए यह कितनी बड़ी बात है। कई सालों से यह खबरें चल रही थी कि सऊदी अरब और इजराइल करीब आ रहे हैं। लेकिन अब सऊदी ने अपनी शर्त दुनिया के सामने रख दी है।
पहले फिलिस्तीन फिर इजराइल से दोस्ती। उन्होंने यह भी कहा कि फिलिस्तीन को मान्यता देने के लिए हमें इजराइल की हां या ना का इंतजार करने की जरूरत नहीं। मतलब साफ है। सऊदी अब वेट एंड वॉच के मूड में नहीं है। इस कहानी में सऊदी अकेला नहीं है। उसका साथ दे रहा है यूरोप का पावर हाउस फ्रांस। फ्रांस के विदेश मंत्री जीन नोएल बैरोट ने इस आग में घी डालने का काम किया। उन्होंने कहा फ्रांस फिलिस्तीनी लोगों के अधिकार का समर्थन करता है और यह बहुत मुमकिन है कि आने वाले महीनों में शायद सितंबर तक कई और देश फिलिस्तीन को एक देश के तौर पर मान्यता दे देंगे।
उन्होंने यह भी कहा कि गाजा में जो हो रहा है वह बर्दाश्त से बाहर है। यह जंग बहुत लंबी खींच गई है और अब इसे रुकना ही होगा। मतलब सऊदी का दबदबा और फ्रांस की डिप्लोमेसी मिलकर एक ऐसा माहौल बना रहे हैं जिसे फ्रांस के मंत्री ने अनस्टपेबल मोमेंटम यानी ना रुकने वाली लहर कहा है। अब सवाल उठता है कि खुद फिलिस्तीन इसके लिए कितना तैयार है? इस मीटिंग में फिलिस्तीन के प्रधानमंत्री मोहम्मद मुस्तफा भी मौजूद थे। उन्होंने सऊदी अरब और फ्रांस का शुक्रिया अदा किया।
लेकिन उन्होंने एक बहुत ही जरूरी और अंदर की बात कही। उन्होंने कहा कि हमें वेस्ट बैंक और गाजा को एक करना होगा और उन्होंने हमा से अपील की कि वो अपने हथियार डाल दे और फिलिस्तीनी अथॉरिटी को कंट्रोल लेने दे। यह एक बहुत बड़ा पॉइंट है क्योंकि दुनिया फिलिस्तीन को एक देश तभी मान पाएगी जब वो अंदर से एक हो। जब वहां एक ही सरकार का कंट्रोल हो ना कि अलग-अलग गुटों का। तो एक तरफ दुनिया का दबाव है और दूसरी तरफ फिलिस्तीन के सामने घर को ठीक करने की चुनौती है। तो कुल मिलाकर तस्वीर क्या बन रही है? सऊदी अरब खुलकर फिलिस्तीन के समर्थन में उतर आया है और इजराइल पर दबाव बना रहा है। फ्रांस जैसे बड़े यूरोपीय देश इस मुहिम को लीड कर रहे हैं जिससे और देशों के जुड़ने की उम्मीद है।
सितंबर का महीना बहुत अहम हो सकता है जब फिलिस्तीन को एक देश के रूप में मान्यता देने की लहर चल सकती है और फिलिस्तीन खुद भी राजनैतिक एकता की कोशिश कर रहा है। यह सब मिलकर मिडिल ईस्ट की राजनीति में एक बहुत बड़ा भूचाल ला सकते हैं।
सालों से जो विवाद सुलझ नहीं पा रहा था क्या अब वो अपने अंजाम तक पहुंचेगा? क्या सच में सितंबर तक एक नया फिलिस्तीनी देश बन पाएगा? और अगर ऐसा होता है, तो इजराइल का अगला कदम क्या होगा?