कभी-कभी किसी का आत्मकथन उतना रहस्यमय, रोमांचक और बोल्ड नहीं होता। तो क्या आप उनका जीवन जानने की कोशिश नहीं करेंगे? कुछ लोगों का चरित्र बड़ा साफ और सरल होता है। खलबली मच जाए उतना उनका जीवन सनसनीखेच भी नहीं होता। लेकिन चंद्रकांत गोखले जैसे भी लोग इस दुनिया में होते हैं जिसके लिए अगर हम कहें कि आप क्या इन्हें पहचानते हैं तो शायद यह नाम आपके लिए बिल्कुल अनजान होगा।
हां, इनकी तस्वीर देखकर आपको कुछ फिल्मों के नाम जरूर याद आ गए होंगे। 1996 में अनिल कपूर की सुपरहिट फिल्म लोफर रिलीज हुई थी। इस फिल्म में एक व्यक्ति अकेला घर से बाहर निकलकर वोट डालने जाता है। पूरे गांव को डराधमकाने वाले गुंडों ने पूरा रास्ता बंद किया होता है। ऐसे में जब वो बूढ़ा आदमी उस रास्ते से गुजरने लगता है तो गुंडे उन्हें रोकते नहीं बल्कि उनका मजाक उड़ाने लगते हैं। अरे तेरा एक वोट हमारे साहब को नहीं मिलेगा तो क्या वह हार जाएगा?
जा वोट देकर आ। इसके बाद पूरा का पूरा गांव प्रभावित हो जाता है और गांव वाले झुंड में निकलकर वोट देने जाते हैं और वे गुंडे उन्हें रोक भी नहीं पाते। इस फिल्म में उनका किरदार छोटा जरूर था लेकिन उन्हें छोटा कलाकार समझने की गलती बिल्कुल मत करना। मराठी रंगभूमि में उनके योगदान को आज भी याद किया जाता है। उन्हीं के बेटे को तो आपने कई बड़े-बड़े सुपरहिट फिल्म में अभिनय करते हुए देखा होगा। क्या यह बात आपको पता है? विक्रम गोखले असल में चंद्रकांत गोखले के ही बेटे हैं? नहीं ना? इसलिए इस वीडियो को अभी लाइक करिए और हिंदी रेडियो को सब्सक्राइब करिए। आप हमें Instagram और Facebook पर देख सकते हैं।
अधिक जानकारी के लिए डिस्क्रिप्शन बॉक्स में दिए गए लिंक पर क्लिक करिए। लेकिन चंद्रकांत गोखले की पहचान सिर्फ उनके बेटे से बिल्कुल नहीं की जा सकती। शायद ही यह बात कोई जानता होगा कि चंद्रकांत गोखले की माताजी कमलाबाई गोखले भारत के सिनेमा इतिहास की पहली महिला अभिनेत्री थी। जी हां दोस्तों, दादासाहेब फाल्के की पहली फिल्म राजा हरिश्चंद्र की सफलता के बाद उन्हें एहसास हुआ कि महिला का किरदार किसी स्त्री को ही निभाना चाहिए। उसके बाद खोज शुरू हुई भारत की पहली अभिनेत्री की। बहुत सारे स्टेज कलाकारों ने फिल्मों में काम करने के लिए इंकार किया। दादा साहब नाच गाने वाले कोठियों में भी जाकर आए। लेकिन वहां की महिलाओं ने भी इस काम को देह व्यापार से भी नीचा समझा।
ऐसे में किलोस्कर नाटक कंपनी में काम करने वाली एक महिला ने विचार किया और दादा साहब की फिल्म मोहिनी भस्मासुर में काम करने के लिए राजी हो गई। उस महिला का नाम था दुर्गाबाई कामत। लेकिन दादा साहब को तो दो महिला कलाकारों की जरूरत थी। उम्र के हिसाब से उन्हें पार्वती का किरदार मिला। ऐसे में फिर सवाल खड़ा हुआ कि मोहिनी का किरदार कौन करेगा? इस साधारण समस्या पर हल निकालते हुए दुर्गाबाई ने अपनी 15 साल की बेटी को आगे कर दिया। जो बन गई सिनेमा इतिहास की पहली अभिनेत्री। उनका नाम था कमलाबाई कामत। जिन्होंने आगे चलकर एक अन्य सह कलाकार रघुनाथ राव गोखले से शादी कर ली। इस शादी से जन्मे चंद्रकांत गोखले। उसके बाद और दो बच्चों का जन्म हुआ। लालजी गोखले और सूर्यकांत गोखले। कमलाबाई की मां दुर्गाबाई कामत को भारतीय सिनेमा की पहली महिला अभिनेत्री होने का सम्मान मिला। उन्हें सबसे पहले कास्ट किया गया।
लेकिन लीड किरदार निभाने वाली उनकी बेटी कमलाबाई अभिनेत्री बनी। कमलाबाई सिर्फ 13 या 14 साल की थी। जब उन्होंने 1913 में दादा साहेब फाल्के की फिल्म मोहिनी भस्मासुर में मोहिनी का किरदार निभाया। उस दौर में अभिनेत्रियों को इज्जत की नजरों से नहीं देखा जाता था। दुर्गाबाई के पिता जो मुंबई के सर जे जे स्कूल ऑफ आर्ट में इतिहास के प्रोफेसर थे, उनसे अलग होने के बाद उनके सामने अभिनय के अलावा कोई और रास्ता नहीं बचा। इसलिए जब दुर्गाबाई ने चित्ताकर्षक नाटक मंडली में काम करना शुरू किया तो ब्राह्मण समाज ने उन्हें समाज से बाहर कर दिया। छोटी कमलाबाई का बचपन इसी विवादों से भरे कला और संघर्ष के माहौल में गुजरा।
कमलाबाई ने अपनी मां से ही संगीत, गायन और वाद्य यंत्रों की शिक्षा ली क्योंकि लगातार सफर में रहने की वजह से वह कभी स्कूल जा नहीं पाई। उनकी पहली स्टेज एंट्री तो बस 4 साल की उम्र में हुई और जब उन्हें फिल्मों का ऑफर मिला तब तक वह रंगमंच की दुनिया की एक जानीमानी कलाकार बन चुकी थी। उनकी शादी रघुनाथ गोखले से हुई जो किलोस्कर नाटक कंपनी में स्त्री भूमिकाएं करते थे। लेकिन आवाज बदलने के बाद वह उसी कंपनी में आ गए जहां कमला भाई और उनकी मां काम करती थी। यह युवा जोड़ा जल्द ही कंपनी का नया लीड पेयर बन गया और महाराष्ट्र के गांव-गांव में शेक्सपियर के नाटकों के मराठी रूपांतरण से लेकर पौराणिक कथाओं पर आधारित नाटकों तक हर तरह के काम से दर्शकों के बीच मशहूर हो गया।
लेकिन इस कला प्रेमी से भरे परिवार पर सन 1928 में बड़ा दुख आया। चंद्रकांत गोखले के पिता रघुनाथ राव गोखले मंच पर अभिनय करते-करते अचानक गिर गए और उनकी मृत्यु हो गई। इस त्रासदी के वक्त कमलाबाई की उम्र सिर्फ 25 साल थी और वह अपने तीसरे बच्चे के साथ गर्भवती थी। वो अचानक अपने तीनों बेटों लालजी, चंद्रकांत और सूर्यकांत को पालने और अपनी मां और देवर की देखभाल करने वाली घर की एकमात्र कमाने वाली बन गई। इस भयानक गरीबी और सामाजिक दबाव के बावजूद कमलाबाई ने हार नहीं मानी। उन्होंने अपने पति की जगह नाटक में पुरुष लीड की भूमिकाएं निभाई ताकि शो कैंसिल ना हो। उस जमाने में एक अकेली महिला के लिए आजादी से घूमना और काम करना लगभग नामुमकिन था। उन्हें समाज में इज्जत भी नहीं मिलती थी। लेकिन अपने बच्चों के लिए उन्होंने मनोहर स्त्री संगीत नाटक मंडल और सोहरा मोदी की थिएटर यूनिट जैसे अलग-अलग कंपनियों के साथ काम किया। उन्होंने मराठी के अलावा एक कन्नड़ नाटक लंका दहन में भी काम किया जिसकी भाषा उन्हें नहीं आती थी। पर उन्होंने एक सप्ताह के भीतर लाइनों को रटकर प्ले को हिट बना दिया। कमलाबाई ने 1930 के दशक में विनायक दामोदर सावरकर के नाटक उष्प में भी काम किया। जो हरिजन समाज की पीड़ा पर आधारित है।
इस काम के लिए उन्हें पुलिस सुरक्षा के बीच रिहर्सल करनी पड़ी और हर बार स्थानीय ब्रिटिश अधिकारी से नाटक की स्क्रिप्ट पास करानी होती थी ताकि कुछ भी आपत्तिजनक ना हो। इन्हीं संघर्षों के बीच चंद्रकांत रघुनाथ गोखले का जन्म 7 जनवरी 1921 को मिरर सांगली संस्थान में हुआ। अभिनय और गायन की पहली शिक्षा उन्हें विरासत में अपनी मां कमलाबाई से मिली। चंद्रकांत गोखले ने महज 9 साल की उम्र में मराठी नाटक पुनः हिंदू से अपने लंबे करियर की शुरुआत की। उन्होंने अपने जीवन के सात दशक से भी ज्यादा समय तक रंगमंच और सिनेमा को दिया। उन्होंने 64 से भी ज्यादा नाटकों, 68 मराठी फिल्मों और 16 हिंदी फिल्मों में काम किया। उनके करियर की पहचान केवल संख्या से नहीं बल्कि गुणवत्ता से होती है। उनके मशहूर मराठी नाटकों में भाव बंधन, राज सन्यास, पुण्य प्रभाव, बेबशाही, राजे मास्टर, बैरिस्टर और खासकर पुरुष जैसे नाटक शामिल है। जिसे उन्होंने हिंदी और मराठी दोनों में विजया मेहता के साथ किया। मराठी फिल्मों में ढाकटी जाओ जैसे सुपरहिट फिल्में दी वहीं हिंदी में लव एंड मर्डर और वजूद जैसी फिल्मों में भी नजर आए। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि चंद्रकांत गोखले एक बेहतरीन अभिनेता होने के साथ-साथ प्रशिक्षित शास्त्रीय गायक भी थे। उन्होंने ख्याल गायकी की शिक्षा ली और उन्होंने जीडी माट गुलकर लिखित और सुधीर फड़के द्वारा संगीतबद्ध किए गए प्रसिद्ध गीत रामायण के 10वें गीत चला राघव चला को अपनी आवाज दी। चंद्रकांत गोखले तीन भाई थे और तीनों ने कला के अलग-अलग क्षेत्र में अपना नाम कमाया। एक तरफ लालजी गोखले उर्फ मधुसूदन तबला वादन में पारंगत थे तो दूसरी तरफ सबसे छोटे भाई सूर्यकांत गोखले उर्फ छोटू गोखले संगीत जगत में छाए। छोटू गोखले ने उस्ताद अहमद जान थिरकवा खान जैसे दिग्गज तबला वादक से शिक्षा ली। जिन्हें तबला वादक का माउंट एवरेस्ट कहा जाता है। सूर्यकांत गोखले का निधन समय से पहले हो गया। लेकिन उनके सम्मान में पुणे विश्वविद्यालय में स्वर्गीय सूर्यकांत छोटू गोखले गोल्ड मेडल की स्थापना की है। कमलाबाई गोखले ने चंद्रकांत गोखले को अभिनय का जो वारसा दिया उन्हें चंद्रकांत जी ने अपने बेटे विक्रम गोखले तक पहुंचाया। यानी दुर्गाबाई कामत से शुरू होकर विक्रम गोखले तक यह चार पीढ़ियों का कलात्मक सफर है। अपनी लंबी जिंदगी में उन्होंने मास्टर दीनाना मंगेशकर, मास्टर अविनाश, चिंतामरण राव कोलहटकर और बाबूराव पेंडारकर जैसे बड़े गुरुओं से सीखा। उन्होंने हमेशा रंगमंच के पुराने पंचपदी स्कूल ऑफ एक्टिंग को महत्व दिया जो आधुनिक स्टनिस्सलावस्की की तकनीक से बहुत मिलताजुलता है। उनकी पत्नी हेमावती भी उनके संघर्ष में उनके साथ रही जिसके चलते चंद्रकांत जी ने अपने जीवनी चंद्रीकरण को अपनी पत्नी और मां की याद में समर्पित किया। यह जीवनी पत्रकार शशिकांत किणीकरण ने लिखी है। जिसे अभिनेत्री विजया मेहता ने रिलीज किया। चंद्रकांत गोखले जी की सादगी का आलम यह था कि उनके पड़ोसियों के लिए भी वह एक साधारण जमीन से जुड़े इंसान थे। 90 साल की उम्र में भी वह अपनी सोसाइटी के गणेश उत्सव में परफॉर्म करते थे।
अभिनेता मोहन जोशी जैसे लोग कहते थे, कि उनसे बहुत कुछ सीखा है। वो इतने बड़े कलाकार होते हुए भी नियमित रूप से दिव्यांग सैनिकों के लिए दान भी देते थे। उनके बेटे विक्रम गोखले ने भी कहा कि उनके पिता ने उन्हें एक आदर्श पिता, अच्छे नागरिक और सामाजिक कार्यकर्ता की तरह पाला जो हर किरदार की जड़ तक जाने की कोशिश करते थे। यह ध्यान देने वाली बात है कि हिंदी धारावाहिक मिस्टर योगी से घर-घर में पहचान बनाने वाले महान कलाकार मोहन गोखले को भी लोग अक्सर विक्रम गोखले का भाई समझते हैं। लेकिन उनका इस चंद्रकांत गोखले के परिवार से कोई संबंध नहीं है।
लंबी बीमारी से जूझने के बाद चंद्रकांत रघुनाथ गोखले का निधन 20 जून 2008 को पुणे में 87 वर्ष की उम्र में के कारण हो गया। उन्होंने अपनी सादगी, संघर्ष और शानदार कलात्मक योगदान के जरिए एक ऐसी अमूल्य विरासत छोड़ दी जिसकी कहानी चंद्र किरण की तरह हमेशा चमकती रहेगी। ओम ओम
