भारत सरकार की एक संस्था है। पूरा नाम फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया। इसका काम है आपकी हमारे खानेपीने की चीजों की जांच करना। साथ ही यह पक्का करना कि जो खाना हम तक पहुंच रहा है वो सुरक्षित और शुद्ध है या नहीं। यानी सेफ एंड प्योर। इसी एफएसएसआई ने अब उन सभी खानेपीने वाले सामान से ओआरएस यानी ओरल रिहाइड्रेशन साल्ट्स टैग हटाने का आदेश दिया था जो WHO वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन की ओर से तय स्टैंडर्ड पर खरे नहीं उतरते। बाजार में कई ऐसे ड्रिंक्स मौजूद हैं जिन्हें अक्सर लोग कमजोरी या डिहाइड्रेशन होने पर ओआरएस समझकर खरीदते हैं।
वो मानते हैं कि यह प्रोडक्ट उन्हें मेडिकलली हाइड्रेट करने में मदद करेगा। पानी की मात्रा संतुलित कर देगा। हालांकि ओआरएस का एक स्पेशल मेडिकल साइंटिफिक फार्मूला होता है जिसे WHO ने डिफाइन किया है। अब एफएसएससीआई के नए आदेश के मुताबिक केवल वही प्रोडक्ट ही खुद को ओआरएस कह सकते हैं जो WHO के इन स्टैंडर्ड को फॉलो करते हैं। ये सुनने में आम सी बात लग रही होगी। लेकिन इस एक फैसले के लिए लड़ाई बहुत लंबी लड़ी गई। लड़ाई लड़ी हैदराबाद की एक पीडिएटिशियन यानी बच्चों की डॉक्टर शिवर रंजनी संतोष ने। के अक्टूबर वाले आदेश के बाद उन्होंने 16 अक्टूबर को अपने सोशल मीडिया हैंडल से एक वीडियो शेयर किया। इस वीडियो में वो खुशी से रोती हुई नजर आती हैं। कहती हैं यह एक लड़ाई थी। 8 साल की लड़ाई, 3 साल तक कोर्ट में केस और चारप साल तक लोगों की बेरुखी से लड़ाई।
यह जीत किसी एक की नहीं बल्कि लोगों की ताकत की है। उन डॉक्टरों, वकीलों, मांओं और लोगों की जिन्होंने मेरा साथ दिया। मैं डटी रही और हम जीत गए। करीब 10 साल पहले डॉ. शिव रंजनी ने ऐसे ड्रिंक्स पर सवाल उठाए जो खुद को ओआरएस बताकर बेचे जाते थे। 2022 में उन्होंने तेलंगाना हाईकोर्ट में केस किया क्योंकि ये ड्रिंक्स डब्ल्यूho के बताए मानकों पर पूरे नहीं उतरते थे। खरे नहीं उतरते थे। तेलंगाना हाईकोर्ट ने अप्रैल 2022 में ही को इस मामले में दखल देने को कह दिया। ने कुछ वक्त के लिए ऐसे ड्रिंक्स पर एक टेंपरेरी बैन यानी अस्थाई रोक तो लगा दी लेकिन उसके बाद शुरू हुआ उन कंपनीज के पिटीशन फाइल करने का दौर जिनके प्रोडक्ट्स बैन हो रहे थे।
उनका कहना था कि उनके प्रोडक्ट्स में कुछ गड़बड़ी नहीं है। वो हानिकारक भी नहीं है। तो बने बनाए प्रोडक्ट्स को ऐसे बैन करना उनके लाइवलीहुड यानी रोजीरोटी उनके रोजगार पर प्रहार है। तब जाकर एफएसएसआई ने टेंपरेरी बैन को हटा दिया। संस्था ने 14 जुलाई 2022 को एक ऑर्डर निकाला जिसमें कहा कि वह सारे प्रोडक्ट्स बेचे जा सकते हैं जिनमें ओआर एस का टैग और ट्रेडमार्क इस्तेमाल हो रहा है। लेकिन एक शर्त के साथ जहां ओआरएस लिखा होगा वहीं एक वार्निंग भी मौजूद होगी। वार्निंग ये ओआर एस डब्ल्यूho के ओआर एस वाले पैमाने पर खरा नहीं उतरता। बस इस वार्निंग टैग के साथ दोबारा ये प्रोडक्ट्स बेचे जाने लगे। अक्टूबर 2025 को ने एक नया ऑर्डर निकाला जिसमें साफ अक्षरों में लिखा कि वो अपने ओआरएस के दिए सारे ऑर्डर्स को अब रद्द कर रहा है। WHO के हिसाब से सिर्फ वही सॉल्यूशन ओआरएस कहला सकता है जिसमें 2.6 ग्राम सोडियम क्लोराइड, 1.5 ग्राम पोटेशियम क्लोराइड और 2.9 ग्राम सोडियम साइट्रेट और 13.5 ग्राम ग्लूकोस 1 लीटर पानी में मिला हो।
इसके अलावा कोई भी और सॉल्यूशन को ओआरएस नहीं कहेंगे। डॉक्टर शिवरंजनी संतोष का कहना है कि सालों से बहुत ज्यादा मीठे और सिंथेटिक फ्रूट जूस को ओआरएस बोलकर बेचा गया है और लोग इसका सेवन भी करते आए हैं। लेकिन ऐसा करने से डिहाइड्रेशन कम होने की जगह बढ़ सकता है। डायरिया हो सकता है। ब्लड शुगर लेवल बढ़ सकता है। और तो और शरीर को जरूरी जैसे सोडियम पोटेशियम भी नहीं मिलेंगे। हमने जब डॉक्टर शिवरंजनी से बात की तो उन्होंने हमें बताया कि अभी हाल में जब देश के अलग-अलग जगहों से कफ सिरप की वजह से बच्चों की मौत होने लगी तब उन्होंने सोशल मीडिया पर एक वीडियो बनाया जिसमें उन्होंने ओआरएस के मुद्दे को उठाते हुए पूछा कि और कितने बच्चों की जान जाएगी तब जाकर हमें समझ आएगा कि यह तथाकथित दवाइयां हमारे बच्चों को कितना नुकसान पहुंचा रही हैं। इसी वीडियो को लोग शेयर करने लगे जिसके बाद अक्टूबर को एफएसएसआई ने अपना नया ऑर्डर निकाला।
अब आप खुद समझिए कि यह लड़ाई अपने आप में कितनी जरूरी लड़ाई है। हमने इस पूरे मुद्दे की बारीकियों को बेहतर ढंग से समझने के लिए बात की खुद डॉ. शिव रंजनी संतोष से। हमने उनसे पूछा कि सबसे पहले उन्हें इस लड़ाई की जरूरत कब पड़ी और केस लड़ने में किन तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ा? यह बताइए। हमने यह ऑब्जर्व किए थे कि ओआरएस देने के बाद हम बच्चों का डायरिया और बढ़ते जा रहे थे तो ये क्या हो रहा है? ओआरएस देने के बाद डिहाइड्रेशन करेक्ट होना है ना वर्स नहीं होना है ना तो हमने पेरेंट्स से पूछ लिया क्या ओआरएस कौन सा ओआरएस दे रहे हैं तो वो ला के डब्बा दिखाया मुझे तो मैंने तब लेबल पढ़ लिए थे इसमें 100 मिली में 12 ग्राम शुगर है एक्चुअल रिकमेंडेड फार्मूला ओ आर एस में 100 मिली पानी 100 मिली पानी में 1.35 ग्राम शुगर होना है। सो 10 गुना ज्यादा शुगर तो ज्यादा शुगर क्या करती है? डायरिया को और बढ़ाती है।
बच्चा और डिहाइड्रेट हो जाता है। और हमारे देश में 5 साल के अंदर बच्चों में 100 बच्चे मर रहे हैं तो 13 बच्चा डायरिया की वजह से मर रहे हैं। तो लेबल पे आप ओआरएस कैसे रख सकते हैं? फार्मेसी में, हॉस्पिटल्स में, स्कूल्स में, सुपर मार्केट्स में जब भी आप जाके शायद आपने भी खरीद लिया होगा कभी। हम हॉस्पिटल आईसीयूस में भी दे रहे हैं। हम ऐसे कैसे कर सकते हैं? हम दवा क्यों लेते हैं? तबीयत ठीक होने के लिए। ओआरएस एक दवा है। 20th सेंचुरी वंडर ड्रग है वह। हम क्यों लेते हैं? तबीयत ठीक करने के लिए ना। और यह हाई शुगर ड्रिंक्स आपका तयत को और खराब कर रहे हैं। तो सितंबर में 2022 में मैंने पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन डाल दिया तेलंगाना हाई कोर्ट में और रेस्पोंडेंट्स गवर्नमेंट भी और ये कंपनीज कोर्ट केस तो बहुत स्लोली धीरे से चल रही थी। तो मई एंड मे या जून में मैं फिर हेल्थ मिनिस्ट्री को जेपी नड्डा सर को लेटर लिख लिया और मोदी सर को वो कॉपी भेज दिया। इसमें प्रूफ्स अटैच किया जो पेरेंट्स मुझे लिखे थे ना वो प्रूफ्स और हॉस्पिटल रिपोर्ट्स ऑफ चिल्ड्रन जिनका तबीयत और खराब हो गया वो रिपोर्ट्स वेट कर रहे थे रिप्लाई के लिए रिप्लाई तो नहीं आया अभी तक लेकिन क्या हुआ ये कॉफ सिरप की कंट्रोवर्सी जब आया मैंने एक वीडियो बनाया उसमें पूछ लिया अथॉरिटीज से कितने बच्चे बच्चे मरना चाहिए फॉर यू टू टेक एक्शन।
उसके बाद अक्टूबर 15th को आर्डर आ गया। सो वो जुलाई वाला आर्डर फरवरी वाला आर्डर सब कैंसिल। 8th अप्रैल 2022 वाला आर्डर वो अभी एक्टिव है। तो ये बात थी डॉ. शिव रंजनी की।