कहानी जुबिन गर्ग की जिनके लिए सड़क पर उतरे लाखो लोग।

असम जो नॉर्थ ईस्ट इंडिया का एक सूबा है। वहीं एक उग्रवादी संगठन है उल्फा। उसका मंसूबा रहा है असम को एक अलग देश बनाना। उल्फा के सख्त निर्देश थे कि कोई भी असम का कलाकार हिंदी या बांग्ला नहीं गाएगा। बांग्ला भाषा में नहीं गाएगा। अगर उन्हें परफॉर्म करना है तो सिर्फ असमिया में ही करना होगा। वरना नतीजे अच्छे नहीं होंगे। बहुत लोगों को उनके आगे घुटने टेकने पड़े।

मगर एक आदमी था दिल से बेखौफ और जुबान से तीखा। नाम जुबीन। जुबीन असमी के अलावा हिंदी और बांग्ला में भी गाते तो उन्हें उल्फा की तरफ से धमकियां मिलने लगी। वो बात अलग है कि जुबीन ने चरमपंथियों को घास तक नहीं डाली। उनका दो टूक जवाब था कि जो कर सकते हो कर लो। ऐसे थे जुबीन गर्ग, सिंगर, म्यूजिक डायरेक्टर, एक्टर और डायरेक्टर। उनकी और भी पहचान है। दिल से लेफ्टिस्ट चार्ली चैपलिन के भक्त डॉन कोरलियोनी के शिष्य और एक प्राउड असमी। 19 सितंबर को सिंगापुर में स्विमिंग करने के दौरान डूबने से जुबीन गर्ग की निधन हो गई। उनकी मौत से पूरा असम सदमे में चला गया।

लोगों ने अपनी मिट्टी के लाल की आखिरी झलक पाने के लिए सड़क जाम कर दी। कोई उनकी फोटो के सामने रो रहा है। कोई सड़क पर बेसुध हो गया। असम सरकार ने जानकारी दी कि लोग जुबीन के पार्थिव शरीर के दर्शन कर सकते हैं। उनके आखिरी दर्शन के लिए 15 लाख से ज्यादा लोग जमा हो गए। लेकिन लोग जुबीन के दीवाने थे क्यों? उनकी कहानी या अली गाने वाले सिंगर से बहुत बड़ी है। असम के इस रॉकस्टार को कुछ ही गानों के लिए याद रखा जाना बेईमानी होगा। आपको कुछ कहानियां बताते हैं जिससे पता चलेगा कि आखिर जुबीन थे कौन ? जुबीन है कौन?

जुबीन का नाम उनके माता-पिता ने म्यूजिशियन जुबिन मेहता के नाम पर रखा था। जुबीन के पिता मोहिनी मोहन बोर ठाकुर थे तो बैरिस्टर पर कविताएं भी लिखते थे। लेकिन अपने नाम से नहीं बल्कि एक अन्य नाम से। जुबीन की मां इली बोर ठाकुर एक सिंगर और डांसर थी। वो ही जुबीन की पहली गुरु बनी। मां ने शुरू में ही अपने बेटे के सुर भांप लिए थे।

उन्हें संगीत सिखाना शुरू कर दिया। जुबीन ने कभी भी गायकी में फॉर्मल ट्रेनिंग नहीं ली। हालांकि उन्होंने बचपन में करीब 11 सालों तक तबला और असमी लोकगीत जरूर सीखे। लोक संगीत सीखा। फिर आया साल 1992। इस साल एक यूथ फेस्टिवल में सोलो परफॉर्मेंस के लिए जुबीन ने गोल्ड मेडल जीता। लेकिन पिक्चर अब भी बाकी थी। इसी साल उन्होंने अपना डेब्यू असमी एल्बम अनामिका भी रिलीज किया। इस एल्बम ने उन्हें अपने करियर का पहला मेजर ब्रेक थ्रू दिलवाया। इसके बाद जुबीन ने लाइन से एल्बम उतारे और सभी को खूब पसंद किया गया।

हिंदी ऑडियंस भले ही जुबीन को चुनिंदा गानों से ही जानती हो लेकिन उन्होंने अपने करियर में 37,000 से ज्यादा गाने गाए। दिन भर सोने वाले जुबीन रात में ही अपने काम पर ज्यादा एक्टिव होते और इतना काम करते कि एक ही रात में 16 गाने रिकॉर्ड कर डाले। जुबीन सिर्फ असमिया या बांग्ला में ही नहीं गाना चाहते थे।

इसी सोच के साथ 1995 में मुंबई आ गए। यहां उन्होंने अपना पहला हिंदी एल्बम चांदनी रात रचा। जुबिन ने अगले कई सालों तक हिंदी सिनेमा में काम किया। वो बात अलग है कि उन्हें फिल्म के गाने या अली और प्यार के साइड इफेक्ट्स के गाने जाने क्या चाहे मन बावरा रे से सबसे ज्यादा पहचान मिली। उन्हें इस बात का मलाल भी रहा कि कांटे फिल्म का गाना जाने क्या होगा रामा रे। सुनने पर लोगों को उनका नाम ध्यान क्यों नहीं आता। हिंदी सिनेमा में अपने करियर के पीक पर जुबीन मुंबई छोड़ने का फैसला लेते हैं। वो वापस असम जाते हैं। वजह पूछी गई तो उनका जवाब था एक राजा को अपने राज्य में ही रहना चाहिए। अपनी बात बढ़ाते हुए जुबीन ने कहा कि उन्हें बॉलीवुड वालों का एटीट्यूड पसंद नहीं आया। इसलिए उन्होंने असम लौटना ही बेहतर समझा। जो लोग सिर्फ सिंगर जुबीन गर्ग को जानते हैं उनको बता दें कि उन्हें एक्टिंग में नेशनल अवार्ड मिल चुका है। साल 2000 में तुम मुर मथुमूर नाम की एक असमिया फिल्म रिलीज हुई। इस फिल्म में पहली बार जुबीन डायरेक्टर की कुर्सी पर बैठे। वो फिल्म में एक्टिंग भी कर रहे थे। जुबीन इससे पहले म्यूजिक वीडियोस में तो एक्टिंग कर ही रहे थे। लेकिन यह पहला मौका था जब उन्होंने फुल फ्लैजेड फिल्म की। इसके बाद उन्होंने मोनजाई नाम की फिल्म की। यह चार बेरोजगार लड़कों पर केंद्रित कहानी थी जिसे नेशनल अवार्ड से सम्मानित किया गया। जुबीन ने अपने एक्टिंग करियर में अलग-अलग रोल किए। म्यूजिक से जुबीन मार्शल आर्ट्स में भी ट्रेंड थे। वो किक बॉक्सिंग किया करते थे। यह कला वो अपनी फिल्मों में भी लाए। अपनी फिल्मों में जहां भी एक्शन या स्टंट की गुंजाइश होती तो जुबीन खुद ही उसे परफॉर्म करते। अपने जुबीन दा को याद करने के लिए लोगों ने पूरा राज्य बंद करवा दिया। लाखों का हुजूम रोता बिलखता सड़कों पर उतर आया। मूल रूप से हिंदी पट्टी में रचे बसे आदमी के ज़हन में ख्याल आ सकता है कि इस दिन में कलाकार पहले भी हुए।

फिर जुबीन में ऐसा क्या खास था? एक लाइन में इसका जवाब यह है कि जुबीन हर सेंस में उस मिट्टी के लाल थे। जोरहाट में पैदा हुए जुबीन कम उम्र में ही गुवाहाटी आ गए थे। उनके साथ बस दो ही अमानतें थी। एक साइकिल और उनका एक कीबोर्ड जो प्ले करने वाला म्यूजिक इंस्ट्रूमेंट होता है। टाइपिंग वाला नहीं। इस कहानी को असम में किसी लोकथा की तरह सुनाया जाता है कि कैसे साइकिल पर सवार उस लड़के ने पूरे देश में अपना नाम रोशन किया। हालांकि जुबीन को सिर्फ इसी वजह से वहां इतना प्यार नहीं मिलता उन्हें जितना अपनी मिट्टी से मिला वो हमेशा उसके आभारी रहे। जितना मिला उससे कहीं ज्यादा लौटाने की कोशिश की। वहां के कलाकारों और खिलाड़ियों की आर्थिक और हर संभव मदद की। जब असम बाढ़ से लड़ रहा था तब जुबीन जमीन पर उतर कर लोगों के बीच आए। मोर्चा संभाला और मदद पहुंचाई।

खुद फुटबॉल मैच खेले ताकि चैरिटी से आने वाले पैसे से लोगों का भला हो सके। जब राज्य में एनटीसीएए प्रोटेस्ट हुए तब जुबीन उसकी सबसे मुखर आवाज में से एक बने। लोगों की बात को बड़े स्टेज तक लेकर गए। कोविड पेंडेमिक में जब व्यवस्था लचर हो रही थी तब उन्होंने अपने घर के दरवाजे खोल दिए। अपने दो मंजिला घर को पूरी तरह से कोविड केयर सेंटर में तब्दील कर दिया। आज असम जुबीन के ऐसे ही योगदानों को याद कर रहा है। वो याद कर रहा है उनके गाने माया बिनी को नम आंखों के साथ उसे गुनगुना रहा है।

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