देश में लगातार डिजिटल पेमेंट बढ़ता जा रहा है। ऐसे में कहा जा रहा है कि सरकार जल्द ही बड़े नोटों को बंद कर सकती है। यानी सवाल उठ रहे हैं कि क्या ₹500 का नोट बंद हो जाएगा? इसी को लेकर भारतीय रिजर्व बैंक ने 2024, 2025 की सालाना रिपोर्ट पेश की है। इसके मुताबिक ₹500 का नोट देश में सबसे अधिक चलने वाला नोट बन चुका है। मूल्य के आधार पर इसकी हिस्सेदारी 86% है। जबकि मात्रा के लिहाज से 40.9% हिस्सेदारी के साथ यह सबसे ऊपर है। इसके बाद ₹10 के नोटों का स्थान है। जिनकी मात्रा में हिस्सेदारी 16.4स है। ₹10, ₹20 और ₹50 जैसे छोटे मूल्य वर्ग के नोटों की संयुक्त हिस्सेदारी ₹31.7% रही है। जो यह दर्शाता है कि दैनिक लेनदेन में छोटे नोटों की अहम भूमिका है।
रिपोर्ट में बताया गया है कि नोट छपाई पर आने वाला खर्च इस साल 25% बढ़ गया है। यह खर्च 5101.4 करोड़ से बढ़कर 6372.8 करोड़ हो गया है। इस बढ़ोतरी के पीछे कागज, स्याही और सुरक्षा फीचर्स की लागत में इजाफा जिम्मेदार माना जा रहा है। वहीं 2000 के नोट को चलन से हटाने की प्रक्रिया भी लगभग पूरी हो चुकी है। जिसमें 98.2% नोट बैंकिंग सिस्टम में लौट चुके हैं। यह रुझान दर्शाता है कि देश की मुद्रा प्रणाली धीरे-धीरे छोटे और मिड वैल्यू के नोटों की ओर शिफ्ट हो रही है। भारत में डिजिटल पेमेंट की लोकप्रियता लगातार नए कीर्तिमान बना रही है। आरबीआई की रिपोर्ट बताती है कि मई 2025 में यूपीआई के जरिए रिकॉर्ड ₹1868 करोड़ ट्रांजैक्शन हुए। जिनकी कुल वैल्यू 25.8 लाख करोड़ रही। यह आंकड़ा अप्रैल 2025 की तुलना में अधिक है। जब ₹1789 करोड़ लेनदेन हुए उनकी कुल वैल्यू 23.9 लाख करोड़ थी।
यह रुझान दिखाता है कि देश में डिजिटल भुगतान विशेष रूप से यूपीआई अब दैनिक लेनदेन का प्रमुख साधन बन चुका है। डिजिटल पेमेंट में यह तेजी नगदी के इस्तेमाल को पूरी तरह खत्म नहीं कर पाई है। मार्च 2025 के अंत तक देश में कुल 36.86 लाख करोड़ की करेंसी सर्कुलेशन में थी जो अब तक का एक रिकॉर्ड है। यह दर्शाता है कि देश की बड़ी आबादी डिजिटल और फिजिकल दोनों माध्यमों से लेनदेन कर रही है। अप्रैल में भारतीय रिजर्व बैंक ने एक नियम जारी किया। अगर इस नियम की मानें तो 30 सितंबर 2025 तक कम से कम 75% एटीएम में 100 या ₹200 के नोट होने चाहिए। मार्च 2026 तक यह आंकड़ा 90% होना चाहिए। इसका मकसद था कि लोग नोटों पर कम निर्भर रहे और रोजमर्रा के लेनदेन आसानी से हो। लेकिन फिर ऐसा क्यों हो रहा है कि कैश का इतना चलन बढ़ता जा रहा है। लोगों का मानना है कि कोविड महामारी में लोगों ने कैश का इस्तेमाल ज्यादा किया। यह आदत अभी भी भारतीयों का पीछा नहीं छोड़ रही है। आरबीआई का कहना है कि हाल ही में कैश का इस्तेमाल इसीलिए बढ़ा क्योंकि लोग अनिश्चित समय में पैसा बचाकर रखना चाहते हैं। आरबीआई की एक स्टडी में यह बातें भी सामने आई हैं।
स्टडी में कहा गया कि कैश का इस्तेमाल और आर्थिक असुरक्षा के बीच एक संबंध है। स्टडी में रात के समय की सेटेलाइट तस्वीरों का इस्तेमाल किया गया। इन तस्वीरों से आर्थिक गतिविधियों का पता चलता है। स्टडी में पाया गया कि जो इलाके ज्यादा रोशन हैं, वहां जीडीपी और टैक्स कलेक्शन ज्यादा है और कैश का इस्तेमाल कम है।इसका मतलब है कि जैसे-जैसे आर्थिक गतिविधियां बढ़ती हैं, कैश का इस्तेमाल कम हो जाता है।