22 अप्रैल को पहलगांवह में जो हादसे हुआ था उसमें 26 लोगों ने अपनी जान गवा दी थी और करीब 17 लोग घायल हो गए थे लेकिन कुछ परिवार ऐसे भी हैं जो बाल-बाल हादसे से बच गए थे इनमें से एक परिवार उत्तराखंड के देहरादून का है उत्तराखंड के इंफॉर्मेशन डिपार्टमेंट के जॉइंट डायरेक्टर के एस चौहान ने सामने आकर पूरी कहानी बताई।
उन्होंने बताया कि बेटे की एक समझदारी की वजह से आज हम जिंदा है उन्होंने बातचीत की और 22 अप्रैल के मंजर की पूरी कहानी बयां की में अवकाश यात्रा सुविधा लेकर बच्चों के साथ 19 तारीख को हम दिल्ली से श्रीनगर के लिए निकल गए तो पहले प्लान हमारा सेट था कि कहां-कहां जाना है और 23 तारीख को हमको वापस लौटना था 19 को हम श्रीनगर पहुंचते हैं तो उस दिन क्योंकि बारिश थी कहीं घूम नहीं पाए तो होटल में रहना पड़ा और 20 तारीख को वहां से हम गुलम्ग गए तो गुलम्ग में दिन भर रहे और रात को वापस श्रीनगर आ गए और 21 को फिर श्रीनगर का जो लोकल व्यू थे लोकल सीन थे वहां पे उसको किया और 22 को हम लगभग 10:00 बजे श्रीनगर से पहलगाम के लिए निकल गए पहलगांम श्रीनगर से लगभग 100 कि.मी की दूरी पर और 2ाई से 3 घंटा वहां टाइम लगता है 10:00 बजे हम वहां से निकले और लगभग 1:00 बजे हम ठीक पहलगाम मेन मार्केट में पहुंच गए थे तो पहलगांव का जो मेन मार्केट तो जैसे ही जो टैक्सी वाला था हमारा वो श्रीनगर का ही था।
हम वहां एक घोड़ा ईस्ट स्टैंड था जहां से घोड़े से वेसरन वैली के लिए जाते हैं वेसरन वैली वहां से लगभग 4 कि.मी दूर है उन्होंने टैक्सी रोकी तो उन्होंने कहा कि सर आप ऐसा कर लीजिए पहले वेसरन वैली कर लीजिएगा उसके बाद फिर आप दो अन्य स्थान वहां थे एक बेताल वैली और एक जगह कोई और थी तो मैंने कहा कि ठीक है पहले इसको कर लेते हैं तो टैक्सी तुम आप साइड में कर लो सामान इसी में रहेगा हम घूम के आते हैं बट मेरे पुत्र ने बोला कि पापा ऐसा करते हैं पहले होटल चलते हैं होटल लगभग वहां से 1 1/2 कि.मी दूरी पे था 1 कि.मी होगा शायद कि पहले होटल में चेक इन करते हैं चेक इन करने के बाद फिर तब आते हैं वापस मैंने बोला यार टाइम वेस्ट हो जाएगा मत जाओ होटल नहीं जाते हैं वो जिद करने लग गया कि नहीं होटल चलते हैं पहले हम होटल चले।
हां भाग्यशाली हम यह रहे कि आप यदि हम 1:00 जैसे पहुंच गए थे जब तक हम घोड़े पे वहां पे घोड़ा लेते घोड़े पर बैठते तो शायद 1:30 बज जाता और 1:30 बजने के बाद लगभग आधा घंटा वहां से वो घोड़े पे हमको लगता बेसरन वैली जाने तक यानी 2:00 बजे हम बेसरन वैली पहुंचते और 1 घंटे का फिर हमारा वहां तक एक घंटे हम वहां रहेंगे 2:30 बजे हादसा हुआ करीब यस 2:30 से 3 के बीच में हादसा हुआ और ठीक 2:00 बजे हम बेसरन वैली पहुंच रहे थे और बेसरन वैली में हम वापसी का हमारा ये था कि 3:30 बजे ड्राइवर ने बोला था वापस आना है आपको तो शायद हम खुशकिस्मत रहे कि हमने रास्ता वहां से चेंज कर दिया अब वो चेंज कैसे हुआ ऐसे लगता है कि जैसे एक क्योंकि भगवान का आशीर्वाद था या किस्मत अच्छी थी जो मैंने बेटे की बात मान ली और हम वहां से होटल चले गए।
इसलिए शायद हम बच गए तो बेसरन वैली ना जाने के बजाय आप चेक इन में करने के बाद आप बेताब वैली चले गए हां दूसरी बात देखिए जब हम होटल गए तो होटल हम सवा5 बजे के आसपास होटल पहुंचे और होटल में चेक इन करने के बाद फिर हुआ कि लंच यहीं कर लेते हैं और लंच वगैरह करने के बाद फिर वहां से जो लोकल टैक्सी लेनी पड़ती है वहां पे लोकल टैक्सी वाले को होटल वाले ने बुलाया तब भी 2:30 बज गए थे लगभग 2:30 बज गए थे तो हमने टैक्सी वाले को बोला कि हमको ये तीन जगह जाना है तो पहले कहां चला जाए बेसरन वैली चला जाए क्या पहले तो होटल उसने सॉरी टैक्सी वाले ने बोला कि सर ऐसा करो पहले आप बेताल वैली घूम लो बेताल वैली यहां से 5 कि.मी है और 5 कि.मी जाने में 10-15 मिनट लगेंगे और 1 घंटा आप अंदर घूम लेना और वापस फिर हम 4:00 बजे तक हम वहां बेसरन वैली पहुंच जाएंगे फिर 1 घंटा आप वहां घूम लेना।
बेसरन वैली हम तो खुशकिस्मती समझ लीजिए कि होटल से फिर क्योंकि हमारा पहले बेसरन वैली जाने का ही था कार्यक्रम हम वो ड्राइवर के कहने फिर हमने वहां से होटल से वो रास्ता वहां से भी फिर बेसरन वैली ना जाके हम पहले बेताल वैली चले गए तो जब बेताल वैली जा रहे थे तो जैसे ही हम वहां पहुंचे तो वहां वहां थोड़ी अफरातफरी जैसा माहौल देखा बट ज्यादा पता नहीं था क्या हो रहा है लेकिन फिर एक देहरादून सिख का फोन आया कि वहां हादसा हो गया है कहीं पे बेसरन वैली के आसपास तो ड्राइवर से मैंने पूछा उसने बोला नहीं सर वह बेसरन वैली दूसरे साइड में जहां पहले कह रहे थे ऐसा कुछ ऐसा नहीं शायद एक दो लोग घायल हुए कुछ ऐसा है तो उस समय तक भी कुछ ज्यादा डर नहीं था बट बेसरन वैली जब हम आधा घंटा अंदर घूमे वैली में तो उस समय दो ढाई बेताब वैली में हां बेताब वैली में सॉरी बेताब वैली में लगभग 2ाई हजार के आसपास उस समय टूरिस्ट थे घूम रहे थे आधा घंटा हम घूमने के बाद जैसे हम वापस आ रहे थे वहां तो देखा पूरा सन्नाटा वहां अभी खाली होने लगे लोगों को शायद पता लगे क्योंकि हमारा मोबाइल वहां पे चल नहीं रहा था नेटवर्क चल नहीं रहा था तो हम अपने घूमने में व्यस्त थे जब हम टैक्सी स्टैंड पे आए तो तब तक देखा लगभग वहां खाली पूरा हमारा ड्राइवर वहीं था टैक्सी दो चार टैक्सियां और थी वहां पे तो तब तक कुछ लगा कुछ बड़ा बड़ी बड़ा बड़ा कुछ हुआ है तो जब हम वहां से वापस लौटे 5 कि.मी दूरी पे था वो बेताल वैली जैसे ही पहलगांव सिटी में हम पहुंचे तो देखा वहां तो पूरा लगभग 2 3 4 कि.मी का जाम लगा हुआ गाड़ियां जैसी थी वैसी रोक दी गई सारी दुकानें जितनी थी सारी वो शटर बंद करके सब घर के अंदर चले गए सारे जब यह सीन हमारे आंखों के सामने था तो बहुत डर सा महसूस हुआ तो जिस टैक्सी में हम बैठे थे उस टैक्सी वाले ने क्योंकि लोकल था उसने तुरंत टैक्सी को वहां से बैक कर लिया तो बैक जैसे टैक्सी करा तो मैंने उसको बोला बैक आप टैक्सी को बैक क्यों कर रहे हो हम तो उसने बोला सर आप इसमें फंस जाओगे जाम में दो-ती घंटे और मैं कोई दूसरा शॉर्ट रास्ता है मेरे पास मैं जानता हूं उस रास्ते से होटल पहुंचाता हूं आपको फिर उसने दूसरे रास्ते से गली सी थी उस रास्ते से ले गया तो एक बार हमको डर भी लगा कि ले जा क्यों रहा है गलियों में।
लेकिन वो बेचारा बहुत अच्छा था वो जो ड्राइवर वहां का लोकल का था हम उसने किसी तरह वो 10-15 मिनट में होटल पहुंचाया होटल पे जैसे ही टैक्सी से नीचे उतरे तो चकि हमारे होटल से सामने दिखता था बिल्कुल जहां वो हादसा हुआ थी तो ऊपर से हां फिर सेना के हेलीकॉप्टर वहां मंडरा रहे थे दो-द ये समय किस रहा होगा 4 के आसपास ये लगभग 4 से 4:30 के बीच में जब सेना के जब हम होटल पहुंचे और वहां पे जो सेना के हेलीकॉप्टर वो मंडरा रहे थे तो उसके बाद फिर हम होटल के बाहर से मैं बल्कि कुछ वीडियोस भी बनाए फिर वहां से तो देखा कि नीचे पूरी गाड़ियों की लाइनें लगी हुई और सेना के गाड़ियां आ रही है और सायरन बज रहे हैं तो स्थिति बहुत ही विचलित करने वाली थी यदि आप उसी समय वहां से निकल गए या आप होटल में रुके के फिर होटल में किस तरह का क्योंकि बताया जा रहा था कि लोग काफी तादाद में हैं और जैसा कि आपने जिक्र भी किया कि जाम लगा हुआ था तो जाहिर सी बात है लोग ज्यादा से ज्यादा निकल रहे थे शहर को छोड़ रहे थे तो क्या स्थिति हो गई थी मुझे लगता है अनुमानित उस समय जो मैंने वहां टैक्सी वाले से बोला था वो कह रहा था कि यहां लगभग 3 से 4000 टैक्सियां चलती है लोकल में और जहां वो घोड़ा पड़ा होता है जहां से घोड़े पे जाते हैं वहां घोड़े लगभग मुझे लगता है 1000 से कम घोड़े तो नहीं थे वहां भी इतने सारे घोड़े थे वहां पे और टूरिस्ट जो पूरे पहलगांव वैली में उस समय में होंगे वो 5 7000 तो होंगे जो मुझे लगता है अब वो 5 7000 फिर वो टैक्सियां फिर पूरा एक सन्नाटा और फिर डर तो लगने लग गया तो मैंने भी सोचा कि होटल को छोड़ दिया जाए लेकिन ये हुआ कि होटल छोड़ते हैं तो नीचे पूरा जाम है क्योंकि चेकिंग साइज चल रही है।
थी वहां पे और जगह-जगह फिर प्रॉब्लम ना हो जाए तो एक बार तो ये निर्णय ले लिया था कि होटल छोड़ के निकल लेते हैं श्रीनगर लेकिन फिर श्रीनगर किसी परिचित को मैंने फोन किया उन्होंने बोला कि आप होटल मत छोड़ना होटल में रहिए जिस होटल में हम रुके थे वहां लगभग डेढ़ 200 लोग थे वहां पे भी रुके हुए उसमें से कुछ लोग जाने शुरू हो गए थे भागना शुरू हो गया था उन लोगों के टैक्सियों में जो उनकी टैक्स श्रीनगर से ला रखी थी लेकिन हम होटल में रुक गए और होटल में रुके तोकि 6 7:00 बजे तक भी ज्यादा कुछ डर जैसा नहीं लग रहा था हम कि क्या लेकिन जो उसके बाद का परिदृश्य था रात को वो बयां करने वाला नहीं है सच में वो स्थिति ऐसी थी कि जब हम होटल क्योंकि पूरे देवदार के जंगलों के बीच में था ।
हम और क्योंकि रूम वहां काफी 200 मीटर 300 मीटर की दूरी पर थे और जो डाइनिंग हॉल था ज्यादातर लोग वहां पे डाइनिंग हॉल में ही खाना खाने आते थे तो जैसे हम डाइनिंग हॉल में लगभग 9:30 बजे गए तो 9:30 बजे देखा वहां कोई हम मेरी एक फैमिली हम चार लोग और एक फैमिली और थी दो लोगों की कपल्स थे छह लोगों के अलावा कोई नहीं तो मैंने वेटरर्स से पूछा बाकी लोग कहां गए होटल में जो टूरिस्ट है वो कह रहे सर डर के मारे कोई बाहर ही नहीं आ रहा है वो घर के अंदर ही है और रूम के अंदर है और डर के मारे कोई बाहर नहीं आ रहा है तो जब यह सुमना तो हमको भी डर लगा कि हम अब यहां से डाइनिंग हॉल से उस रूम की दूरी हमारी 200 मीटर थी कि अब जाएं कैसे वहां तक क्योंकि पूरे देवदार के जंगल के अंदर था हम लेकिन फिर डरते डरते हम वहां रूम तक गए अब रूम में जाने के बाद फिर एक वेटर साथ में आया वहां पे और वेटर ने बोला सर रात को कोई वेल बजाएगा या दरवाजा खटखटाएगा तो दरवाजा मत खोलना हम ये बोलने से फिर हमको और डर हुआ हालांकि फर्सेस नहीं आई थी तब तब फर्सेज वहां पे नहीं थी होटल में फर्सेस नहीं थी देखी नहीं थी हमने वहां होटल में नहीं थी उस समय फर्सेज और पौ:45 बजे जब हम डाइनिंग हॉल में ही थे तो सीएम सर ने भी फोन किया था।
मुझे बाकायदा उन्होंने बोला कि चौहान जी ऐसा कुछ नहीं है यदि कोई दिक्कत होगी तो मेरे को बताना सुबह हम लोगों को कॉल करना आप सुरक्षित रहिए वहां पे और किसी भी प्रकार की कोई भी प्रॉब्लम्स होगी तो आप शेयर करना और बताना मैंने कहा सर हम अभी तो ठीक हैं और सुबह जो भी स्थिति होगी मैं आपको क्या और कोई मतलब उत्तराखंड के आपके परिचय में और लोग भी थे वहां पर नहीं उस वैली में परिचय में उत्तराखंड का मुझे कोई दिखा नहीं ना कोई मतलब संपर्क में या ना कहीं वहां किसी को ऐसा कुछ पता चला कि कोई उत्तराखंड का और भी है वहां पे रहे रहने वाला या उस वैली में है कोई ऐसा ना किसी उस होटल में भी कोई उत्तराखंड का रहने वाला था नहीं हम सुबह क्या मंजर था जैसे कि सुबह हुई तो फोर्सेस आई चेकिंग चल रही थी।
हां सुबह क्या जैसे जैसे मैंने कहा कि रात को 10 10:30 बजे जब हम रूम में गए तो रूम में क्योंकि मैंने जैसे कहा कि वो जंगल के बीच में होटल था और पूरी रात हम सोए नहीं बच्चों का कमरा अलग था हमारा रूम अलग था मेरे और मेरी पत्नी का तो मिसेज ने बोला कि ऐसा करो बच्चों को भी अपने रूम में ही बुला लो तो रात को फिर हमने बच्चों को बोला कि इधर ही आ जाओ एक रूम में ही रहते हैं बच्चे रूम में आए फिर मैंने बोला यार एक रूम में रहना ठीक नहीं है बच्चों को दूसरे रूम में भेज देते हैं मतलब अपने मन में एक अजीब से ख्याल आ रहा था थे कि ये अलग रहेंगे तो पता नहीं कुछ ऐसा हादसा हो जाएगा तो कहीं कुछ ना कुछ तो बचेंगे मतलब मन में ये आ रहा था कि यदि एक ही रूम में होंगे तो ऐसा ना हो कि सब लोगों को मार दें तो अलग-अलग रूम में रहेंगे तो कम से कम रात को 2:00 बजे मेरे एक ख्याल ये भी आया कि दो रूम और ले लेते हैं और अलग-अलग एक-एक रूम में रहते हैं सब लोग मतलब इतनी हिम्मत भी नहीं थी कि रूम से बाहर निकल यस मतलब बाहर रूम निकलने का तो और मोबाइल चला रहा था मैं वहां पे तो मिसेज ने बोला कि मोबाइल मत चलाओ वो लाइट बाहर दिखेगी क्योंकि जंगल था बाहर कि बाहर लाइट दिखेगी तो कहीं आतंकवादी आ गए तो वो लाइट देख लेंगे सोचेंगे कि इस रूम में कोई है वो अटैक कर देंगे मतलब इतना जिसको खौफ आप कह सकते हैं ये था किसी तरह रात को सोने का तो कोई मतलब था ही नहीं कभी सोचा नहीं होगा कि जो इतनी सुंदर एक घाटी है जहां पर हजारों की तादाद में लोग आते हैं और इतना सुंदर वहां का दृश्य होता है।
एक ही पूरे दृश्य में बदल जाएगा ये तो शायद हम पिछले में एकद साल से प्लान कर रहा था कि एलटीसी में कहीं घूमने बच्चों के साथ टाइम मिलता नहीं सरकारी जॉब में तो इस बार बड़े मुश्किल से टाइम निकाला अप्रैल में थोड़ा काम कम होता है और कश्मीर के बारे में सुना ही था जन्नत है वहां लोग बताते हैं सचमुच में जब हम वहां गए तो मैं क्योंकि पहाड़ का ही रहने वाला हूं कितनी खूबसूरती कितने अच्छे पहाड़ कितने बुग्याल कितनी वहां सुंदर सी नदियां लेकिन जब वो आतंकवादी घटना हो गई सुबह जब नींद नींद तो नहीं आई जब सुबह हम बाहर आए रूम से लगभग लगभग पौ:45 बजे होटल परिसर में वहां भी इतनी खूबसूरती होटल परिसर में बाहर देवदार के जंगल है तो नीचे तब तक सिक्योरिटी वगैरह वाले भी शायद रात को आ गए थे होटल में कमांडो वगैरह मैंने नीचे देखे उनसे भी बातचीत करी उनका कहा कोई दिक्कत है नहीं अभी और इतना खूबसूरत नजारा मैंने देखा है जम्मू कश्मीर में वही पहलगाम बेल इतनी खूबसूरत वही जो वहां के और डेस्टिनेशन बहुत खूबसूरत लेकिन जब लोकल से बात करी वो लोग रो रहे थे उस दिन वहां यह रो इसलिए रहे थे कि सर हमारा पूरा के पूरा जो टूरिज्म का व्यवसा है उससे हमारी रोजीरोटी चलती है वो अब खत्म हो गई और खत्म कोई एकद दिन के लिए नहीं हुई सालों सालों तक के लिए खत्म हो गई टैक्सी वाला हमसे पैसे नहीं ले रहा था टैक्सी वाले ने कहा सर नहीं मैं पैसे नहीं लूंगा क्योंकि आप घूमने आए थे और ऐसी घटना घट गई और आप बहुत विचलित है और आप पूरा घूम भी नहीं पाए तो मेरे को पैसे नहीं चाहिए जबरदस्ती बल्कि मैंने उसकी जेब में पैसे डाले कि ऐसा नहीं आपकी कोई इसमें गलती नहीं है तो लोकल बहुत विचलित था।
लोकल से बात करने में आपको कैसा लग रहा था कि कभी मतलब उम्मीद भी नहीं की होगी कि आतंकवादी हमला इस क्षेत्र में हो सकता है वो लोकल्स जो वहां के पहलगांव वैली के तो उनका कहना यह था कि यहां आज तक इतिहास में वो यही बोल रहे थे कि आज तक कभी आतंकवादी घटना यहां हुई नहीं क्योंकि वो पूरी की पूरी वैली टूरिस्ट आते हैं उस वैली में घूमने के लिए और व्यवसाय वहां कुछ है नहीं टूरिस्ट टूरिज्म के अलावा तो उनका कहना ये था कि टूरिज्म के अलावा यहां कोई और व्यवसाय नहीं है घोड़ा खच्चर टैक्सी होटल्स और अन्य गतिविधियां एडवेंचर टूरिज्म के और संसाधन वहां पे दुनिया भर के हैं तो उसी से उनकी रोजीरोटी चलती थी और रोजी-रोटी उनका कहना था कि 2 साल से इतना अच्छा चल रहा है टूरिस्ट इतने आ रहे हैं कि पूरा जो सीजन है भरे रहते हैं जैसे हमारी चारधाम यात्रा में लोग भीड़ रहती है उस तरह की भीड़ मैंने वहां पे देखी टूरिस्ट डेस्टिनेशन में तो इस घटना के बाद वो बहुत रो रहे थे जो वहां स्थानीय लोग थे वो यह कह रहे थे कि हमारा रोजगार छीन गया है और दूसरा उनको यह तकलीफ भी थी कि टूरिस्ट के साथ उन लोगों ने ऐसा किया है क्योंकि टूरिस्ट हमारे लिए भगवान ये भी बोलते थे कि टूरिस्ट हमारे लिए भगवान इसलिए कि उससे हमारी रोजीरोटी चलती है यहां पे और इस घटना के बाद वो बहुत परेशान थे।
वो सचमुच में वो मंजर जब हम सुबह 8:00 बजे होटल से बाहर भी निकले और टैक्सी में बैठे तो वहां से श्रीनगर की दूरी 100 कि.मी है तो जगह-जगह फोर्स लगी हुई थी लेकिन उसके बावजूद डर इतना पैदा हो गया था मतलब दिल में इतना डर था कि पहलगाम सिटी जब हम क्रॉस कर रहे थे और जब अनंतनाग पहुंच रहे थे तो जगह-जगह क्योंकि फौज की चेकिंग भी चल रही थी तो डर लग रहा था तो जब श्रीनगर एयरपोर्ट पे हम आ गए तो सबसे ज्यादा पत्नी विचलित हो रखी थी सबसे ज्यादा मन में ये ख्याल आ रहा होगा कि बदमाश कहां छुपे होंगे कहीं आपके सामने ना आ जाए निश्चित यही मतलब ख्याल यही आ रहा था कि हो सकता है जैसे हादसा उन्होंने कल वहां किया हो और आज यहां ना कर दे जगह-जगह हादसा ना कर दे तो वो डर मन में था लेकिन जब श्रीनगर एयरपोर्ट पे आ गए तो थोड़ा सा शांति जैसी मिली लेकिन तब जब तक दिल्ली नहीं पहुंचे तब तक भी डर ही था तो फिर ये हुआ कि यार बड़े मुश्किल से यहां का प्लान किया था और उसमें भी ऐसा हादसा हो गया तो फिलहाल तो लगता नहीं कोई अब अभी तो कोई मुझे लगता नहीं कोई टूरिस्ट जम्मू कश्मीर जाने वाला है ऐसी घटना के इसके साथ आप अनंततनाग भी गए और गुलम्ग भी गए तो वहां पर भी इसका प्रभाव पड़ा होगा निश्चित रूप में जब गुलम्ग जिस दिन हम गए तो गुलम्ग में लोग बता रहे थे कि यहां 3000 लोग टूरिस्ट पर डे आते हैं हम और प्रत्येक टूरिस्ट 4 से ₹000 खर्च करके जाता है एक डेस्टिनेशन पे गुलम्ग की बात कर रहा हूं मैं अब आप लगा लीजिए करोड़ों का बिजनेस पर डे का है वहां पे तो इसका इफेक्ट तो पूरे जम्मू कश्मीर पड़ने वाला शायद पड़ गया है क्योंकि जब हम एयरपोर्ट पे वापस आए तो कुछ लोग ऐसे थे फ्लाइट से उतर रहे थे और वापस दोबारा फ्लाइट का टिकट वापस के करा रहे थे और उस दिन तो पूरी वैली ही खाली हो गई थी।
8:00 बजे जब हम निकले वहां से तो पूरी एक वैली खाली थी कोई दिख नहीं रहा था टूरिस्ट वहां पे केवल फौज दिख रही थी या फिर वहां के एक वो सन्नाटा दिख रहा था रोड में।