1958 हदाली पाकिस्तान एक सर्द सुबह एक राजसी हवेली के बाहरी दरवाजे खोले अंदर कहीं रेशमी पर्दों के बीच एक बच्ची ने पहली बार दुनिया को देखा नाम रखा गया अमृता अमृता सिंह यह कोई आम जन्म नहीं था यह खामोश तूफान की दस्तक थी एक तरफ मां रुखसाना सुल्तान जो इंदिरा गांधी की सबसे भरोसेमंद राजनीतिक से सालार थी दूसरी ओर नानी स्वतंत्रता संग्राम के सिपाही और तीसरे कोने में खड़े थे चाचा खुशवंत सिंह वो लेखक जिनके कलम से निकले शब्द भी अमृता ऐसे ही गुणों से नहीं बनी थी उसमें इतिहास राजनीति और तहजीब की तरह थी लेकिन इस बच्ची में कुछ ऐसा था जो बाकी सबसे अलग था लड़कियां तब पर्दों में गुम रहती थी।
लेकिन अमृता लिपस्टिक को की तरह पहनती थी जब मोहल्ले की लड़कियां गुड़ियां खेलती थी अमृता आईने से लड़ती थी खुद को हर दिन एक नई भूमिका में देखती थी कभी नायिका कभी बागी कभी रानी कभी रंक उसे तब से यह एहसास था कि यह चेहरा यह चाल यह आंखें एक दिन पर्दे पर बोलेंगी और बोलेंगी तो ऐसा कि पूरी दुनिया चुप हो जाएगी मुझे तो यह कहना भी नहीं आता मैं क्या करूं दिल्ली के मॉडर्न स्कूल की गलियों में अगर कोई नाम था जो हर दीवार पर गूंजता था तो वो था अमृता सिंह वो क्लास में नहीं कैरेक्टर में चलती थी बाकी लड़कियां ड्रेस कोड में होती थी और अमृता स्टाइल कोड में एक बार स्कूल में एक मॉडलिंग कंपटीशन हुआ स्टेज पर पांव रखने से पहले लड़कियां कांप रही थी।
लेकिन अमृता उसने एंट्री ली जैसे यह कोई स्कूल इवेंट नहीं बल्कि उसकी जिंदगी का पहला शो हो उसने अपनी चाल में आत्मविश्वास डाला और आंखों में ठहराव रखा पोज ऐसे किया मानो कैमरे उसी के इशारे पर फोकस बदलते हो तालियां बजी बहुत जोरदार बिना किसी रोक के और तभी एक टीचर ने बगल वाले से फुसफुसाकर कहा “इस लड़की को कैमरा खुद बुलाएगा यह एक दिन फिल्मों पर राज करेगी उस दिन अमृता ने सिर्फ एक राउंड नहीं जीता उसने अपनी किस्मत की पहली स्क्रिप्ट खुद लिख दी थी वक्त बदल रहा था और अमृता की किस्मत भी एक दिन एक नामी फोटोग्राफर उसके घर आया शूट था लेकिन आम नहीं अमृता ने साड़ी पहनी होठों पर हल्की सी लिपस्टिक एक हाथ कमर पर रखा और दूसरी में थाम ली लेकिन सबसे तीखी चीज थी उसकी आंखें उन आंखों में कोई मासूमियत नहीं थी वहां एक ऐलान था कि यह लड़की पर्दे पर आएगी तो सिर्फ हीरो के लिए नहीं कहानी बदलने के लिए आएगी।
कैमरा क्लिक करता गया और हर क्लिक एक इबारत बन गया उन तस्वीरों में जो आग थी उसने सीधा एक फिल्म मेकर के दरवाजे पर दस्तक दी उस तस्वीर को देखकर सिर्फ एक बात कही गई यह लड़की स्टार नहीं तूफान है और कुछ दिन बाद अमृता को एक कॉल आया फिल्म बेताब का ऑफर था उसी पल तय हो गया अब यह लड़की सिर्फ कैमरे के सामने नहीं आएगी अब यह कैमरा उसकी तरफ मुड़ेगा हमेशा के लिए 1983 का साल और बॉलीवुड को मिलने वाला था एक नया चेहरा लेकिन वो सिर्फ चेहरा नहीं था वो एक एहसास था फिल्म बेताब रिलीज हुई जिसमें अमृता सिंह ने सनी देओल के साथ डेब्यू किया।
एक तरफ धर्मेंद्र का बेटा दूसरी तरफ एक नवाबी तेवरों वाली लड़की और जब दोनों पर्दे पर साथ आए तो स्क्रीन पर सिर्फ संवाद नहीं ज्वालाएं चल रही थी अमृता की आंखें जैसे हर सीन में दर्शकों से कुछ कह रही थी कभी शिकायत कभी मोहब्बत और कभी सीधा सवाल उसकी मुस्कान में वो शोखी थी जो सीधे दिल में उतर जाए फिल्म बॉक्स ऑफिस पर हिट हो गई लेकिन असली विजय वो थी जो अमृता ने पहले ही फ्रेम में हासिल कर ली लोगों के दिलों में जगह बना लेने की वो कोई सपोर्टिंग डेब्यू नहीं था।
वह एक ऐलान था कि यह औरत खुद अपनी हीरो है बेताब से पर्दे पर आग लगाने के बाद अमृता ने रफ्तार पकड़ी और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा मर्द में अमिताभ के साथ स्क्रीन शेयर की चमेली की शादी में उसने मासूम रोमांस को एक तीखी चालाकी से मिलाया आईना में वह सिर्फ बहन नहीं एक जिद्दी आत्मा बनकर उभरी और राजू बन गया जेंटलमैन में शाहरुख जैसे उभरते सितारे के सामने भी अपनी मौजूदगी का दमखम दिखा दिया अमृता सिर्फ ग्लैमर की पैकेज नहीं थी वह किरदारों में अपने तेवर डाल देती थी उसकी परफॉर्मेंस में एक तीखी समझ होती थी एक सख्त भाषा एक ऐसी चाल जिसमें मोहब्बत भी थी और मुकाबला भी वो मासूम बनने की कोशिश नहीं करती थी वो अपने रोल को एक लड़ाकू लड़की की तरह जीती थी जो 80 के दशक की दूसरी हीरोइनों से बिल्कुल जुदा थी उसकी आवाज में खननक थी नजरों में चुनौती और चाल में बगावत अमृता पर्दे पर आती नहीं थी वह पर्दे पर कब्जा करती थी बेताब के सेट पर सिर्फ कैमरे ही नहीं दिल भी चल रहे थे सनी देओल और अमृता सिंह के बीच जो केमिस्ट्री पर्दे पर दिखी वो रील से ज्यादा रियल थी।
शूटिंग के बाद दोनों की आंखें एक दूसरे को ढूंढती थी और सीन के बीच मुस्काने इशारे करती थी अमृता ने सनी में एक सच्चा दोस्त एक साथी शायद अपना पहला प्यार देखा लेकिन किस्मत के पास अपनी स्क्रिप्ट थी एक दिन किसी ने अमृता को बताया सनी पहले से ही शादीशुदा है यह सुनना जैसे बिजली गिरने जैसा था अमृता ने उसी रात सनी को फोन किया शायद सफाई सुनने के लिए शायद खुद को समझाने के लिए लेकिन जवाब क्या आया यह इतिहास नहीं बताता क्योंकि बात अधूरी रही अमृता ने बात बीच में ही काट दी और फिर कभी दोबारा फोन नहीं किया सनी की मुस्कान अब एक रहस्य बन गई और अमृता का पहला प्यार एक बंद दरवाजा मोहब्बत का पहला अनुभव सिगरेट की तरह निकला कश तो मीठा था पर धुआं सीधा आंखों में चला गया तू मेरा तू मेरा सनी देओल से मिले धोखे के बाद अमृता ने दिल को समझाया पर बंद किया नहीं और तभी उसकी जिंदगी में दस्तक दी ।
एक और सितारे ने इस बार क्रिकेट की दुनिया से नाम था रवि शास्त्री ऊंची कद काठी तेज चाल और मैदान में जीत की भूख रवि ने अमृता की उदास आंखों में फिर से चमक भर दी दोनों को साथ देखा जाने लगा कभी मैच के स्टैंड्स में कभी अखबारों के पहले पन्ने पर कैमरे हर जगह उन पर टिक जाते खबरें आई बॉलीवुड की बेबाक ब्यूटी और क्रिकेट का चॉकलेट हीरो एक दूसरे के हो चुके हैं फिर आया वो दिन जब दोनों ने सगाई कर ली उंगलियों में अंगूठियां थी होठों पर वादे लेकिन फिर अचानक कहानी में एक किरदार आया रवि की मां उन्हें यह रिश्ता मंजूर नहीं था और वहीं मां बेटे के बीच खड़ी हो गई रवि झुके और अमृता फिर से अकेली रह गई ना वजह मिली ना सफाई बस एक चुप्पी और एक खबर अमृता रवि अलग हो गए पर इस बार अमृता रोई नहीं उसने चेहरे पर वही मुस्कान रखी मेकअप किया और फिर कैमरे के सामने आई जैसे कह रही हो दिल भले ही टूटा हो पर किरदार अब भी पूरा है बंटवारा फिल्म सिर्फ एक फिल्म नहीं थी वो अमृता की जिंदगी में एक और इम्तिहान बनकर आई सेट पर जब पहली बार उसकी नजरें विनोद खन्ना से टकराई तो अमृता के दिल में कुछ डोल गया विनोद सधे हुए गंभीर और एक अलग ही ठहराव लिए हुए और अमृता बिंदास जवान और मोहब्बत की तलाश में भटकती दोनों की दुनिया अलग थी।
लेकिन जज्बातों की भाषा एक थी धीरे-धीरे बातचीत बढ़ी लंच शेयर हुआ और सीन से ज्यादा रिहर्सल में वक्त बीतने लगा अमृता को लगने लगा शायद इस बार मोहब्बत मुकम्मल होगी लेकिन कहानी इतनी आसान कब रही 12 साल का फासला था उम्र में सोच में और जिंदगी के अनुभवों में मां ने साफ मना कर दिया यह रिश्ता तुम्हें तोड़ेगा समाज की उंगलियां उठी वो तो तलाकशुदा हैं दो बच्चों के पिता हैं और उम्र में बड़े पर अमृता डटी रही क्योंकि उसे लगा यह बगावत मोहब्बत के लिए जरूरी है मगर बगावत जितनी भी बड़ी हो अगर दो दिल एक राह पर ना हो तो वह मंजिल नहीं देती विनोद की जिंदगी अलग मोड़ पर थी और एक दिन बिना कोई बड़ा तूफान आए यह रिश्ता बे भी खामोशी से बिखर गया अमृता ने फिर एक रिश्ता खो दिया लेकिन इस बार शिकवा नहीं बस दिल में एक लकीर और जोड़ ली और खुद से कहा शायद मोहब्बत मेरे नसीब में लिखी ही नहीं गई है या फिर मेरी मोहब्बत किसी के नसीब में नहीं थी।
1990 बॉलीवुड की पार्टीज फ्लैश लाइट्स और ग्लैमर की भीड़ में एक फोटो शूट चल रहा था एक तरफ खड़ा था एक 21 साल का लड़का सैफ अली खान पटौदी के नवाब का बेटा जो अपनी पहचान बनाने के लिए पसीना बहा रहा था दूसरी ओर थी अमृता सिंह 33 साल की एक हिट एक्ट्रेस जिसने इंडस्ट्री को अपनी अदाओं और तेवर से हिला कर रख दिया था सैफ कैमरे के सामने थोड़ा झिझक रहा था लेकिन अमृता ने उसे देखा और जैसे ही कैमरा क्लिक हुआ दोनों के बीच कुछ क्लिक कर गया शूट के बाद पार्टी में सब हंस बोल रहे थे लेकिन सैफ की नजर बार-बार अमृता को देख रही थी वो सिर्फ उसकी खूबसूरती से नहीं उसकी शख्सियत से खींच गया था रात को सैफ ने फोन उठाया थोड़ी हिचक थोड़ा जोश और ढेर सारा आकर्षण उसने कॉल किया अमृता ने रिसीव किया उसकी आवाज में हैरानी भी थी और मुस्कान भी दोनों की बातें चली घंटों तक और वहीं से एक सिलसिला शुरू हुआ दो बिल्कुल अलग दुनिया के लोग जिनकीिंदगियां अब एक दूसरे में उलझ चुकी थी आई अखाड़े में तेरे सपनों की रानी वो मोहब्बत नहीं थी वो जो धीरे-धीरे पनपती है यह उन कहानियों में से थी जो अचानक होती हैं और गहराई छोड़ जाती हैं उम्र बैकग्राउंड स्टारडम सब बेईमानी हो जाता है बस एक कॉल ने दो जिंदगियों की स्क्रिप्ट बदल दी थी वो रिश्ता जो एक कॉल से शुरू हुआ था अब वक्त की अग्नि परीक्षा से गुजरने को तैयार था 12 साल का अंतर जहां अमृता अपने करियर की ऊंचाई पर थी वहीं सैफ अपने करियर की शुरुआत में एक तरफ रॉयल खानदान का नवाब बेटा दूसरी तरफ पंजाबी बाग की बिंदास बागी लड़की जो प्यार करे तो पूरी दुनिया से लड़ जाए सैफ एक मुस्लिम शाही परिवार से था जहां परंपराएं सांस लेती थी और अमृता एक सिख परिवार से जहां जज्बात की धार जैसे होते हैं ।
परिवारों में खलबली मच गई सैफ की मां शर्मिला टैगोर और बहन सोहा सबने इस रिश्ते को रोकने की कोशिश की मीडिया ने हेडलाइंस बनाई क्या यह रिश्ता चलेगा क्या अमृता सैफ की मां बनने जा रही हैं समाज की हर नजर ताने फेंक रही थी लेकिन जब दिल जिद पर आ जाए तो ताजमहल से लेकर टूटी छत तक सब मंजूर होता है और फिर आया 1991 एक प्राइवेट सेरेमनी चुपचाप बिना शोर के कोई बॉलीवुड तमाशा नहीं कोई मीडिया हाइप नहीं बस दो लोग जिन्होंने दुनिया की आवाजों से ऊपर अपनी आवाज को चुना अमृता और सैफ एक हो गई बिना किसी शर्त के बिना किसी डर के यह शादी सिर्फ दो लोगों की नहीं थी यह एक ऐलान था कि जब मोहब्बत हदों को लांघती है तब इतिहास खुद अपनी शक्ल बदलता है 1993 फिल्म रंग के बाद अमृता सिंह ने अचानक सब कुछ छोड़ दिया कैमरे रोल्स रिहर्सल मेकअप रूम की हलचल सब वजह सिर्फ एक थी अब वह अमृता सिंह एक्ट्रेस नहीं बल्कि अमृता अली खान बीवी और मां बनना चाहती थी उसने फिल्मी दुनिया की चमक-धमक को पीछे छोड़ दिया और एक नई जिंदगी की तरफ कदम बढ़ाया जहां किरदार नहीं रिश्ते निभाने थे फिर हुआ एक नया जन्म सारा अली खान का और कुछ सालों बाद इब्राहिम की किलकारियां भी उसके घर गूंजी अमृता की दुनिया अब इन दो मुस्कानों में सिमट गई वो बच्चों को पालती सैफ की देखभाल करती और खुद को एक आदर्श गणी की तरह ढाल चुकी थी बाहर की दुनिया को लग रहा था क्या त्याग है इस औरत में लेकिन भीतर एक सवाल पल रहा था क्या उसने खुद को छोड़ दिया था या शायद अमृता ने खुद को यकीन दिला दिया था कि यही उसका असली किरदार है एक पत्नी एक मां और कुछ नहीं लेकिन किस्मत की स्क्रिप्ट अक्सर वही पढ़ता है जो हम मिटा देना चाहते हैं अमृता को लगा था कि उसकी जिंदगी पूरी हो चुकी है पर असल में कहानी अब शुरू होने वाली थी हर परफेक्ट लगने वाली कहानी के पीछे एक अधूरा पन्ना छुपा होता है और अमृता की जिंदगी का वह पन्ना तब खुला जब रिश्ते में खामोशी बढ़ने लगी घर वही था लोग वही थे लेकिन सैफ अब बदल चुके थे।
एक दिन अखबार में खबर छपी सैफ अली खान और इटालियन मॉडल की नजदीकियां फिर कुछ हफ्तों बाद एक और नाम एक और एक्ट्रेस अमृता ने पहले इन खबरों को नजरअंदाज कर दिया शायद इसलिए क्योंकि वह अब भी उस रिश्ते को बचाना चाहती थी बच्चों के लिए खुद के लिए या शायद उन सपनों के लिए जो उन्होंने इस शादी में देखी थी लेकिन हर दिन एक नई दरार ला रहा था अब मुस्कुराहटें औपचारिक हो गई थी और चाय के कप के साथ अब चुप्पी परोसी जाती थी अमृता चुप रही लेकिन एक पत्नी की तरह एक मां की तरह एक औरत की तरह जिसने पहले भी बहुत कुछ सहा था लेकिन इस बार कुछ टूट गया प्यार का सादा कीमत ही कुछ एक सुबह जब उसने आईने में खुद को देखा तो वो वही औरत नहीं थी जो कैमरे से आंख मिलाया करती थी वो थकी हुई बुझी हुई नजर आई और उसी दिन बिना कोई ड्रामा बिना किसी शोर के अमृता ने फैसला कर लिया अब नहीं अब मैं सिर्फ किसी की बीवी नहीं फिर से खुद बनूंगी और उसने तलाक के पेपर साइन कर दिए कहानी का यह मोड़ सिर्फ एक अंत नहीं था यह अमृता के लिए एक नई शुरुआत थी।
अकेले लेकिन सिर ऊंचा करके 2004 वो साल जब एक राजकुमारी की कहानी से रानी का ताज छीन लिया गया 13 साल पुराना रिश्ता जो कभी मोहब्बत से शुरू हुआ था अब सिर्फ एक दस्तावेज पर खत्म हो चुका था सैफ चले गए अपने नए सफर की तरफ नई मोहब्बत नई दुनिया के साथ और अमृता वो रुक गई लेकिन हार मानने के लिए नहीं अब वो अकेली थी ना शौहर था ना कोई ससुराल और ना ही ग्लैमर इंडस्ट्री की वो भीड़ जो कभी तालियां बजाती थी लेकिन अमृता के पास दो अनमोल वजह थी सारा और इब्राहिम वो उठी बच्चों की किताबें उठाई स्कूल के फॉर्म भरे डॉक्टर के अपॉइंटमेंट लिए और हर काम अकेले किया जब सारा के स्कूल में पेरेंट टीचर मीटिंग होती थी अमृता वहां पहली बेंच पर बैठी मिलती थी जब इब्राहिम बीमार होता था तो मां की गोद ही दवा बन जाती थी लेकिन इस पूरी यात्रा में अमृता ने कभी खुद को बेचारी नहीं कहा वो खुद को टूटी हुई औरत नहीं मानती थी बल्कि एक फाइटर थी जिसने जिंदगी से जितना लिया उतना ही दिया भी उसने गहने नहीं हिम्मत पहनी आंसू नहीं मुस्कान ओढ़ी और सहारे नहीं खुद पर यकीन रखा अमृता सिंह उस दौर की सबसे खूबसूरत एक्ट्रेस थी ।
लेकिन तलाक के बाद वह उस दौर की सबसे ताकतवर औरत बन गई 2012 एक और शादी एक और सुर्खियां इस बार दूल्हा वही था लेकिन दुल्हन बदली थी करीना कपूर कैमरे चमक रहे थे मीडिया ने हेडलाइंस में शोर मचाया बॉलीवुड का सबसे ग्लैमरस जोड़ा हर चैनल हर अखबार बस एक ही बात कर रहा था सैफ करीना की रॉयल वेडिंग और उस शोर के बीच एक कोना था अमृता सिंह का जहां ना कोई कैमरा था ना कोई बयान ना बधाई ना कोई ताना बस एक खामोश साया जो पूरे तमाशे को देख रहा था बिना कुछ कहे अमृता चुप थी लेकिन उनकी चुप्पी में एक गहराई थी जो कह रही थी जिसे मैंने अपना सब कुछ दिया वो आज किसी और का सब कुछ बन गया शायद उन्हें फर्क नहीं पड़ा या शायद बहुत ज्यादा पड़ा क्योंकि जिसने मोहब्बत को पूरी ईमानदारी से निभाया हो वो सिर्फ इंसान को नहीं उस एहसास को भी जीता है सैफ के लिए यह एक नई शुरुआत थी पर अमृता के लिए यह एक पुराने जख्म की फिर से खुली परत थी पर फिर भी उसने कोई बयान नहीं दिया कोई इंटरव्यू नहीं किया क्योंकि कुछ औरतें मोहब्बत में सिर्फ जीती हैं और जब हारती हैं तो भी इज्जत से यह जो एक दौर में हर स्क्रीन पर छाई रहती थी यह जो एक वक्त पर सब कुछ छोड़कर खामोशी में खो गई थी।
वही अमृता सिंह ने फिर से दस्तक दी लेकिन इस बार एक नई पहचान के साथ 2002 में फिल्म शहीद से की वापसी और इंडस्ट्री को एहसास हुआ कि यह वही अमृता है लेकिन अब उनकी नजरों में एक नई आग है वो अब नायिका नहीं थी पर उसकी मौजूदगी ही कहानी को गहराई देने लगी टू स्टेट्स में एक पंजाबी मां के रोल में उसने अपनी आवाज की खनक से पूरी स्क्रीन पर पकड़ बना ली हिंदी मीडियम में वह एक सास बनी लेकिन हर सीन में उसका अंदाज कहता था कि यह किरदार सिर्फ स्क्रीन भरने के लिए नहीं है कहानी को थामने के लिए है और फिर आया बदला जहां उसकी शांति में भी एक तूफान छुपा था अब वह सिर्फ संवाद नहीं बोलती थी वह आंखों से बातें करती थी और दशक खामोशी से सुनते थे कैमरा जो कभी उसकी मुस्कान पर टिकता था अब उसकी निगाहों से डरने लगा था क्योंकि अमृताब नायिका नहीं एक अनुभव बन चुकी थी उसने साबित कर दिया कि एक औरत अगर फिर से उठे तो उसकी वापसी में सिर्फ किरदार नहीं पूरा वजूद है जब सारा अली खान ने सिल्वर स्क्रीन पर पहली बार कदम रखा पूरा बॉलीवुड उसके हर एक्सप्रेशन हर डायलॉग हर लुक पर नजरें गड़ाए बैठा था लोग पूछते रहे यह तेज चाल किसकी है यह आंखों की गहराई कहां से आई और जवाब कहीं बाहर नहीं अमृता सिंह के भीतर छुपा था मेरे दिल की अगली सारा की मुस्कुराहट में वही शोखी थी जो अमृता की पहली झलक में दिखी थी उसका आत्मविश्वास उसके संवादों को थामने का तरीका उसके स्टाइल में जो बेबाकी थी सब कुछ जैसे किसी पुराने किरदार का पुनर्जन्म था वो कैमरे से डरती नहीं थी बल्कि कैमरा उसकी तरफ खींचता था ठीक वैसे ही जैसे अमृता के समय में होता था पर पर्दे के पीछे जहां फ्लैश नहीं होते वहां आज भी एक साया खड़ा है जो सारा के हर निर्णय हर मोड़ हर गिरते उठते कदम पर साथ देता है अमृता अब गाइड नहीं रीड बन चुकी हैं वो हर सलाह में हर फीडबैक में हर मां की आंखों से सारा की तरफ एक चुपचाप शक्ति बनकर रहती हैं और सारा जब वह किसी मंच पर खड़ी होकर कहती हैं “मेरी मां मेरी सबसे बड़ी ताकत है तो वह सिर्फ एक बेटी की बात नहीं होती वो एक विरासत का ऐलान होता है जो मां से बेटी तक बिना कहे बहादुरी में बदल गई इब्राहिम अली खान एक ऐसा नाम जो आज भी पर्दे से दूर है।
लेकिन सोशल मीडिया की हर हलचल में शामिल है जब उसकी तस्वीरें सामने आती हैं तो लोग कहते हैं चेहरा तो नवाबी है पर आंखों में वो ठहराव किसका है और जवाब फिर वही होता है अमृता सिंह इब्राहिम की चाल में भले ही पटौदी खानदान का अंदाज हो लेकिन उसकी आंखों में जो संयम जो परिपक्वता जो गहराई है वह किसी मां की परवरिश का असर है अमृता ने उसे कभी हेडलाइंस की दौड़ में नहीं डाला कभी फ्लैशाइट के पीछे नहीं धकेला वो चाहती हैं कि उसका बेटा तैयार होकर आई प्रसिद्ध नहीं जब पूरी इंडस्ट्री स्टार किड्स को लॉन्च करने की होड़ में है अमृता इब्राहिम को उस भीड़ से अलग रखती हैं क्योंकि वह जानती हैं कि शहरत का चमकता चांद भी कभी-कभी सबसे अंधेरे अकेलेपन में बदल जाता है वो उसे नाम नहीं दे रही हैं वह उसे पहचान गढ़ने का मौका दे रही हैं और यही फर्क एक स्टार मॉम और एक समझदार औरत में होता है अमृता सिंह अपने बेटे को स्टार बनाने की जल्दी में नहीं है वह उसे इंसान बनाने में लगी हैं आज की तारीख में जब हर दूसरा चेहरा लाइमलाइट में रहने की कोशिश करता है ।
अमृता सिंह मुंबई की एक साधी सी बिल्डिंग में बेहद सादगी से जिंदगी बिता रही है ना कोई पार्टनर ना कोई अफेयर ना कोई विवाद बस वह है उनके कुछ पुराने फोटो फ्रेम कुछ चुपचाप रखी किताबें और ढेर सारी यादें पर इस अकेलेपन को कोई दया की नजर से मत देखिए यह अकेलापन उनकी कमजोरी नहीं बल्कि उनका सबसे बड़ा चुनाव है उन्होंने खुद को दुनिया के शोर से हटाकर एक ऐसी जगह खड़ा किया है जहां शांति सांस लेती है अब उन्हें किसी को कुछ साबित नहीं करना किसी की नजरों में नहीं चमकना क्योंकि वह खुद जानती हैं उन्होंने अपनी जिंदगी की सबसे मुश्किल फिल्म खुद डायरेक्ट की है और बेमिसाल निभाई भी है वो नाउदी की शिकार नहीं है वो उम्मीद की उस उम्र में है जहां शांति ही सबसे बड़ा शोर बन जाता है अब वह किसी कहानी का हिस्सा नहीं अब वह खुद एक कहानी है अमृता को कभी अपने फैसलों पर पछतावा नहीं रहा जिन भी कोई कभी दिल उन्होंने मोहब्बत की शादी की तलाक लिया बच्चों को पाला और हर बार अपने फैसलों की जिम्मेदारी ली आज अमृता सिंह को देखकर लोग सिर्फ एक्ट्रेस नहीं एक स्टैंडिंग ओवेशन वाली औरत देखते हैं जो हारी पर झुकी नहीं जो टूटी पर बिकी नहीं अमृता मीडिया से दूरी बनाए रखती हैं ना शो ऑफ ना ड्रामा उनका मानना है कुछ रिश्तों को कैमरे से दूर रखना बेहतर होता है अब उनका ज्यादातर समय किताबें पढ़ने लिखने और खुद से बातें करने में गुजरता है शायद इसलिए क्योंकि उन्होंने सीखा है दुनिया से पहले खुद को समझना जरूरी है।
अमृता ने अपने नाम के आगे किसी का नाम जोड़कर नहीं जिया उन्होंने खुद का नाम कमाया और वह भी बिना किसी खानदानी छत्रछाया के तो जवाब होगा वो औरत जो मोहब्बत से टूटी समाज से लड़ी पर खुद से कभी हार नहीं मानी अगर अमृता सिंह की कहानी आपको छू गई हो तो इसे सिर्फ एक बायोपिक मत समझिए यह एक एहसास है कि औरत चाहे तो अकेली भी एक फिल्म बन सकती है और वो फिल्म ब्लॉकबस्टर होगी तो दोस्तों अगर आपको लगता है कि यह बस एक एक्ट्रेस की कहानी थी तो दोबारा सोचिए यह कहानी है एक औरत की जो प्यार में हारी लेकिन खुद से कभी हार नहीं मानी जो हर बार टूटी लेकिन हर बार पहले से ज्यादा खूबसूरती से जुड़ती गई अमृता सिंह कोई परियों की कहानी नहीं थी वो हकीकत की वह पंक्ति थी जो अक्सर लोग पढ़ना नहीं चाहते क्योंकि वह आईना होती है और आईना हमेशा सच्चा दिखाता है तो अगली बार जब आप बेताब या आईना जैसी फिल्में देखें तो उस स्क्रीन पर सिर्फ एक अभिनेत्री मत देखिएगा।