अब बॉस ने ऑफिस के बाद फोन, मैसेज किया तो..जानिए क्या है राइट टु डिस्कनेक्ट बिल?

काम के घंटे खत्म हो जाते हैं लेकिन दिमाग में एक सवाल अटका रहता है यार इस मेल का रिप्लाई अभी करूं या कल सुबह और मेल अभी नहीं भेजा तो फिर अगली चिंता मन में रहती है कि कहीं मैनेजर छुट्टी के दिन या फिर ऑफ ड्यूटी आवर में कॉल ना लगा दे फोन की घंटी बजी और मूड खराब सभी ने कभी ना कभी यह महसूस किया है कि वर्किंग आवर खत्म होने के बाद भी काम पीछा नहीं छोड़ता और अब इसी चिंता को ध्यान में रखते हुए लोकसभा में एक बिल पेश किया गया है जिससे आपकी यह चिंता दूर हो जाए बिल का नाम है राइट टू डिस्कनेक्ट बिल 2025।

इसे संसद में पेश किया है एनसीपी शरद पवार गुट की सांसद सुप्रिया सुले ने। बिल में एंप्लाइज वेलफेयर अथॉरिटी बनाने का प्रस्ताव रखा गया है। सबसे अहम बात इस बिल में हर कर्मचारी को यह अधिकार दिया गया है कि वह ऑफिस टाइम के बाहर छुट्टियों में या निजी समय में काम से जुड़े कॉल या ईमेल का जवाब देने से इंकार कर सकते हैं। यानी अगर ऑफिस टाइम खत्म हो गया है तो फोन की रिंगटोन आपकी निजी जिंदगी में खल और कॉल आपके प्राइवेट टाइम में दखल नहीं दे पाएंगे।

कम से कम ऑन पेपर तो यही है। हालांकि यहां यह एक और बात भी समझनी जरूरी है कि यह एक प्राइवेट मेंबर बिल है। नाम से आप समझ ही गए होंगे कि यह सरकार की ओर से पेश नहीं किया जाता। आसान शब्दों में बताएं तो ऐसा विधेयक जिसे सरकार के किसी मंत्री ने सदन में ना रखा हो उसे प्राइवेट मेंबर बिल कहते हैं।

लोकसभा और राज्यसभा दोनों के ही सदस्य ऐसे बिल ला सकते हैं जिन्हें वह जरूरी मानते हैं। लेकिन इसका असर क्या होता है? बिल इंट्रोड्यूस करने के बाद उस पर सरकार जवाब देती है, चर्चा होती है और फिर यह बिल अमूमन वापस ले लिया जाता है। यानी कुल मिलाकर यह बिल सिर्फ एक मैसेज देने के लिए ही पेश किए जाते हैं। इसलिए अमेरिकी कांग्रेस में इसका नाम मैसेजिंग बिल होता है। प्राइवेट मेंबर बिल का एक नाम। यह एक उम्दा तरीका है किसी जरूरी मुद्दे पर चर्चा की शुरुआत करने का। इसलिए इसमें क्या-क्या कहा गया है?

यानी जिस बिल की हम बात कर रहे हैं उसमें वो भी जानना ही अहम हो जाता है। तो सांसद सुप्रिया सूले के इस बिल में यह साफ तौर पर कहा गया है कि कर्मचारी अपनी सुविधा के मुताबिक काम के बाद आने वाले मैसेज या कॉल्स को डिक्लाइन यानी अस्वीकार कर सकते हैं।

इससे जुड़े नियम, शिकायतों का निपटारा और अधिकारों की निगरानी एक विशेष अथॉरिटी करेगी। उन सबको मॉनिटर करने का काम करेगी। इन पॉइंट्स के साथ यह बिल संसद के शीतकालीन सत्र में 5 दिसंबर को पेश किया गया। इसी की तरह पार्लियामेंट में उसी दिन पांच और प्राइवेट मेंबर बिल्स भी पेश किए गए। यह बिल्स थे मेंुअल बेनिफिट्स बिल। यह बिल वर्क प्लेस पर महिलाओं के लिए के दौरान बेहतर सुविधाएं, आराम और सपोर्ट देने के लिए है। इसे कांग्रेस सांसद कड़ियाम काव्या ने संसद में पेश किया। पेड में लीव बिल। एलजेपी सांसद शंभवी चौधरी का लाया यह प्रस्ताव ना सिर्फ कामकाजी महिलाओं बल्कि महिला छात्रों तक को पेड में लीव देने की बात करता है।

तीसरा बिल है नीट छूट का प्रस्ताव। कांग्रेस सांसद मणिकम टैगोर ने यह बिल पेश किया है जिसके तहत तमिलनाडु को नीट से छूट देने का प्रस्ताव रखा गया। नीट आप जानते ही हैं मेडिकल की जो पढ़ाई है उसमें दाखिला लेने के लिए एग्जाम होता है। यह मुद्दा कुछ हफ्ते पहले से ही सुर्खियों में है जब राष्ट्रपति ने तमिलनाडु सरकार के नीट एक्सेंपशन बिल को मंजूरी देने से इंकार कर दिया था।

जिसके बाद तमिलनाडु सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची। चौथा बिल सजा-ए-मौत खत्म करने का प्रस्ताव। भारत में को समाप्त करने के लिए डीएमके सांसद कनी मोझी करुणानिधि यह बिल सदन में लेकर आई हैं। पांचवा बिल जर्नलिस्ट प्रोटेक्शन बिल। इस बिल में पत्रकारों पर होने वाली हिंसा रोकने और पत्रकारों की सुरक्षा बढ़ाने के लिए एक कानूनी ढांचा बनाने का प्रस्ताव रखा गया है।

बिल को संसद में रखा है इंडिपेंडेंट सांसद विशाल दादा प्रकाश बापू पाटिल नेक्योंकि इनमें से ज्यादातर बिल्स विपक्षी पार्टियों के सांसदों ने पेश किए हैं जिनके पास संसद में संख्या बल नहीं है

। इसलिए अभी इन विधेयकों के पास होने की संभावना कम ही है। लेकिन बहस शुरू होना भी लोकतंत्र में एक अहम कदम है। किस मुद्दे पर सरकार आगे बढ़ती है और कौन सा प्रस्ताव सिर्फ चर्चा तक सीमित रह जाता है यह आने वाले दिनों में पता चलेगा।

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