क्यों इस अभिनेत्री को 3 साल तक एक कमरे में बन्द रखा गया

आपने ऐसी तस्वीर देखी है जो सिर्फ अतीत की याद ना हो बल्कि ऐसा लगे कि वक्त वहीं थम गया हो जहां बालों में नीला रिबन हो गालों पर मासूमियत की हल्की सी गुलाबी परछाई और आंखों में वो चमक जो जैसे कह रही हो वह सपना नहीं एक सपना जी रही हूं वो कोई काल्पनिक चित्र नहीं आयशा जुल्का थी 90 के दशक का हर पोस्टर उनके बिना अधूरा लगता था दीवारों पर लहराते पोस्टर से लेकर कॉलेज की डायरियों में चुपके से चिपकी उनकी तस्वीरों तक आयशा एक युग थी ऐसा चेहरा जिसे देखकर पहली मोहब्बत का मतलब समझ आया लड़कों ने इश्क करना सीखा लड़कियों ने मुस्कुराना लेकिन अब वो चेहरा कहां है जिसने पर्दे पर लाखों दिलों को झुका दिया वो सब खुद पर्दे के पीछे क्यों चली गई ना वो किसी अवार्ड शो की रेड कारपेट पर दिखती हैं ना किसी टीवी रियलिटी शो में नस्टेल्जिया जज बनती हैं ना किसी पुराने स्टार की तरह सोशल मीडिया पर अपने युग को भुनाती हैं क्या उन्होंने खुद को भुला दिया या हमने उन्हें भुला दिया या फिर यह वो कहानी है जिसे स्टारडम से ज्यादा सुकून चाहिए था जो सुर्खियों से नहीं सच्चाई से जुड़ी थी क्यों गायब हो गई आयशा जुल्का यही सवाल अब जवाब मांगेगा एक कहानी में जो सिर्फ उनकी नहीं एक पूरी पीढ़ी की है साल 1991 सलमान खान के साथ एक नई हीरोइन पर्दे पर उतरी नजाकत ऐसी कि कैमरा खुद थम जाए और मासूमियत ऐसी कि जैसे स्क्रीन पर कोई किरदार नहीं एक एहसास उतर आया हो नाम था आयशा जुलका लेकिन पर्दे पर जो जादू था वह पर्दे के पीछे उतना ही संघर्ष से गुजरा था असल में आयशा की डेब्यू फिल्म होनी थी नरसिम्हा सनी देओल के साथ किरदार भी दमदार था और मौका भी बढ़ा लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था शूटिंग से पहले ही निर्माता से किसी बात पर तकरार हो गई और आयशा को फिल्म से निकाल दिया गया .

उनकी जगह ले आई उर्मिला मातुंडकर ऐसे मौके पर कई लोग छूट जाते हैं और शायद इंडस्ट्री भी यही चाहती है कमजोर दिल खुद हट जाए लेकिन आयशा जुल्का ने हार नहीं मानी और उन्होंने खुद को फिर से खड़ा किया और कुछ ही महीनों में वापसी की सलमान खान के साथ फिल्म कुर्बान में यह शुरुआत नहीं एक पुनर्जन्म था और इस बार उन्होंने खुद को इतना संवार लिया था कि बस कुछ ही समय में वह सीधे पहुंच गई उस फिल्म तक जिसने उन्हें खिलाड़ी की रानी बना दिया यह सिर्फ एक फिल्म का सफर नहीं था यह उस लड़की की जिद थी जो कैमरे से नहीं काबिलियत से पहचानी जानी चाहती थी 1992 अब्बास मस्तान के थ्रिलर खिलाड़ी सिनेमाघर में आई और इंडस्ट्री का गेम ही बदल गया जहां अक्षय कुमार को मिला उनका आइकॉनिक खिलाड़ी टैग वहीं आयशा जुल्का बन गई हर फिल्म मेकर की पहली पसंद यह फिल्म सिर्फ एक हिट नहीं थी यह दो सितारों की केमिस्ट्री का वह जादू थी जिसे दर्शक पर्दे से उतार कर अपने दिल में बसाने लगे अक्षय और आयशा शूटिंग के सेट पर साथ लंच ब्रेक में साथ और कई बार कैमरों के बिना भी साथ उनकी मुस्कानें जब मिलती थी तो वह सिर्फ फ्रेम की डिमांड नहीं लगती थी वह रियल लगती थी इंडस्ट्री में फुसफुसाहटें शुरू हो गई क्या यह जोड़ी सिर्फ पर्दे की है या असल में भी कुछ चल रहा है लोगों को यकीन हो चला था .

यह रियल लाइफ कपल अब रियल लाइफ में भी एक होने वाला है लेकिन शोभिज का प्यार अक्सर वैसा ही होता है जल्दी खिलता है और जल्दी मुरझा जाता है शायद कैमरे ने जो जोड़ी बनाई थी वह रियलिटी की रोशनी में टिक नहीं सकी और ऐसे ही खिलाड़ी की जोड़ी एक फिल्म की हिट जोड़ी बनकर रह गई अक्षय कुमार से रिश्ते की अधूरी दास्तान के बाद आयशा जुल्का की जिंदगी में एक और चेहरा आया अरमान कोहली फिल्म अनाम की शूटिंग के दौरान जब दोनों पहली बार मिले तो आयशा को लगा शायद अब वो मिल गया है जो मुझे पूरी करेगा अरमान में उन्हें वो स्थिरता दिखी जो शायद पहले कभी किसी में नहीं दिखी थी वो रोमांस नहीं था वो एक तड़प थी जो स्क्रीन से बाहर उनके निजी पलों में भी झलकने लगी लेकिन यह रिश्ता सिर्फ लव स्टोरी नहीं था यह एक इंटेंस ड्रामा बनता जा रहा था जिसमें प्यार से ज्यादा पज़ेसिवनेस और समझ से ज्यादा जिद शामिल थी आयशा दिन-बदिन अरमान के करीब होती गई इतनी कि उन्होंने इंडस्ट्री के कुछ सबसे बड़े ऑफर्स सिर्फ इसलिए ठुकरा दिए क्योंकि वो सिर्फ अरमान के साथ काम करना चाहती थी यह इश्क नहीं था यह खुद को किसी और के सांचे में ढालने की कोशिश थी और फिर जो हुआ वो एक दर्दनाक अध्याय बन गया भी हो बेखबर मैं भी हूं बेखबर रिपोर्ट्स में सामने आया कि अरमान ने आयशा पर हाथ उठाया उन्होंने शादी का वादा किया लेकिन जब निभाने की बारी आई तो पलट गए.

आयशा टूट गई लेकिन उन्होंने उस टूटन को भी एक मुस्कान की तरह चेहरे पर ओढ़ लिया क्योंकि पर्दे की लड़कियां अपना दर्द दुनिया को नहीं बताती बस निभाती हैं हर किरदार की तरह चाहे वह टूटे दिल की चुप्पी ही क्यों ना हो अरमान कोहली से मिले जख्म अभी दिल पर ताजा थे कि आयशा जुल्का की जिंदगी में एक और नाम आया एक नाम जो सिनेमा से ज्यादा रहस्य और रुतबे का दूसरा नाम था मिथुन चक्रवर्ती 22 साल का फासला पहले से शादीशुदा और इंडस्ट्री का वो चेहरा जिससे हर कोई जुड़ना चाहता था लेकिन कम ही लोग पास आ पाते थे फिल्म दलाल के सेट पर आयशा और मिथुन के बीच एक नई कहानी शुरू हुई कोई स्क्रिप्ट नहीं थी कोई डायलॉग नहीं था बस दो लोग और एक अनकही समझ वक्त बीतता गया और यह रिश्ता इतना आगे बढ़ा कि आयशा मिथुन के साथ लिव इन रिलेशनशिप में आ गई इंडस्ट्री में खुसरपुसार शुरू हो गई कई लोगों ने इसे टेंपरेरी फ्लिंक कहा कुछ ने पीआर ड्रामा बताया लेकिन जो आयशा को करीब से जानते थे वह समझ गए थे कि इस बार वह सचमुच प्यार में थी पर इश्क की सबसे बड़ी कमी यही होती है अगर वह छिपाकर निभाना पड़े तो वह धीरे-धीरे खुद से भी छिपने लगता है मिथुन कभी अपने रिश्ते को खुलेआम स्वीकार नहीं कर पाई और आयशा जो पहले ही रिश्तों से टूटी हुई थी इस बार धीरे-धीरे अंदर से खत्म होने लगी क्योंकि जो रिश्ता दुनिया के सामने सांस नहीं ले सकता वो एक दिन दम तोड़ ही देता है मन मेरा जब मिथुन के साथ रिश्ते की परछाइयों से निकल ही रही थी आयशा कि उनकी जिंदगी में एक और किरदार दाखिल हुआ नाना पाटेकर कोहराम फिल्म की शूटिंग के दौरान जब दोनों साथ आए तो हर कोई हैरान था एक तरफ नाना का तेज तुनक मिजाज और दूसरी ओर आयशा की शांत सौम्य मौजूदगी लेकिन कभी-कभी विरोध भी आकर्षण बन जाता है जहां नाना की सख्ती थी वहीं आयशा की नरमी थी एक फिल्म की शूटिंग ने इस डोरी को पिघला दिया और जल्द ही यह रिश्ता स्क्रीन से निकलकर हकीकत बन गया नाना ने आयशा को ना सिर्फ सपोर्ट किया बल्कि वो उनके घर भी रहने लगी एक अजीब सी सुरक्षा की भावना थी उस रिश्ते में जैसे आयशा को लगा हो अब और भटकना नहीं पड़ेगा .

लेकिन कहानी में एक मोड़ था एक छुपा हुआ चैप्टर मनीषा को इराला नाना का नाम पहले से ही मनीषा से जुड़ा हुआ था लेकिन आयशा को यकीन था कि वह सिर्फ एक अफवाह है जब तक एक दिन उन्होंने नाना और मनीषा को साथ देख नहीं लिया उस एक पल में ना सिर्फ आंखें झलकी बल्कि हर भरोसा टूट गया एक और रिश्ता एक और अधूरी उम्मीद और एक बार फिर आयशा अकेली रह गई अपनी ही कहानी में एक खामोश किरदार बनकर 1993 आयशा जुल्का के करियर का वह साल जब वह सिर्फ एक अभिनेत्री नहीं हर फ्रेम की जरूरत बन चुकी थी एक ही साल में 10 फिल्में और वह भी कोई आम फिल्में नहीं बलमा संग्राम रंग मेहरबान मासूम हर सिनेमाघर में हर पोस्टर पर हर गाने में सिर्फ आयशा ही आयशा थी फिल्म इंडस्ट्री में इसे कहते हैं गोल्डन रन निर्माता उनके पीछे लाइन लगाते थे.

हीरो उन्हें अपनी लकी चाम मानते थे और दर्शक उन्हें 90ज की क्वीन लेकिन इतनी तेजी से कैमरे के फ्लैश चमकते हैं उतनी ही जल्दी आंखों को चुभने भी लगते हैं इतनी रोशनी में रहकर भी आयशा कहीं अंदर ही अंदर धुंधली होती जा रही थी 2000 आते-आते सब कुछ बदलने लगा नई एक्ट्रेसेस आई नई कहानियां नई मांगे और अचानक वो चेहरे जो कल तक सुपरस्टार थे आज थोड़े साइड में होने लगे स्क्रिप्ट आना बंद हो गई फोन की घंटी सिर्फ याद दिलाने लगी कि अब कोई तुम्हें याद नहीं कर रहा और फिर एक दिन आयशा खुद अपने ही वजूद से दूर हो गई ना कोई कैमरा ना कोई डायरेक्टर ना कोई रोल बस एक लंबा सन्नाटा जिसमें कभी स्टारडम चीखता था अब खामोशी रोती [संगीत] थी 2003 वह साल जब आयशा जुल्का ने एक और बड़ी स्क्रिप्ट साइन की लेकिन इस बार कैमरे के लिए नहीं जिंदगी के लिए उन्होंने शादी कर ली बिजनेसमैन समीर वाशी से ना कोई ब्राइडल शूट ना पेप्राजे की भीड़ ना वायरल वीडियो बस एक सादा सी विदाई जैसे कोई पोस्टर की रानी चुपचाप अपने ही फ्रेम से उतर गई हो जहां बाकी सितारे शादी को एक इवेंट बना देते हैं आयशा ने उसे एक निजी पल की तरह जिया कोई प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं कोई रिटर्न गिफ्ट्स नहीं सिर्फ एक फैसला के अब वह आवाजों से नहीं सुकून से जुड़ेंगी और फिर उन्होंने बिना शोर किए बिना किसी फाइनल गुड बाय के इंडस्ट्री को अलविदा कह दिया जिस मंच पर उन्होंने एक दशक तक राज किया वह मंच अचानक खाली नहीं हुआ बल्कि खामोश हो गया क्योंकि कुछ रुखसतियां तालियों के साथ नहीं होती कुछ सिर्फ एक लंबी सांस के बाद होती हैं जैसे कोई अपना पर्दा गिरा देता है हमेशा के लिए शादी के सालों बाद भी जब कोई उनसे पूछता बच्चे कब होंगे तो आयशा सिर्फ हल्की सी मुस्कान देती कोई सफाई नहीं कोई नाराजगी नहीं सिर्फ एक खामोश जवाब जो बहुत कुछ कह जाता था.

दरअसल आयशा और उनके पति समीर ने मिलकर एक फैसला लिया था कि वह कभी पेरेंट्स नहीं बनेंगे ना कोई मेडिकल मजबूरी ना कोई मजबूर हालात बस एक आत्मनिर्भर निर्णय मगर समाज कब चुप रहता है फुसफुसाहटें शुरू हो गई शायद वह मां बन नहीं सकती शायद कुछ दिक्कत है लेकिन आयशा ने एक इंटरव्यू में साफ-साफ कह दिया हमने फैसला किया है कि हम अपने प्यार को ही परिवार मानते हैं हमें किसी खून के रिश्ते की जरूरत नहीं जब दिल से रिश्ता इतना मजबूत है और यही नहीं उन्होंने सिर्फ सोच कर नहीं छोड़ा उन्होंने एक कदम उठाया गुजरात के दो गांव गोद लिए जहां के 160 बच्चों की पढ़ाई खाना और हर जरूरत की जिम्मेदारी उन्होंने अपने कंधों पर ले ली किसी को मां बनने के लिए कोख की जरूरत नहीं होती कभी-कभी सिर्फ एक दिल चाहिए होता है जो सबको अपना बना ले आज आयशा जुल्का फिल्मों से कैमरे से और रेड कारपेट से बहुत दूर हैं लेकिन जो काम वह कर रही हैं उसके आगे स्टारडम भी छोटा लगने लगता है उन्होंने ग्लैमर की दुनिया छोड़ी लेकिन जो दुनिया अपनाई उसमें वह हजारों चेहरों की उम्मीद बन गई वह आज 160 बच्चों की पढ़ाई खाना और पूरी जिंदगी की जिम्मेदारी संभाल रही हैं बिना किसी पोस्ट बिना किसी प्रमोशन साथ ही अपने पति समीर के साथ मिलकर एक कंस्ट्रक्शन कंपनी और एक स्पा चेन भी चला रही हैं बिल्कुल उसी प्रोफेशनल अंदाज में जैसे कभी सेट पर शॉट देती थी.

हां वह अब स्क्रीन पर नहीं दिखती चेहरे पर थोड़ी उम्र की परछाई है चाल में थोड़ा ठहराव है लेकिन जब वह मुस्कुराती हैं तो वही पुरानी मासूमियत लौट आती है वही सौम्यता जिसने उन्हें 90ज की सबसे सॉफ्ट क्लासिक हीरोइन बना दिया था बदला सिर्फ बाहर का रंग है अंदर से आज भी वही आयशा जुल्का है जो कभी चुपचाप दिलों पर राज कर गई थी भले ही आयशा जुल्का ने फिल्मों को अलविदा कह दिया हो लेकिन उनका असर आज भी वैसा ही जिंदा है जैसे किसी पुराने खत की खुशबू जो सालों बाद भी दिल को छू जाए जो जीता वही सिकंदर की अंजलि जो सादगी में भी मोहब्बत की मिसाल बन गई और खिलाड़ी की वह भोली सी नायिका जिसकी आंखों में भरोसा था और मुस्कान में सुकून आज भी हर उम्र के दर्शकों के दिलों में वैसी ही बसी हुई है वो गाने पहला नशा होठों पर बस तेरा नाम है और वो छोटे-छोटे एक्सप्रेशन जो कभी एक पीढ़ी का रोमांस थे आज भी YouTube पर ट्रेंड करते हैं कभी ऑस्ट्रेलिया रील्स में कभी ट्रिब्यूट वीडियो में तो कभी किसी कॉलेज के फंक्शन में उनकी झलक आज भी चमक जाती है वक्त बदला तकनीक बदली चेहरों की भीड़ बढ़ी पर कुछ चेहरे कभी नहीं मिटते क्योंकि वह सिर्फ पर्दे पर नहीं यादों में बस जाते हैं तो क्या आयशा जुल्का ने जिंदगी में बहुत कुछ खो दिया शायद हां कुछ बड़ी फिल्में जो हाथ से निकल गई कुछ रिश्ते जो अधूरे रह गई और कुछ सपने जो पर्दे पर ही टूट गई वह रोल जो उनका नाम और भी ऊंचा कर सकते थे वह प्यार जो उनका हमेशा साथ निभा सकता था और वह स्टारडम जो शायद और लंबा चल सकता था लेकिन क्या यह सब सच में हार है क्योंकि जो उन्होंने पाया वो शायद सबसे अनमोल है सारी चाहतों का मिट ना सकेगा फसाना सुकून जो आज के स्टार्स की चमकदमक में गुम है संतोष जो हर रात उन्हें चैन की नींद देता है और सबसे बड़ी बात आत्मसम्मान जो उन्होंने कभी किसी कॉम्प्रोमाइज के बदले नहीं छोड़ा.

आयशा जुल्का की जिंदगी को उसकी असल शक्ल में अपनाया शोहरत की भीड़ में नहीं शांति की छांव में जिया जब एक औरत अकेली होती है बिना बच्चों के बिना करियर के बिना किसी ग्लैमर की रोशनी के तो समाज सवालों की बौछार कर देता है क्यों नहीं बनी मां क्यों छोड़ा करियर क्यों आप पर्दे पर नहीं दिखती जैसे हर सवाल में एक तंज छुपा होता है मानो औरत का वजूद सिर्फ उसकी भूमिका से तय होता हो लेकिन आयशा जुल्का ने कभी इन सवालों को खुद पर हावी नहीं होने दिया उन्होंने कभी प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं की ना कोई इंटरव्यू दिया यह बताने के लिए कि मैं मां क्यों नहीं बनी क्योंकि वह जानती थी हर जवाब एक सफाई बन जाता है और सफाई वो देता है जिसे शक हो टूटा मेरा सारा भरम है मुझे बड़ा है आयशा को अपनी जिंदगी पर कोई कभी कोई शक नहीं रहा उन्होंने खुद को कभी समाज की नजरों से नहीं देखा वो सिर्फ वो बनी जो वह बनना चाहती थी एक ऐसी औरत जो जवाब नहीं देती बल्कि हर दिन अपनी जिंदगी से एक कहानी सुनाती है और यही उन्हें सबसे अलग बनाता है कई एक्ट्रेसेस आई कुछ फ्लैश की चमक में चमकी और फिर भीड़ में खो गई लेकिन आयशा जुल्का वो सिर्फ एक और चेहरा नहीं थी जो कैमरे के सामने आता है और चला जाता है उनकी खासियत यह थी कि वह फ्रेम को फिल नहीं करती थी वो उसे इल्यूमिनेट करती थी जैसे किसी सीन में रोशनी बढ़ा दी गई .

लेकिन बिना किसी लाइट के वो साइकिल के पीछे बैठी लड़की हो सकती थी जिसकी मुस्कुराहट पहली मोहब्बत की तरह मासूम होती थी या फिर वह साड़ी में झील किनारे खड़ी कोई मासूम जिसकी आंखों में तनहाई भी होती थी और उम्मीद भी उनका चेहरा नहीं रुकता था उनकी मौजूदगी रुक जाती थी क्योंकि वह कैमरे के लिए नहीं बनी थी वो यादों के लिए बनी थी जब आयशा जुल्का ने फिल्मों से धीरे-धीरे दूरी बनानी शुरू की तो उसमें कोई ड्रामा नहीं था ना कोई प्रेस कॉन्फ्रेंस हुई कि अब मैं एक्टिंग छोड़ रही हूं ना किसी शो में इमोशनल इंटरव्यू आया कि अब मेरी जिंदगी का नया फेस शुरू हो चुका है या हो रहा है उन्होंने बस एक दिन कैमरे की तरफ देखा हल्की सी मुस्कान दी और मानो बिना शब्दों के कह दिया थैंक यू और फिर चुपचाप बिना शोर किए पर्दे के उस पार चली गई जहां ना डायरेक्शन था ना मेकअप रूम बस एक सच्चा सादगी भरा जीवन था एक प्यारी सी जिंदगी थी वो किसी स्क्रिप्ट का क्लाइमेक्स नहीं था वह एक असली इंसान का सच में खुद से जुड़ जाना था लोगों ने आयशा जुल्का के अफेयर्स को लेकर हजारों कहानियां बनाई अक्षय कुमार के साथ उनके खिलते रिश्ते की चर्चा की अरमान कोहली के साथ उनके पागलपन जैसे इश्क की सुर्खियां थी मिथुन के साथ लिविन की अफवाहें और नाना पाटेकर के संग उनकी नजदीकियों पर हर अखबार ने हेडलाइन बनाई.

लेकिन यह सारी खबरें सिर्फ ऊपरी परत थी किसी ने यह नहीं जाना कि इन चमकदार अफवाहों के पीछे कितने अधूरे आई लव यू दफन थे [प्रशंसा] कितने वादे किए गए थे जो शूटिंग खत्म होते ही टूट गए और कितने जख्म ऐसे थे जो कभी दिखाई नहीं दिए क्योंकि आयशा उन्हें कैमरे की बजाय दिल के पीछे छुपा लेती थी वो कभी मीडिया के सामने रोई नहीं कभी किसी शो में बैठकर अपनी कहानी नहीं सुनाई क्योंकि उनके पास सफाई नहीं थी बस एक लंबी चुप्पी थी जिसमें हर रिश्ता सच्चा रिश्ता अधूरा रह गया था हर बार जब आयशा किसी इवेंट में कैमरे के सामने मुस्कुराती थी तो लोगों को लगता था वाह कितनी ग्रेसफुल लग रही हैं लेकिन कोई नहीं जानता था कि उस मुस्कान के पीछे शायद एक अधूरी कहानी सिसक रही होती थी एक ऐसा पन्ना जो कभी किसी डायरी में पूरा नहीं लिखा गया पर आयशा ने कभी उस दर्द को चिल्लाकर नहीं बताया ना किसी अवार्ड शो में आंसुओं के साथ कहा कि मेरे साथ यह हुआ ना किसी रियलिटी शो में अपने टूटे रिश्तों को भुनाया उन्होंने अपने हर जख्म को चुपचाप अपने स्टाइल का हिस्सा बना लिया जैसे कोई खूबसूरत साड़ी पहनती है वैसे ही उन्होंने अपने दर्द को पहना सजाया और फिर उसी मुस्कान के साथ दुनिया के सामने आई क्योंकि उनके लिए रियल स्ट्रेंथ यह थी कि वह टूटने के बाद भी बिखरी नहीं संवर गई शायद यही सबसे बड़ी बात है कि आयशा जुल्का को देखकर आज भी कभी नहीं लगता कि उनकी जिंदगी में कुछ अधूरा है वो इनकंप्लीट नहीं लगती वो इंडिपेंडेंट लगती हैं पूरी की पूरी अपने आप में मुकम्मल वो किसी की बीवी बनकर अपनी पहचान नहीं गिनती ना ही मां बनने की जरूरत को अपनी कंप्लीटनेस से जोड़ती हैं उनकी पहचान उनके रिश्तों से नहीं उनके फैसलों से है वो आयशा है एक ऐसा नाम जो किसी सरनेम की मोहताज नहीं वो हर सवाल का जवाब मुस्कुराहट में देती और हर सफर को खुद तय करती बिना सहारे बिना पछतावे उनका वजूद किसी रिश्ते के सहारे खड़ा नहीं है वह खुद एक मुकम्मल कहानी है आज भी जब कोई 90ज की रोमांटिक फिल्म देखता है खोलता है या देखना चाहता है तो जीत जो जीता वही सिकंदर खिलाड़ी बलमा तो वह अचानक खुद ब खुद उस दौर में लौट जाता है.

एक ऐसे वक्त में जहां मोहब्बत धीमी थी मुस्कानें सच्ची थी और गानों में आंखें भी बात करती थी और उन गानों में आयशा की आंखें सबसे अलग होती थी वो सिर्फ एक्टिंग नहीं कर रही होती थी वो महसूस करवा रही होती थी वो आंखें आज भी YouTube पर ट्रेंड करती हैं रील्स में इस्तेमाल होती हैं थ्रोबैक वीडियो में जान डाल देती हैं क्यों क्योंकि कुछ चीजें सिर्फ पर्दे पर नहीं टिकती वह वक्त के परे होती है जैसे उनकी मासूमियत वो मासूमियत जिसे कोई मेकअप कोई ट्रेंड कोई फैशन नहीं छू सका वो आज भी उतनी ही सच्ची लगती हैं जैसे पहली बार देखी हो कई सालों के बाद जब किसी इवेंट में आयशा जुल्का मंच पर आई तो उनसे पूछा गया कैसा लग रहा है इतने सालों बाद वापस आकर और उन्होंने बस मुस्कुराकर कहा आई एम एट पीस नाउ यह शब्द दिखावे के लिए नहीं थे ना ही कोई स्क्रिप्टेड जवाब था यह उन तमाम रातों का निचोड़ था जो उन्होंने चुपचाप यादों के साथ बिताई थी बिना कोई शोर किए उन्होंने करियर को नहीं छोड़ा था उन्होंने उस अतीत को माफ कर दिया था जिसने उन्हें कभी चोटी पर बिठाया और फिर एकदम खामोशी में छोड़ दिया उनकी आवाज में सुकून था क्योंकि उन्होंने नाम शोहरत रिश्ते सबके पीछे अपनी शांति को चुना और जब कोई इंसान सच में शांति से जी रहा हो तो उसका चेहरा कैमरे से पहले बता देता है कि अब उसे कुछ साबित करना है जब उनसे पूछा गया कभी बच्चे नहीं चाहे तो आयशा जुल्का ने वही शांत मुस्कान ओढ़ ली जो जवाबों से ज्यादा असरदार होती है फिर बड़े ही सधे लहजे में कहा मैं जिन बच्चों की पढ़ाई खाने और भविष्य की जिम्मेदारी ले रही हूं वह मेरे अपने नहीं तो क्या है यह जवाब नहीं था यह उन सवालों पर एक करारा तमाचा था जो एक औरत की पूरी कीमत उनकी कोख से तोलते हैं जैसे मां बनना ही उसका एकमात्र योगदान हो दुनिया के लिए लेकिन आयशा ने बता दिया कि मां बनना सिर्फ जन्म देने से नहीं होता मां बनना उन बच्चों की परवाह से होता है जिनके पास कोई नहीं है और वह परवाह उन्होंने बिना किसी प्रचार बिना किसी पहचान के निभाई यह जवाब उनकी आत्मनिर्भरता का आवाज थी जो ना तेज थी ना गुस्से में लेकिन इतना गहरा कि किसी सवाल को दोबारा उठने की हिम्मत ना हो बहुत कम लोग होते हैं जो उस वक्त रुकते हैं जब दुनिया उन्हें और ऊंचा उड़ता देखना चाहती है जब करियर पीक पर हो जब हर निर्माता निर्देशक उनके नाम पर फिल्में लिख रहा हो जब हर फ्लैश उन्हें कैद करना चाहता हो तो वहां से पीछे हटना छोड़ देना ठहर जाना यह आसान नहीं होता.

लेकिन आयशा जुल्का ने वही किया उन्होंने वो नहीं चुना जो चमकदार था उन्होंने वो चुना जो सच्चा था उन्होंने एक स्टार बनकर जीना नहीं चाहा उन्होंने एक इंसान बनकर जीना चुना और शायद यही वजह है कि आज भी जब उनके नाम का जिक्र होता है तो सिर्फ हिट फिल्मों की गिनती नहीं होती बल्कि उनकी इज्जत होती है वह सिर्फ एक्ट्रेस नहीं रही वो मोली की मिसाल बन गई सांवरे सांवरिया मेरे सांवरे सांवरिया आज जब पुराने पोस्टर्स को देखा जाता है जब 90ज के गाने बजते हैं जब कोई कहता है आज की हीरोइनों में वो बात नहीं तो कहीं ना कहीं आयशा जुल्का का नाम खुद ब खुद जुबान पर आ जाता है और फिर वही सवाल तैरता है आयशा कब वापसी करेंगी लेकिन यह सवाल खुद में अधूरा है क्योंकि क्या किसी को लौटने की जरूरत होती है जो कभी गया ही नहीं आयशा जुल्का ने पर्दा छोड़ा लेकिन यादें नहीं उन्होंने रोल्स छोड़े लेकिन असर नहीं उन्होंने कैमरे से दूरी बनाई लेकिन दिलों से नहीं वो हर उस मुस्कुराहट में हैं जो पहला नशा पर खिलती हैं हर उस आंख में हैं जो कभी साइकिल के पीछे बैठी हीरोइन से मोहब्बत कर बैठती हैं उनकी वापसी नहीं होगी क्योंकि वह कभी गई ही नहीं वह हर दौर में रहेंगी बस नाम नहीं एहसास बनकर जिंदगी की असली कहानी हमेशा स्क्रीन के बाहर चलती है वहां जहां ना रिटेक होता है ना डायरेक्टर की आवाज ना कोई स्क्रिप्ट और इस असली कहानी में आयशा जुल्का ने वह सब कुछ निभाया जो शायद किसी फिल्म में लिखा ही नहीं गया उन्होंने किसी रोल की तरह नहीं खुद को निभाया वो कभी किसी सीन की हीरोइन नहीं रही बल्कि हर हालात की नायिका बन गई जहां बाकी अदाकाराएं पर्दे पर मजबूत किरदार निभाकर तारीफ पाती रही.

आयशा ने अपनी असली मजबूती उस मंच पर दिखाई जहां कोई कैमरा नहीं था वो रोल जो कभी उन्हें ऑफर नहीं हुए वो चुनौतियां जो किसी स्क्रिप्ट में नहीं थी उन्होंने सब कुछ जिया और बिना तालियों के पार भी किया क्योंकि असली हीरोइन वो होती है जो रोशनी में नहीं अंधेरे में भी चमक जाए अगर आपको अब भी लगता है कि यह बस एक एक्ट्रेस की कहानी थी तो एक बार फिर से सोचिए क्योंकि यह कहानी पर्दे की नहीं थी यह कहानी थी उस लड़की की जो मोहब्बत में बार-बार टूटी करियर में बार-बार लड़ी और फिर भी जिंदगी में हर बार मुस्कुरा कर जीती वो ना किसी ट्रॉफी की मोहताज रही ना किसी कब वापसी करेंगी के सवाल की वह कभी रियल लाइफ क्वीन बनने की होड़ में नहीं थी क्योंकि वह पहले से ही एक रियल लाइफ वॉरियर थी और अगली बार जब आप वक्त हमारा है या जो जीता वही सिकंदर देखें तो आयशा को बस एक अदाकारा की तरह मत देखिए उन्हें एक एहसास की तरह महसूस कीजिए क्योंकि कुछ चेहरे सिर्फ कैमरे के लिए नहीं होते वह हमेशा के लिए बने होते हैं.

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