एक बिजनेस टकून, एक ग्लोबल ब्रांड के पीछे का दिमाग और करिश्मा कपूर के एक्स हस्बैंड संजय कपूर। अब वो हमारे बीच नहीं है। लेकिन उनके जाने के बाद सवालों की बौछार है। कौन संभालेगा संजय की बनाई ये करोड़ों की दुनिया? क्या करिश्मा कपूर को कुछ मिला? क्या बच्चों के नाम कुछ है? क्या प्रिया सचदेव इस विरासत की मालकिन बनी? या फिर इस कहानी में कोई और बाजी मार गया? तो चलिए जानते हैं पूरी कहानी एक-एक परत खोलकर इस राज की जो सिर्फ पैसा नहीं एक सपने की विरासत है।
12 जून की दोपहर लंदन के एक पोलो ग्राउंड में चल रहा था एक हाई प्रोफाइल मैच। लेकिन अचानक दिल थाम देने वाली खबर आई। संजय कपूर मैदान पर गिर पड़े और फिर कभी नहीं उठे। शुरुआत में अफवाहें चली कि मधुमक्खी के काटने से एलर्जी हुई। पर बाद में कंपनी की ओर से बयान आया दिल के दौरे एक ऐसा इंसान जो फिटनेस फ्रीक था फोलो जैसे खेल का दीवाना था उसकी निधन ने सभी को चौंका दिया संजय कपूर सिर्फ एक अमीर आदमी नहीं थे वो एक विज़नरी थे 1995 में उनके पिता सुरेंद्र कपूर ने जो कंपनी शुरू की थी सोनाकॉम स्टार आज वही कंपनी 31000 करोड़ की वैल्यू पर खड़ी है टेस्ला जैगुआर लैंड रोवर जैसी दिग्गज कंपनियों को ऑटो ऑटो पार्ट्स देने वाली यह इंडियन कंपनी अब पूरी दुनिया में अपने झंडे गाड़ चुकी है।
लेकिन अब जब कप्तान चला गया तो सवाल बड़ा था अब कौन संभालेगा यह जहाज? लोगों की नजर सबसे पहले गई करिश्मा कपूर पर क्योंकि वो उनकी एक्स वाइफ थी और उनके दो बच्चे समायरा और किियान। फिर नाम आया प्रिया सचदेव का जो संजय की तीसरी पत्नी थी। लेकिन हैरानी तब हुई जब कंपनी ने किसी फैमिली मेंबर को नहीं बल्कि एक बाहरी इंसान को चेयरमैन बना दिया। जेफरी मार्क ओवरली अब सवाल उठा जेफरी कौन है? तो सुनिए 43 इयर्स का जबरदस्त इंडस्ट्री एक्सपीरियंस। जनरल मोटर्स डेलफी ब्लैकस्टोन जैसी कंपनियों में टॉप लेवल पर काम किया। सिंसनाटी यूनिवर्सिटी से इंडस्ट्रियल मैनेजमेंट में डिग्री और 2021 से ही सोनाकॉम स्टार के बोर्ड में बतौर स्वतंत्र निर्देशक बोर्ड मीटिंग्स में उनकी 100% उपस्थिति थी। यानी प्रोफेशनलिज्म और डेडीकेशन में वह अव्वल रहे।
30 अप्रैल 2025 को बोर्ड ने उन्हें एक बार फिर 5 साल के लिए डायरेक्टर बनाया और अब उन्हें कंपनी का नया चेयरमैन बना दिया गया। साफ था कि बोर्ड्स भावनाओं से नहीं अनुभव और विज़ से चला। संजय कपूर की पत्नी, बहन या बच्चे नहीं बल्कि एक ऐसा इंसान जिसने बिजनेस की नब्ज़ पकड़नी आती है। वो चुना गया अगला कर्णधार। संजय कपूर के जाने के बाद सबसे पहला असर शेयर मार्केट पर पड़ा। Sonom स्टार के शेयर 7% तक गिर गए। बिजनेस वर्ल्ड में घबराहट फैल गई। कंपनी के भविष्य को लेकर सवाल उठने लगे। क्या यह साम्राज्य अब बिखर जाएगा? क्या कोई पारिवारिक उत्तराधिकारी इसे संभालेगा या फिर कंपनी अपनी दिशा खो देगी? लेकिन बोर्ड ने दिखाया कि वह भावुक नहीं समझदार फैसले लेने में यकीन रखते हैं। अब बात करते हैं प्रिया सचदेव की।
संजय की तीसरी पत्नी 2017 में दोनों ने शादी की थी। प्रिया खुद भी एक बिजनेस वुमेन रही हैं। उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था कि वह करिश्मा के बच्चों समायरा और किियान से अच्छे रिश्ते रखती है। मैं उनकी मां तो नहीं बन सकती। उन्होंने कहा पर एक दोस्त जरूर बन सकती हूं। लेकिन इतने करीबी रिश्ते के बावजूद प्रिया को भी कंपनी का टॉप पोजीशन नहीं मिला।
हां, प्रिया को कंपनी में एक अहम जिम्मेदारी जरूर दी गई। उन्हें एडिशनल नॉन एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर बनाया गया। इसका मतलब यह है कि वह बोर्ड का हिस्सा तो होंगी लेकिन कंपनी के दिन प्रतिदिन के कामों में उनकी कोई सीधी भूमिका नहीं होगी। यह रोल एक तरह का सम्मानजनक योगदान माना जा सकता है कि वह कंपनी से जुड़ी नहीं। लेकिन फैसले वही लोग लें जो सालों से कॉर्पोरेट दुनिया में डटे हुए हैं। अब आते हैं विरासत पर। संजय कपूर की कुल संपत्ति थी करीब 10,300 करोड़। इतना पैसा, इतनी कंपनियां, इतना निवेश। लेकिन सवाल था क्या यह सब उनकी पत्नी बहन या बच्चों को मिला? तो जवाब थोड़ा चौंकाने वाला है। किसी को भी उनकी सोना कॉम स्टार कंपनी में कोई सीधी हिस्सेदारी नहीं मिली। ना करिश्मा को, ना बच्चों को, ना मंदिरा को और ना प्रिया को। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि उन्होंने बच्चों का ध्यान नहीं रखा। संजय ने पहले से ही ₹14 करोड़ के बॉन्ड बच्चों के नाम पर ले रखे थे। जो हर महीने ₹1 लाख ब्याज देते हैं। इतना ही नहीं मुंबई के खार इलाके में जो उनका शानदार घर है वह भी बच्चों के नाम ट्रांसफर हो चुका है और करिश्मा कपूर को तलाक के वक्त 70 करोड़ की एलुमिनी पहले ही मिल चुकी थी। यानी संजय ने अपनी संपत्ति को इमोशंस और लॉजिक दोनों के हिसाब से बांटा था। बिजनेस अलग, परिवार अलग। अब बात करते हैं उस ऐलान की जिसने सबको चौंका दिया था। जेफरी मार्क ओवरली को चेयरमैन बनाए जाने का फैसला।
लोगों को लगा था कि कोई करीबी रिश्तेदार या फैमिली मेंबर कमान संभालेगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बोर्ड ने बहुत सोच समझकर जेफरी को चुना क्योंकि उन्हें जरूरत थी एक ऐसे कप्तान की जिसके पास अनुभव भी हो, विज़ भी हो और इंडस्ट्री की गहराई से समझ भी। जेफरी के नाम के साथ जुड़ी कई बड़ी कंपनियां जनरल मोटर्स, डेलफी, ब्लैक स्टोन जैसी ग्लोबल फर्म्स में उन्होंने टॉप लेवल पर काम किया है। वो सिर्फ एक कॉर्पोरेट ऑफिसर नहीं है बल्कि एक ऐसा इंसान है जो क्राइसिस मैनेजमेंट में माहिर है। संजय कपूर के जाने के बाद जो मार्केट में अस्थिरता आई उसे कंपनी को बाहर निकालने के लिए जेफरी से बेहतर कोई नहीं था।
कंपनी के बोर्ड का मानना है कि अब वक्त है संजय के सपनों को आगे ले जाने का ना कि उनके रिश्तों की रेखाएं खींचने का। बिजनेस की दुनिया इमोशन से नहीं डायरेक्शन से चलती है। जेफरी ने ना सिर्फ बोर्ड की मीटिंग्स में एक्टिव हिस्सा लिया बल्कि नई टेक्नोलॉजी, नई पॉलिसी और नए मार्केट की प्लानिंग पहले से ही शुरू कर दी थी। अब बात करें कंपनी की तो Sonom स्टार सिर्फ एक इंडियन कंपनी नहीं बल्कि एक ग्लोबल टेक्नोलॉजी ब्रांड है। गुरुग्राम में इसका हेड ऑफिस है। लेकिन इसकी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स अमेरिका, मेक्सिको, सर्बिया और चाइना तक फैली हैं। यह कंपनी इलेक्ट्रिक व्हीकल्स के लिए एडवांस पार्ट्स बनाती है। जैसे स्मार्ट सेंसर्स, ब्रेकिंग सिस्टम और सॉफ्टवेयर कंट्रोल यूनिट्स। संजय कपूर ने जब 2015 में कंपनी की कमान संभाली थी तब यह एक मिड लेवल ऑटो कंपनी थी। लेकिन उन्होंने ना सिर्फ कंपनी को इलेक्ट्रिक व्हीकल की रेस में शामिल किया बल्कि उसे लीडर बना दिया।
उन्होंने ब्लैक स्टोन जैसी ग्लोबल फर्म से पार्टनरशिप की और कंपनी को एक पब्लिक लिमिटेड ब्रांड्स में बदल डाला। सोना और कॉमस्टार का मर्जर करवाकर उन्होंने अपनी कंपनी को टेक्नोलॉजी और इनोवेशन का हब बना दिया। संजय कपूर की सोच सिर्फ आज के लिए नहीं थी। वो एक दूरदर्शी इंसान थे जिनका फोकस था आने वाले 10 साल। उनकी प्लानिंग थी कि सोनाकोम स्टार को इलेक्ट्रिक वाहनों के सबसे बड़े सप्लायर्स में शामिल किया जाए। वो चाहते थे कि भारत ही नहीं जापान, चाइना और यूरोप के बाजार में भी उनकी कंपनी एक मेजर प्लेयर बने। और इसके लिए उन्होंने हर मोर्चे पर तैयारी शुरू कर दी थी। लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था।
एक फिट इंसान, हेल्दी लाइफस्ट, करोड़ों का साम्राज्य और फिर अचानक एक दिल का दौरा। उनकी मौत ने उनकी योजनाओं को बीच रास्ते में रोक दिया। लेकिन सवाल यह है क्या उनकी टीम उनका सपना पूरा कर पाएगी? क्या जेफरी और बोर्ड मिलकर वही दिशा बरकरार रख पाएंगे जिस दिशा में संजय कंपनी को ले जा रहे थे? अब यहां पर एक और बात निकल कर आती है सोशल मीडिया की बहस। लोग पूछ रहे थे जब प्रिया सचदेव खुद बिजनेस बैकग्राउंड से आती हैं तो उन्हें कंपनी की कमान क्यों नहीं मिली? कुछ लोग कह रहे थे कि मंदिरा कपूर, संजय की बहन वो भी बिजनेस वुमेन है तो उन्हें क्यों नहीं चुना गया? पर असल में बात यह है कि बोर्ड ने इमोशन से नहीं रे्यूमे से फैसला किया। सोना कॉमस्टार अब एक ऐसा जहाज बन चुका है जिसे ग्लोबल स्टॉर्म से पार ले जाना है और इसके लिए कप्तान चाहिए जो बिजनेस की लहरों को पढ़ सके जो टेक्नोलॉजी की दिशा समझ सके और जो मार्केट के तूफानों से भिड़ सके। जेफरी मार्क और वर्ली में यह सारी खूबियां थी और शायद इसलिए उन्हें चुना गया।
आज जब हम पीछे मुड़कर देखते हैं तो लगता है संजय कपूर ने जो छोड़ा है वह सिर्फ कंपनी या पैसा नहीं है बल्कि एक विरासत है। एक सोच की, एक दिशा की, एक सपने की। उनकी मौत ने भले ही सबको झकझोर दिया, लेकिन उनकी बनाई कंपनी अब भी खड़ी है। उनके उस विज़न के साथ जो उन्होंने आने वाले वक्त के लिए देखा था। संजय कपूर की पहली पत्नी करिश्मा कपूर। जब उनकी शादी हुई थी तब यह शादी सिर्फ दो लोगों की नहीं बल्कि बॉलीवुड और बिजनेस की बड़ी खबर बनी थी। उनके दो बच्चे हुए समायरा और किियान लेकिन फिर कुछ सालों बाद दोनों के रास्ते अलग हो गए। 2016 में तलाक हुआ और करिश्मा को 70 करोड़ की एलुमिनी मिली। पर क्या करिश्मा ने सोचा था कि एक दिन उनके बच्चे उस विरासत से दूर रह जाएंगे जो कभी उनके पिता ने खून पसीने से बनाई थी। बच्चों को घर मिला, बोंड्स मिले लेकिन सोना कॉम स्टार से जुड़ने का कोई संकेत नहीं आया। कंपनी के ऑफिशियली वेबसाइट बोर्ड लिस्ट या पब्लिक स्टेटमेंट में कहीं भी समायरा या किियान का नाम नहीं है। शायद संजय ने यह सोचा हो कि बच्चे अभी छोटे हैं या फिर यह फैसला लिया हो कि उन्हें बिजनेस की दुनिया से दूर रखा जाए। पर एक सवाल तो रह ही जाता है क्या आगे चलकर यह बच्चे कभी उस सीट तक पहुंच पाएंगे जिसे उनके पिता ने खाली छोड़ा है। अब बात करते हैं मंदिरा कपूर की। संजय की बहन और एक इंडिपेंडेंट एजुकेटेड महिला। उन्होंने सोशल मीडिया पर अपने पिता और संजय को एक साथ याद करते हुए लिखा अब दोनों साथ हैं। उनके पोस्ट ने बहुत से लोगों को भावुक कर दिया। लेकिन कंपनी में उन्हें भी कोई बड़ा रोल नहीं मिला। मंदिरा चाहती तो इस साम्राज्य का हिस्सा बन सकती थी। पर शायद यह तय पहले ही हो चुका था कि बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में फैमिली की दखल सीमित ही रहेगी। बोर्ड का यह फैसला बिजनेस के लिहाज से सही था या नहीं इस पर बहस हो सकती है। लेकिन यह बात तय है कि सोनाकॉम स्टार अब एक फैमिली बिजनेस नहीं रहा।
यह एक प्रोफेशनल कॉर्पोरेटिव स्ट्रक्चर में बदल चुका है। जहां फैमिली रिलेशन से ज्यादा मैनेजमेंट स्ट्रेटजी की अहमियत है। संजय कपूर ने भले ही इसे विरासत के तौर पर छोड़ा हो, लेकिन बोर्ड ने इसे एक ग्लोबल ब्रांड की तरह चलाने का फैसला किया। अब जब शेयर मार्केट धीरे-धीरे फिर से स्थिर हो रहा है और कंपनी नए चेयरमैन के साथ आगे बढ़ रही है तो सवाल बचता है सिर्फ एक क्या संजय कपूर की आत्मा इस फैसले से खुश होती क्योंकि उन्होंने जो सपना देखा था वो परिवार और बिजनेस दोनों को साथ लेकर चलने का था और आज जो तस्वीर सामने है वो एक प्रोफेशनल बोर्ड कॉर्पोरेट चेहरा और एक ऐसे भविष्य की है जहां उनके अपने लोग कहीं दूर बैठकर बस देख रहे हैं। संजय कपूर ने अपने विज़न से Son कॉम स्टार को सिर्फ एक मुनाफे की मशीन नहीं बनाया था बल्कि एक इनोवेशन हब बनाया था। एक ऐसी जगह जहां तकनीक, भविष्य और भारत की पहचान मिलती थी।
उन्होंने जो 10 साल की योजना तैयार की थी वो सिर्फ चार्ट पेपर पर नहीं बल्कि हर डिवीजन में धीरे-धीरे लागू हो रही थी। उनकी सोच थी अगर भारत को ग्लोबल ईवी मार्केट में पहचान बनानी है तो हमें सिर्फ सस्ते पार्ट नहीं स्मार्ट पार्ट्स बनाने होंगे। लेकिन अब जब वो नहीं है तो सवाल उठता है क्या उनकी प्लानिंग को कोई और उतने ही पैशन से आगे बढ़ा पाएगा? जेफरी मार्क ओवरली अनुभवी है, काबिल है। लेकिन क्या वो संजय की तरह जुनूनी भी हैं? एक कंपनी को संभालने के लिए दिमाग चाहिए। लेकिन उसे बड़ा बनाने के लिए दिल भी चाहिए। आज जब आप कंपनी की वेबसाइट खोलते हैं तो वहां आपको डाटा, ग्राफिक्स, फ्यूचर प्रोजेक्ट्स दिखेंगे। लेकिन जो नहीं देखेगा वो है एक इंसान का सपना। संजय कपूर अब एक चेयरमैन एमिरेट्स की तरह याद किए जा रहे हैं। एक फोटो, एक छोटा सा सेक्शन बस उतनी सी जगह में समा गया उनका योगदान। बोर्ड मीटिंग्स में अब उनका नाम पूर्व अध्यक्ष के रूप में दर्ज होता है। पर क्या इतना काफी है? यह कहानी हमें याद दिलाती है कि कभी-कभी दौलत और विरासत दो अलग-अलग चीजें होती हैं। संजय कपूर ने दौलत छोड़ी 10,300 करोड़ की। लेकिन विरासत वह उस दिशा की है, उस सोच की है, उस आग की है जो उन्होंने अपनी कंपनी में, अपने बच्चों में और इस इंडस्ट्री में जलाई थी। और अफसोस यह है कि वो विरासत आज कागजों में बंटी, लेकिन दिलों में अधूरी रह गई। तो दोस्तों, यह कहानी सिर्फ एक बिजनेसमैन की नहीं थी। यह कहानी थी एक सपने देखने वाले इंसान की। जिसने सोचा था कि भारत एक दिन टेक्नोलॉजी के पायदान पर खड़ा होकर दुनिया को रास्ता दिखाएगा। वो चला गया लेकिन पीछे छोड़ गया सवालों का तूफान।
कौन उसका असली वारिस है? क्या विरासत सिर्फ कुर्सियों से तय होती है? या फिर उससे कि किसने उसका सपना जीने की कोशिश की? आज अगर संजय कपूर कहीं हमें देख रहे हैं तो शायद वह यही पूछ रहे होंगे। क्या मेरी विरासत मेरे अपनों तक पहुंची या सिर्फ किसी बोर्ड रूम में रह गई? अगर आपको यह कहानी सोचने पर मजबूर कर गई हो तो इसे अपने दोस्तों और परिवार के साथ जरूर शेयर कीजिए। क्योंकि यह सिर्फ एक अमीर आदमी की कहानी नहीं यह उस हर इंसान की कहानी है जो कुछ बनाकर छोड़ जाता है और चाहता है कि कोई उसे समझे।