ऋतिक रोशन ने बर्बाद किया था रजत बेदी का करियर।

बॉलीवुड की चकाचौंध भरी दुनिया में कुछ सितारे ऐसे होते हैं जो अपनी एक झलक से ही दर्शकों के दिलों में बस जाते हैं। ऐसा ही एक नाम था रजत बेदी। वो शख्स जिसने रतिक रोशन जैसे सुपरस्टार को भी पर्दे पर टक्कर दी। स्क्रीन पर उनकी दमदार मौजूदगी, आंखों में कॉन्फिडेंस और डायलॉग बोलने का बेमिसाल अंदाज दर्शकों को दीवाना बना देता था। वो विलेन बनकर आए लेकिन ऐसा विलेन जिसे देखकर नफरत कम और मजा ज्यादा आता था। पर बॉलीवुड की चकाचौंध भरी दुनिया में किस्मत कब पलटी मार जाए कोई नहीं ।

रजत बेदी की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। एक बड़े बैनर की फिल्म कोई मिल गया ने उनके करियर को आसमान पर ले जाने की बजाय जमीन पर लापटका। यह कहानी है एक ऐसे इंसाइडर की जिसे आउटसाइडर से भी ज्यादा स्ट्रगल करना पड़ा। यह कहानी है रजत बेदी की। एक ऐसे राजकुमार की जिसके पास सल्तनत तो थी लेकिन राजा नहीं था। रजत बेदी कोई साधारण इंसान नहीं थे। उनके खून में सिनेमा दौड़ता था। वो एक पंजाबी फिल्मी खानदान के तीसरी पीढ़ी के वारिस हैं।

उनके दादा राजेंद्र सिंह बेदी हिंदी सिनेमा और उर्दू साहित्य का वो सितारा थे जिनकी कलम से निकली कहानियां और डायलॉग्स आज भी लोगों के दिलों में बसे हैं। उन्होंने ऋषिकेश मुखर्जी की क्लासिक फिल्में जैसे अभिमान, अनुपमा और सत्य काम लिखी। रजत के पिता नरेंद्र बेदी एक सफल डायरेक्टर और प्रोड्यूसर थे। जिन्होंने 1970 के दशक में जवानी दीवानी, खोटे सिक्के, बंधन और बेनाम जैसी हिट फिल्में बनाई। हर किसी को लगता था कि इस 6 फीट 2 इंच के हैंडसम नौजवान के लिए स्टारडम का रास्ता फूलों से सजा होगा। लेकिन किस्मत ने उनके लिए ऐसी स्क्रिप्ट लिखी, जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। रजत का बचपन मुंबई की चकाचौंध भरी दुनिया में बीता।

लेकिन यह चमक लंबे समय तक नहीं टिकी। वे महज 9 साल के थे जब उनके पिता नरेंद्र बेदी का निधन हो गया। नरेंद्र बेदी तब सिर्फ 45 साल के थे। रजत ने एक इंटरव्यू में बताया कि पिता की निधन के बाद इंडस्ट्री ने उनके परिवार को बिल्कुल किनारा कर दिया। हम तीन भाई-बहनों को अकेली मां ने पाला। इंडस्ट्री के लोग घर आते थे जब पापा जिंदा थे, लेकिन मौत के बाद कोई नहीं दिखा। परिवार के इस झटके के बावजूद रजत ने हार नहीं मानी। उन्होंने अपने दम पर ग्लैमर की दुनिया में कदम रखा। 18 साल की उम्र में रजत ने डायरेक्टर रमेश सिप्पी के साथ असिस्टेंट डायरेक्टर के तौर पर काम शुरू किया।

शाहरुख खान की फिल्म जमाना दीवाना में उन्होंने 2 साल तक असिस्टेंट डायरेक्टर के तौर पर काम किया। रजत बेदी ने बताया कि फिल्म के सेट पर उनकी एनर्जी को देखकर शाहरुख खान ने उनका निकनेम टाइगर रख दिया था। 1994 में रजत ने फैशन मॉडलिंग में कदम रखा। वो ग्लैडर मैनहंट कॉन्टेस्ट के पहले विजेता बने। यह कोई छोटी-मोटी जीत नहीं थी। इसी मंच ने बाद में जॉन अब्राहम और डिनोरिया जैसे सितारों को लॉन्च किया।

इस जीत ने रजत को रातोंरात मॉडलिंग की दुनिया का चमकता सितारा बना दिया। फिल्मों में आने से पहले रजत ने दूरदर्शन के पॉपुलर शो हमराही में भी काम किया। फिर आया बड़ा पर्दा। 1998 में उनकी पहली फिल्म 2001 रिलीज़ हुई। जिसमें वो लीड हीरो थे। लेकिन यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह फ्लॉप हो गई। यह पहला संकेत था कि उनका सफर आसान नहीं होने वाला। पहली फिल्म के फ्लॉप होने के बाद रजत को छोटे-मोटे साइड रोल मिलने लगे।

उनकी दमदार फिजिक और इंटेंस लुक उनके लिए दो धारी तलवार साबित हुए। डायरेक्टर्स उन्हें हीरो के दोस्त या भाई के रोल में नहीं बल्कि विलेन के किरदार में देखने लगे। धीरे-धीरे वह नेगेटिव रोल में टाइप कास्ट होने लगे। 1999 में इंटरनेशनल खिलाड़ी में अमित का रोल, 2001 में इंडियन में संजय सिंहानिया, 2002 में यह दिल आशिकाना में विजय वर्मा जैसे रोल्स ने उन्हें नोटिस करवाया।

टाइप कास्टिंग के इस दौर में रजत को दो ऐसी फिल्में मिली जिन्होंने उन्हें पहचान तो दिलाई, लेकिन साथ ही ऐसे जख्म भी दिए जो शायद आज तक नहीं भरे। पहली फिल्म थी 2002 में आई जानी दुश्मन एक अनोखी कहानी। इस फिल्म में उनका एक डायलॉग अमर हो गया। सबकी इज्जत करेंगे तो लूटेंगे किसकी?

इस फिल्म ने रजत को वह पहचान दी जिसका वह इंतजार कर रहे थे। लेकिन असली और सबसे बड़ा ब्रेक मिला 2003 में राकेश रोशन की फिल्म कोई मिल गया से। रितिक रोशन उस वक्त अपने करियर के टॉप पर थे और रजत बेदी को रोल मिला था राज सक्सेना का। यह रोल छोटा नहीं था। फिल्म की कहानी में उनकी मौजूदगी काफी असरदार थी। वो स्कूल वाला टशनबाज लड़का जो हीरो को चिढ़ाता है, उसका मजाक उड़ाता है और दर्शक को गुस्सा भी दिलाता है। ऐसे किरदार कभी-कभी हीरो से ज्यादा याद रह जाते हैं और हुआ भी कुछ वैसा ही। जब फिल्म रिलीज हुई तो कई दर्शकों ने कहा कि रतिक के अलावा स्क्रीन पर जिसने ध्यान खींचा वो था रजत बेदी।

लेकिन यहीं से कहानी में वह मोड़ आया जिसने उनका करियर लगभग खत्म कर दिया। रजत ने खुद कई इंटरव्यूज में बताया कि उनके बहुत सारे सीन फिल्म से काट दिए गए थे। उन्होंने कहा कि उनके पास प्रीति जिंटा और रतिक के साथ लंबे-लंबे बातचीत वाले सीक्वेंस थे। कई शानदार पल थे, जो दर्शकों को नहीं दिखाए गए और इतना ही नहीं जब फिल्म का प्रमोशन और प्रीमियर हुआ, तो रजत को ऐसा महसूस कराया गया जैसे वह फिल्म का हिस्सा ही नहीं है। उन्हें प्रमोशनल एक्टिविटीज से बाहर रखा गया। पोस्टर्स, इंटरव्यूज, इवेंट्स कहीं भी रजत बेदी का जिक्र तक नहीं था। जिस फिल्म ने उन्हें घर-घर में फेमस किया, उसी फिल्म के मेकर्स ने उन्हें दूध में से मक्खी की तरह निकाल फेंका।

यह कोई इकलौती घटना नहीं थी। कुछ साल बाद 2006 में जायद खान की फिल्म रॉकी में भी उनके साथ यही हुआ। रजत फिल्म में विलेन थे और उनका रोल बहुत दमदार था। लेकिन फिल्म की एडिटिंग जायद के पिता संजय खान कर रहे थे। रजत ने कहा जब एक बाप अपने बेटे का करियर देख रहा हो तो जाहिर है कि वह विलेन का सीन काटेगा ही। बार-बार हो रहे इस भेदभाव और नेपोटिज्म ने रजत को अंदर से तोड़ दिया। रचनात्मक निराशा के साथ-साथ रजत को आर्थिक मुश्किलों का भी सामना करना पड़ा। उन्हें कई फिल्मों के लिए जो चेक मिले वह बाउंस हो गए। एक तरफ उनके रोल काटे जा रहे थे, और दूसरी तरफ उनकी मेहनत की कमाई भी डूब रही थी।

2007 में सलमान खान की फिल्म पार्टनर में एक छोटा सा रोल करने के बाद उन्होंने बॉलीवुड और भारत दोनों को छोड़ने का फैसला कर लिया। रजत अपने परिवार के साथ कनाडा के वैंकवर में शिफ्ट हो गए। उन्होंने एक्टिंग से दूरी बना ली और रियलस्टेट के बिजनेस में हाथ आजमाया। लेकिन किस्मत यहां भी उनके साथ नहीं थी। उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया कि उनके बिजनेस पार्टनर्स ने उन्हें धोखा दिया और उनका सारा पैसा डूब गया। वह कनाडा में भी एक बार फिर से जीरो पर आ गए थे। लेकिन रजत ने हार नहीं मानी।

बॉलीवुड से दूर रहकर भी वह कला से जुड़े रहे। उन्होंने पर्दे के पीछे काम करना शुरू कर दिया। उनकी बहन इला बेदी दत्ता जो खुद एक जानी मानी राइटर है। उस समय अग्निपथ और हिटलर दीदी जैसे बड़े प्रोजेक्ट लिख रही थी। रजत ने अपनी बहन के साथ मिलकर 2015 में लाजवंती नाम का एक टीवी शो प्रोड्यूस किया जो उनके दादा की एक किताब पर आधारित था। इसके बाद उन्होंने एक्टिंग में भी वापसी की लेकिन हिंदी सिनेमा में नहीं कन्नड़ फिल्म जग्गू दादा में विलेन का किरदार निभाया। वो कुछ पंजाबी फिल्मों में भी नजर आए। जिसमें गोलगप्पे नाम की एक फिल्म भी शामिल थी। वो काम कर रहे थे।

लेकिन बॉलीवुड की मेन स्ट्रीम दुनिया से वो अभी बहुत दूर थे। इसी बीच 2021 में उनकी जिंदगी में एक और दुखद घटना घटी। मुंबई में उनकी कार से एक एक्सीडेंट हो गया जिसमें एक व्यक्ति की दुखद मौत हो गई। यह एक मुश्किल दौर था। लेकिन इस घटना ने रजत के असली चरित्र को सामने लाया। उन्होंने भागने की बजाय खुद उस घायल व्यक्ति को अस्पताल पहुंचाया और बाद में उसके परिवार की हर संभव आर्थिक मदद की। पर्दे पर विलेन का किरदार निभाने वाले रजत ने असल जिंदगी में अपनी जिम्मेदारी से मुंह नहीं मोड़ा। जब रजत बेदी अपनी जिंदगी के मुश्किल दौर से गुजर रहे थे तब भारत में Instagram रील्स की क्रांति हो रही थी। अचानक से रजत बेदी के पुराने डायलॉग्स और सीन वायरल होने लगे। सबकी इज्जत करेंगे तो लूटेंगे किसकी? एक मीम बन चुका था। नई पीढ़ी जिसने शायद उनकी फिल्में थिएटर में नहीं देखी थी, वह भी उनके किरदारों को पहचान रही थी। और फिर एक दिन वो कॉल आया जिसने सब कुछ बदल दिया।

यह कॉल था शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान की तरफ से। साल 2022 में आर्यन खान अपनी पहली वेब सीरीज की तैयारी कर रहे थे और उनके दिमाग में एक किरदार था जराज सक्सेना। एक ऐसा एक्टर जो 15 सालों से इंडस्ट्री से बाहर है और वापसी के लिए संघर्ष कर रहा है। आर्यन ने बचपन में कोई मिल गया देखी थी और राज सक्सेना का किरदार उनके ज़हन में बस गया था। उन्हें यकीन था कि जरा सक्सेना का रोल रजत बेदी से बेहतर कोई नहीं कर सकता। आर्यन ने रजत तक यह पैगाम पहुंचाया कि अगर वह यह रोल नहीं करेंगे तो वह इस किरदार को अपनी सीरीज से हटा ही देंगे। यह रजत के लिए किसी सपने के सच होने जैसा था। जिस इंडस्ट्री ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखाया था, उसी इंडस्ट्री की नई पीढ़ी उन्हें वापस बुला रही थी। इस सीरीज में रजत का किरदार जराज सक्सेना असल में उनकी अपनी ही कहानी का आईना था।

एक भला हुआ एक्टर जिसे 15 साल तक काम नहीं मिला जो हर प्रोड्यूसर के दरवाजे पर दस्तक देता है और जिसे बार-बार बेइज्जत किया जाता है। इस कमबैक की सबसे खूबसूरत बात थी इसका फुल सर्कल मोमेंट। रजत बेदी ने अपना करियर शाहरुख खान की फिल्म में असिस्टेंट डायरेक्टर बनकर शुरू किया था। और आज उनकी वापसी शाहरुख के बेटे आर्यन खान के डायरेक्शन में हो रही थी। लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं हुई। रजत ने आर्यन के सामने यह रोल करने के लिए सिर्फ एक शर्त रखी। उन्होंने कहा, आर्यन मैं तुम्हारा शो तभी करूंगा जब तुम मेरे बेटे विवान को अपना असिस्टेंट डायरेक्टर बनने का मौका दोगे। मैंने अपना करियर तुम्हारे पिता के साथ शुरू किया था।

मेरा बेटा अपना करियर तुम्हारे साथ शुरू करेगा। आर्यन ने तुरंत यह शर्त मान ली। बैड्स ऑफ बॉलीवुड के रिलीज होते ही रजत बेदी एक बार फिर से छा गए। उनके काम की इतनी तारीफ हुई कि रातोंरात उनकी IMDb रैंकिंग 954 से उछल कर नौ पर आ गई। दर्शकों और क्रिटिक्स सब ने उनके कमबैक को शानदार और दमदार बताया। रजत ने खुद कहा कि उनका फोन बजना बंद नहीं हो रहा है और अब उनके पास ऑफर्स की बाढ़ आ गई है।

रजत बेदी की कहानी हमें सिखाती है कि टैलेंट के साथ-साथ किस्मत और सही मौके भी जरूरी हैं। बॉलीवुड में एक आउटसाइडर के लिए अपनी जगह बनाना आसान नहीं। लेकिन अगर आपके पास फैंस का प्यार है तो वह किसी भी स्टारडम से बड़ा होता है। रजत भले ही आज बड़े पर्दे पर ना हो लेकिन उनके फैंस उन्हें कभी नहीं भूलेंगे।

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