मालेगांव हादसा: देश के 2 वकीलों से समझिए कोर्ट के फैसले का मतलब।

विवेक तनखा साहब राज्यसभा के सांसद हैं। कांग्रेस पार्टी से हैं और सुप्रीम कोर्ट के बड़े वकीलों में गिनती होती है। और साथ में महेश जेठमलानी जी एक और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील पूर्व सांसद बीजेपी से जुड़े रहे हैं और साध्वी प्रज्ञा को नुमाइंदगी कर चुके हैं वकील के तौर पर। आप दोनों के साथ बात करता हूं। लेकिन जैसा कि मेरा प्रॉमिस है एक-एक करके बात करते हैं ताकि ओवरलैपिंग ना हो पाए। तो पहले चलते हैं विवेक तनखा साहब के पास। मालेगांव के सभी सातों आरोपी आज सबूतों के अभाव में तनका साहब बरी हो गए हैं।

अब आपकी क्या प्रतिक्रिया है? मुझे ये समझ नहीं आ रहा कि अगर अगर लोग अगर अगर इतना अभाव था एविडेंस का तो इतने दिन जो ट्रायल चलता रहा तो क्या प्रोसक्यूशन को ये बात समझ नहीं आ रही थी? क्या कि हम हम गैप्स को फिल नहीं कर पा रहे हैं। इन्वेस्टिगेटिंग एजेंसी ने इन्वेस्टिगेट किया होगा। जनरली इट इज एक्सपेक्टेड चाहे वो एटीएस थी या या बाद में एनआईए थी दैट यू विल डू अ टाइट इन्वेस्टिगेशन। तो मैं मैं इस पूरे जो सिस्टम है ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन ऑफ जस्टिस जिसमें आज क्वेश्चन मार्क आ रहे हैं इन्वेस्टिगेटिंग एजेंसीज पे प्रोसक्यूटिंग एजेंसीज पे और 17-17 साल तक ट्रायल कोर्ट में चलता है और फिर आप किसी को बरी कर देते हो।

मैं माले गांव की खाली बात नहीं कर रहा हूं। ये बॉम्बे में भी ये हुआ। मैं तो निठारी की भी बात कर रहा हूं। मैंने 2011 में निठारी का केस आर्ग्यू किया था एस एडिशनल सॉलिस्ट जनरल ऑफ इंडिया और सेंटेंस कंफर्म कराई थी।

जी तनका साहब आपने मुंबई के साथ मालेगांव के साथ मुंबई और निठारी की बात भी की। 180 लोग मुंबई ट्रेन धमाकों में मारे गए। छह लोगों की मौत मालेगांव में हुई थी। निठारी में भी कई बच्चों का किया। लेकिन इन तीनों मामलों में जितने पुराने लोग थे सब बारी-बारी से बरी होते गए। सबूतों के अभाव में ज्यादातर जगहों पे लेकिन उनके परिजनों का क्या जिनके लोग मारे गए वो तो उनको इंसाफ कब मिलेगा? तो सबसे बड़ी बात है कि यू मस्ट हैव एन इंडिपेंडेंट इन्वेस्टिगेटिंग एजेंसी। सुप्रीम कोर्ट बार-बार प्रकाश सिंह में बोल चुका है।

सालों से बोल रहा है। जी अगर मैं स्पेसिफिकली मालेगांव के बारे में बात करूं। धनका साहब एक बात समझ में नहीं आती। एटीएस की जांच किसी और दिशा में जा रही थी जब हेमंत करकरे अगुवाई कर रहे थे। उसके बाद मामला एनआईए के पास गया। तब जांच बिल्कुल विपरीत दिशा में चली गई। ये कैसे हो सकता है? एक क्राइम का, एक घटना की दो अलग-अलग जांच, दो अलग-अलग दिशाएं। आई डोंट नो व्हाट हैपेंड लेटर।

फ्रैंकली स्पीकिंग अगर एटीएस ने एक अच्छा इन्वेस्टिगेशन किया था तो एनआईए से डिफर क्यों किया? और एनआईए के वो कौन ऑफिसर्स थे जो इसमें डिफर कर रहे थे और किस कारण से कर रहे थे। जब तक मैं इस पूरे एविडेंस को पढ़ नहीं लूंगा, समझ नहीं लूंगा क्योंकि मैंने इसको पढ़ा नहीं है और जजमेंट भी जो आया उसको मैंने पढ़ा नहीं है तो मैं इस पे कमेंट नहीं कर सकता। मगर मेरे को ये जरूरत जरूर महसूस हो रहा है कि इस प्रकार का कॉन्फ्लिक्ट बिटवीन टू इन्वेस्टिगेट एजेंसी होनी ही नहीं चाहिए। जी इस केस में सभी सात आरोपियों को 17 साल उनके जीवन के भी बर्बाद हो गए। उनके साथ भी ज्यादती हुई।

ऐसा नाइंसाफ ना हो, ऐसी दिक्कतें ना हो, पीड़ित जो है उनके परिवारों को इंसाफ मिले। यह कैसे संभव है हमारे सिस्टम में? आप तो सांसद भी हैं। क्या आप कोई सुझाव दे सकते हैं? आजकल क्या होता है? जितने जो सरकारी वकील अपॉइंट होते हैं वही तो प्रोसीकटर्स होते हैं। और उनको कौन अपॉइंट करता है? पॉलिटिकल गवर्नमेंट्स अपॉइंट करती है। इंडिपेंडेंट अपॉइंटमेंट्स कहां हो पा रहे हैं इस देश में? एंड जब जब इंडिपेंडेंट अपॉइंटमेंट्स नहीं होंगे तो आप हाउ डू यू एक्सपेक्ट इंडिपेंडेंट रिजल्ट्स? यही प्रॉब्लम है कि जब तक हम अपने अपने सिस्टम्स को पॉलिटिक्स से इंसुलेट नहीं करेंगे विक्टिम्स इस देश में सफर करते रहेंगे तो पॉलिटिक्स से अलग करना पड़ेगा इन्वेस्टिगेटिंग एजेंसीज को।

तनका साहब के बाद अब मैं चलना चाहूंगा महेश जेटलानी जी के लिए। जेटलानी साहब आपने यह थ्योरी अगर मुझे ठीक से याद है आप पैरवी कर रहे थे साध्वी प्रज्ञा की उनको बेल दिलाने के लिए उन दिनों में अह आपने ये थ्योरी सैफरन टेरर वाली को स्थाप आपने ये कहा था कि सैफरन टेरर को स्थापित करने के लिए ही मालेगांव के ब्लास्ट में इन तमाम लोगों को फंसाया गया। साध्वी प्रज्ञा जो जिसके वकील थे वो भी इसमें फंसाई गई। आज जब ये फैसला आया सब लोग बरी हो गए सबूतों के अभाव में। आज आप क्या कहेंगे? जी हां ये तो मैं शुरुआत से भी कह रहा था कि जब जब मैंने सादी सादी प्रज्ञा का बेल एप्लीकेशन कोर्ट में मैंने उनके लिए अपीयर हुआ था उस समय से मैं कह रहा हूं कि कुछ सबूत ही नहीं है। ये बिल्कुल झूठा केस है और साध्वी प्रज्ञा को टॉर्चर भी किया गया था। मैं सुप्रीम कोर्ट तक दो बातें को ले एक तो मैंने कहा इसमें सबूत नहीं है। दूसरा मैंने कहा कि उनको टॉर्चर किया गया है। उस पर इंक्वायरी होना चाहिए और तीसरा मैंने कहा कि उनका अरेस्ट भी रोंगफुल था कि वो गैर कानूनी गिरफ्तार हो चुका था और उनको 24 आवर्स में प्रोड्यूस भी नहीं किए थे।

लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सब खारिज की। जितने भी आर्गुमेंट्स मेरे थे वो खारिज थे। लेकिन अब देखिए न्याय आखिर मिला है लेकिन साध्वी प्रज्ञा जो मेरी क्लाइंट थी वो वो उनको काफी तकलीफ हुआ और उनको बहुत कष्ट उठाना पड़ा उस समय जी जिलानी जी आपको रोहिणी सालयान जी याद होंगी इस मामले में स्पेशल पब्लिक प्रोसकटर थी 2015-16 में उनका एक इंटरव्यू आया था बयान छपा था अखबारों में उन्होंने तब कहा था कि उनके ऊपर बहुत दबाव है कि केस में नरमी दिखाएं सख्ती ना दिखाएं आज भी इस कोर्ट के फैसले के बाद उनका एक बयान आया अंग्रेजी अखबार को उन्होंने कोर्ट दिया है और उसमें वो कहती है कि यह फैसला आना था। वो तो यह जानती थी क्योंकि तमाम सबूतों को बदला गया। आज उनको आप क्या कहेंगे? गलत है। शुरू शुरुआत से ही आप यदि गलत मुजरिम को उठाते हैं और इसलिए उठाते हैं। गलत मुजरिम को इसलिए उठाते हैं क्योंकि के खिलाफ इल्जाम लगाते हैं केस में क्योंकि आपको एक पिटिकल नैरेटिव को पेश करना है कोर्ट में कि हिंदू टेररिज्म जो आपके उस समय के पिटिकल मास्टर्स का फेवरेट थीम था। यदि वो आपका मकसद है तो इन्वेस्टिगेशन फेल होना ही है। और यह शुरुआत से ही हुआ था।

यानी कुछ कुछ स्टेटमेंट्स चेंज नहीं हो चुके थे। थरी तो वही था और सबूत जो रोहिणी सालियन जब वो प्रोसकटर थी जो जो सबूत जमा किया गया था इन्वेस्टिगेशन दौरान वो तो उतना वो ही था और उससे कुछ इंप्रूवमेंट या फेरबदल हुआ ही नहीं था। जी एक एक और इशू को लेना चाहूंगा जेठलानी जी छह लोग मारे गए थे मालेगांव में इनको कैसे इंसाफ मिलेगा इनके परिजनों को कब इंसाफ मिल पाएगा देखिए जस्टिस डिलेड इज़ जस्टिस डिनाइड ये एक पुराना क्लीशिया है हमारे लीगल सिस्टम में और अब इनको न्याय पहुंचाना एक बहुत मुश्किल बात है ये अब अब तो ये नामुमकिन है असंभव है नहीं होगा। एक और बात बताइए जो बात मैंने कुछ देर पहले तनखा साहब से पूछी जब एटीएस जांच कर रही थी हेमंत करकरे साहब अगवाई कर रहे थे तब साध्वी प्रज्ञा और कर्नल पुरोहित पर इल्जाम लग रहे थे वो आरोपी थे। फिर मामला एनआईए के पास गया 2011-12 में उसके सीन में आने के बाद जांच की दिशा बिल्कुल बदल गई। तो दो एजेंसीज एक घटना की अलग-अलग तरीके से जांच करती हैं और अलग अलग-अलग निष्कर्ष पर पहुंचती हैं। यह क्या संभव है? ये तो पहला केस नहीं हुआ है जिसमें यह इतना अंतर है दो अलग इन्वेस्टिगेशन में मुझे लगता है कि जो जो फर्स्ट मालेगांव केस था ये मालेगांव टू है मालेगांव पहले भी था उसमें भी इतना अंतर था एक ने कहा कि मालेगांव वन में हिंदू टेररिस्ट है और दूसरे में ये कहा गया कि जितने भी मुजरिम इसके लिए काब जिम्मेदार थे वो सब मुसलमान थे। जी यानी इतना कंट्राडिक्शन मैंने कभी नहीं देखा है और ये एक टेररिस्ट केस में जी तो इतना पोलिसाइजेशन हो गया है कि ये समझ के बाहर है और यानी ये हमारा क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम पे एक टिप्पणी है बाय इटसेल्फ। तो आप आप बड़ी बात कह रहे हैं जिटानी जी तो मैं यहीं से अगला सवाल लेता हूं।

क्या आपको लगता है कि क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम को इन इन्वेस्टिगेटिंग एजेंसीज़ जिसका महत्वपूर्ण पार्ट हैं। इनको अब सरकारों के चंगुल से दूर रखना चाहिए? क्या पॉलिटिकल प्रेशर में ये काम करते हैं? बिल्कुल बिल्कुल। इंडिपेंडेंट एजेंसीज होने की जरूरत बहुत है। यानी यदि हमारे इन्वेस्टिगेटिंग एजेंसीज पिटिकल मैंडेट्स पे चलेंगे और उनका पूरा जांच जो है एक ही दिशा में एक पॉलिटिकल दिशा में ले जाने की कोशिश होगी उन पॉलिटिकल डिक्टेट्स की वजह से तो ये दुर्भाग्य की बात है। आप दोनों की इस मामले में राय एक जैसी है कि पॉलिटिकल क्लचेस से निकालना पड़ेगा इस अपने जुडिशियल सिस्टम को इन्वेस्टिगेटिंग एजेंसी को।

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