इस पत्थर के टुकड़े में ऐसा क्या है जो 45 करोड़ में बिका?

क्या होगा अगर मैं कहूं कि किसी ने हाल ही में मंगल ग्रह का एक टुकड़ा खरीदा है। जी हां, आपने सही सुना। मार्स का एक असली पत्थर और कीमत 44 करोड़। और रुकिए।

कहानी में असली ट्विस्ट तो अभी बाकी है। इसी नीलामी में एक और चीज बिकी जिसकी कीमत सुनकर आपके होश उड़ जाएंगे। ₹50 करोड़ क्या चीज थी वो? और मंगल ग्रह का यह टुकड़ा धरती पर आया कैसे?

हाल ही में न्यूयॉर्क शहर में एक बहुत ही खास नीलामी हुई। यह कोई आर्ट या ज्वेलरी की नीलामी नहीं थी बल्कि यहां बिक रही थी धरती और अंतरिक्ष के इतिहास की सबसे दुर्लभ चीजें। इस नीलामी के दो सबसे बड़े सितारे थे। एक मंगल ग्रह से आया पत्थर और दूसरा एक करोड़ों साल पुराना डायनासोर का । सबसे पहले बात करते हैं मंगल ग्रह के उस टुकड़े की। स्क्रीन पर आप यह जो लाल, भूरे और ग्रे रंग का पत्थर देख रहे हैं, यह कोई मामूली पत्थर नहीं है।

इसका नाम है 1678 और यह सीधे मंगल ग्रह से हमारी धरती पर आया है। यह अब तक धरती पर मिला मंगल ग्रह का सबसे बड़ा टुकड़ा है। इसका वजन करीब 24.5 किलो है। अंदाजा लगाइए कि यह कितना बड़ा है? तो सवाल उठता है कि यह धरती पर आया कैसे?

वैज्ञानिकों के मुताबिक करोड़ों साल पहले मंगल ग्रह पर एक बहुत बड़े एस्टेरॉइड की टक्कर हुई। यह टक्कर इतनी जबरदस्त थी कि मंगल की सतह से कई पत्थर टूट कर अंतरिक्ष में बिखर गए। उन्हीं में से एक यह पत्थर भी था जो करीब 14 करोड़ मील का लंबा सफर तय करके पिछले साल नवंबर 2023 में अफ्रीका के सहारा रेगिस्तान में गिरा।

वहां इसे एक शिकारी यानी मिटियोराइट हंटर ने खोज निकाला। अब सवाल यह कि हमें कैसे पता चला कि यह मार्स से ही आया है? देखिए, यह बहुत ही साइंटिफिक प्रोसेस है। वैज्ञानिकों ने इस पत्थर का एक छोटा सा सैंपल लिया और उसकी लैब में जांच की। उन्होंने इसके केमिकल कंपोजशन की तुलना 1976 में मंगल पर उतरे नासा के वाइकिंग स्पेस प्रोब से मिले डाटा से की और नतीजा एकदम परफेक्ट मैच। यह पत्थर एक खास तरह का है जिसे शेरगोट टाइट कहते हैं जो मंगल ग्रह के के के धीरे-धीरे ठंडा होने से बना है।

इसकी बाहरी सतह पर एक कांच जैसी परत भी है जो तब बनी जब यह तेज रफ्तार से धरती के वायुमंडल में दाखिल हुआ और जलने लगा। इस नीलामी में इसकी कीमत $.3 मिलियन यानी करीब ₹36 करोड़ लगी। लेकिन टैक्स और फीस मिलाकर खरीदार को यह करीब $5.3 मिलियन यानी 44 करोड़ का पड़ा और इसी के साथ यह इतिहास का सबसे महंगा बिकने वाला उल्कापिंड बन गया है।

44 करोड़ एक पत्थर के लिए बहुत बड़ी रकम है। है ना? लेकिन जैसा मैंने शुरू में कहा था असली महफिल तो किसी और ने ही लूट ली। यह देखिए। यह है इस नीलामी का असली शो स्टॉपर। एक का । यह टी रेक्स जैसा दिखता था, लेकिन आकार में थोड़ा छोटा होता था। यह कंकाल करीब 15 करोड़ साल पुराना है। इसकी नीलामी जब शुरू हुई तो मानो बोली लगाने वालों में एक लड़ाई छिड़ गई।

सिर्फ 6 मिनट के अंदर छह खरीदारों ने इसकी कीमत को आसमान पर पहुंचा दिया। और फाइनल बोली कितने पर रुकी? 26 मिलियन। टैक्स और फीस मिलाकर इसकी ऑफिशियल कीमत बनी ₹3.5 मिलियन यानी लगभग ₹50 करोड़। अब आप सोच रहे होंगे कि यह इतना महंगा क्यों बिका? तो इसकी तीन बड़ी वजह हैं। पहली बेहद दुर्लभ। पूरी दुनिया में आज तक के सिर्फ चार मिले हैं और उनमें से यह एक है।

दूसरी, अकेला किशोर। यह अपनी प्रजाति का मिला अब तक का इकलौता बच्चे का कंकाल है। साइंटिस्ट के लिए यह किसी खजाने से कम नहीं है क्योंकि इससे उन्हें डायनासोर के विकास को समझने में मदद मिलती है। तीसरी लगभग पूरा इस कंकाल को 140 असली हड्डियों से जोड़कर तैयार किया गया है और यह प्रदर्शनी के लिए बिल्कुल रेडी है।

यह 1996 में अमेरिका के वमिंग में एक मशहूर जगह बोन केबिन क्वेरी से मिला था। जिसे की की सोने की खान कहा जाता है। अच्छी बात यह है कि इस 250 करोड़ के डायनासोर को खरीदने वाले ने अपनी पहचान तो नहीं बताई लेकिन उन्होंने कहा कि वो इस को एक इंस्टीट्यूशन या म्यूजियम को लोन पर देंगे ताकि आम लोग और बच्चे भी करोड़ों साल पुराने इस जीव को देख सकें। तो यह थी कहानी उस नीलामी की जहां मंगल का टुकड़ा 44 करोड़ में और का कंकाल 250 करोड़ में बिका। यह दिखाता है कि इतिहास और विज्ञान की इन निशानियों की आज भी कितनी कीमत है।

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