हाल ही में एक ऐसी फिल्म का ट्रेलर ल्च हुआ जिस फिल्म को करने के लिए वरुण धवन मरे जा रहे थे। जिस फिल्म में अपने नाती को देख सुपरस्टार अमिताभ बच्चन का सीना गर्व से फूल गया और जिस फिल्म से अक्षय कुमार अपनी भांजी सिमर भाटिया को लॉन्च कर रहे हैं। अक्षय कुमार चाहते तो सिमर के लिए कोई भी फिल्म प्रोड्यूस कर सकते थे लेकिन उन्होंने इसी फिल्म को चुना।
यह फिल्म है 21। आखिर इस फिल्म में खास बात क्या है? तो आपको बताते हैं कि जिस बॉलीवुड पर आरोप लग रहे हैं कि बॉलीवुड के पास कंटेंट नहीं है। बॉलीवुड के पास ओरिजिनल कहानियां नहीं है। यह तो रीमेक्सऔर कॉपी करने पर ही अटका हुआ है। उस बॉलीवुड में जब ऐसी कोई कहानी आती है तो उसकी चर्चा सभी तरफ होती है। यह कहानी है परमवीर चक्र से सम्मानित सेकंड लेफ्टिनेंट शहीद अरुण खेत्रपाल की।
जिन्होंने 21 साल की उम्र में जांबाज तरीके से 1971 का पाकिस्तान लड़ाई लड़ा और पाकिस्तान को मजबूर कर दिया घुटने टेकने पर। सेकंड लेफ्टिनेंट शहीद अरुण खेत्रपाल ने जिस वक्त यह लड़ाई लड़ी तब उनकी उम्र महज 21 साल की थी। यही वजह है कि इस फिल्म का नाम भी 21 रखा गया है। खैर, इस वीडियो में हम फिल्म की नहीं बल्कि अरुण खेत्रपाल की जिंदगी के बारे में ही बात करेंगे। कब जोअरुण खेत्रपाल आईआईटी में जाने वाले थे वो डिफेंस में चले गए। क्यों? अरुण खेत्रपाल के कमांडिंग ऑफिसर ने उन्हें इतनी यंग एज में जिस वक्त वो ऑफिसर्स कोर्स के लिए जा रहे थे उनकी ट्रेनिंग भी कंप्लीट नहीं हुई थी तभी युद्ध फील्ड में भेज दिया। और कैसे सेकंड लेफ्टिनेंट शहीद अरुण खेत्रपाल को वाले पाकिस्तानी ब्रिगेडियर ने बाद में मांगी माफी।सेकंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल की अगर बात करें तो देशभक्ति उनकी रगों में थी क्योंकि उनके ग्रेट ग्रैंडफादर, उनके ग्रैंडफादर और उनके पिता सभी आर्मी में ही पोस्टेड थे। तो देशभक्ति के लिए जिंदगी कोकैसे समर्पित किया जाता है वो तो उन्होंने बचपन से ही देखा। अरुण खेत्रपाल वैसे तो पंजाबी हिंदू फैमिली से बिलोंग करते थे।
लेकिन उनके पापा क्योंकि आर्मी में थे इसीलिए अलग-अलग जगहों पर उनकी अपब्रिंगिंग हुई है। 14th अक्टूबर 1950 को वो जन्मे। बचपन उनका महाराष्ट्र के पुणे में बीता। इसके बाद जैसे-जैसे पापा के ट्रांसफर्स होते रहे अरुण क्षेत्रपाल उन जगहों पर शिफ्ट होते चले गए। लेकिन उनकी ज्यादातर पढ़ाई जो है वह दिल्ली से हुई है। सन कोलंबिया से उन्होंने पढ़ाई की है। इसके अलावा कुछ समय द लॉरेंस स्कूल में भी वहरहे हैं।
अरुण खेत्रपाल पढ़ाई के बाद आईआईटी की तैयारी कर रहे थे और डिफेंस की भी तैयारी कर रहे थे। दोनों के एंट्रेंस टेस्ट उन्होंने दे दिए थे। हुआ यह कि आईआईटी के लिए वह सिलेक्ट नहीं हुए और डिफेंस में उनका सिलेक्शन हो गया। यही वजह है कि वह डिफेंस में चले गए। ईयर 1967 में अरुण खेत्रपाल ने डिफेंस के लिए अपनी पढ़ाई शुरू कर दी। जिस वक्त अरुण क्षेत्रपाल अपनी पढ़ाई कर रहे थे, तभी ईयर 1971 में उन्हें खबर लगती है कि पाकिस्तान की तरफ से इंडिया के लिए युद्ध के बादल मंडरा रहे हैं और जल्द ही सेना की कई टुकड़ियों को बॉर्डर पर भेजा जाएगा फाइटकरने के लिए।
अरुण क्षेत्रपाल अपने आप को रोक नहीं पा रहे थे। वह उस वक्त ट्रेनिंग ले रहे थे और आगे ऑफिसर्स की ट्रेनिंग के लिए उन्हें भेजा जा रहा था। लेकिन तभी अरुण खेत्रपाल ने अपने कमांडिंग ऑफिसर लेफ्टिनेंट जनरल हनुज सिंह राठौर से मुलाकात की और उनसे रिक्वेस्ट की कि सर यह पहला और आखिरी मौका है और अभी मैं युद्ध में नहीं जा पाया तो मुझे बहुत दुख होगा। द रेजमेंट इज गोइंग टू गो। दिस इज द अपोरर्चुनिटी ऑफ़ लाइफ टाइम। इफ आई मिस आउट नाउ आई मे नेवर सी एक्शन अगेन इन माय लाइफ। प्लीज टेक मी ऑफ द यंग ऑफिसर्स कॉज़। अरुणखेत्रपाल के कमांडिंग ऑफिसर उन्हें ऐसे ही युद्ध में नहीं भेज सकते थे क्योंकि अरुण खेत्रपाल की अभी कॉलेज में ही पढ़ाई हुई थी और फील्ड की ट्रेनिंग अभी पूरी नहीं हुई थी। ऐसे में कम ट्रेनिंग के साथ उन्हें फील्ड पर भेजना रिस्की था। लेकिन अरुण खेत्रपाल की आंखों में जब उन्होंने आंसू देखे और उनके इमोशंस देखे तब उनके कमांडिंग ऑफिसर भी पिघल गए और उन्होंने एक शर्त रख दी कि तुम्हें टेस्ट देना होगा और यह टेस्ट पास करोगे तभी मैं तुम्हें फील्ड पर भेजूंगा। आई विल टेस्ट यू पर्सनली एट द एंड ऑफ़ दिस कॉज़ एंड आई शुड गिव यू कमांडऑफ़ अ ट्रूप ओनली इफ आई थिंक यू आर फिट इनफ टू डू देयर। अरुण खेत्रपाल ने वो टेस्ट दिया। उनके कमांडिंग ऑफिसर लेफ्टिनेंट जनरल हनुज सिंह राठौर उनकी परफॉर्मेंस से इंप्रेस हुए और उन्होंने उसके बाद ऑर्डर दे दिया कि तुम भी युद्ध में जाओ।
अरुण खेत्रपाल इस खबर से खुश थे कि फाइनली देश के लिए काम आने का मौका आ चुका है। लेकिन यह खबर वो अपने परिवार वालों को भी देना चाहते थे। यही वजह है कि वो अहमदनगर से दिल्ली पहुंचे। वहां पर अपने परिवार के साथ डिनर किया। डिनर टेबल पर ही उन्होंने पूरे परिवार को खबर दी कि वह युद्ध के लिए जा रहे हैं। तबअरुणपाल की मदद ने उनसे एक बात कही थी। शेर की तरह लड़ना अरुण कायर की तरह वापस मत आना। अरुण के दिलो दिमाग में मां की यह बात बैठ गई थी। हौसला उनमें ऑलरेडी था और उस हौसले को विश्वास का रूप उनकी मदर ने दे दिया था। अपने परिवार के साथ डिनर खत्म करने के बाद अरुण खेत्रपाल निकल गए बसंतर के लिए जहां पर यह वॉर हो रहा था और बसंतर में शकरगढ़ जो रीजन था वो अरुण खेत्रपाल और उनकी टीम को दिया गया था। अरुण खेत्रपाल टैंक में थे। पाकिस्तान की तरफ से यह टैंक का सबसे बड़ा हमला था। पाकिस्तानियों के पास हाईटेक टैंक्स थे औरवह बहुत बड़ी तादाद में थे। इंडिया के पास उतने टैंक्स भी नहीं थे और ना ही उतने सोल्जर्स थे। लेकिन इन सभी सोल्जर्स का हौसला पाकिस्तान को डराने के लिए काफी था। और बात करें सेकंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल की तो वो अपनी आखिरी सांस तक लड़े। कहते हैं कि 16 दिसंबर 1971 जब यह वॉर लड़ा गया उस दिन अरुणपाल ने चार पाकिस्तानी टैंक खत्म किए। और जब आखिरी टैंक खत्म करने की बात आई तब तक अरुण क्षेत्रपाल के टैंक में आग लग गई थी। कमांडिंग ऑफिसर हज सिंह राठौड़ को जब यह बात पता चली कि अरुण क्षेत्रपाल के टैंक में आग लग गई है तो उन्होंने अरुणक्षेत्रपाल को कहा कि टैंक छोड़कर तुम वापस लौट आओ। लेकिन अरुण खेत्रपाल ने अपने ऑफिसर को जवाब देते हुए कहा, नहीं सर मैं अपना टैंक खाली नहीं करूंगा। तक काम कर रही है। मैं इन सभी को पकड़ कर ही रहूंगा। इस सिचुएशन में भी अरुण खेत्रपाल के इस डडीिकेशन के आगे उनके कमांडिंग ऑफिसर हनुज सिंह राठौर भी कुछ नहीं बोल पाए। जब अरुण केत्रपाल बुरी तरह जख्मी हो गए। टैंक में मौजूद उनके ड्राइवर्स ने उनके निकालने की भी कोशिश की। लेकिन वो उसी टैंक में फंस गए। यह टैंक जलकर राख हो गया और उसी के साथ अरुण खेत्रपाल भी शहीद हो गए। लेकिन उस रात पाकिस्तान इंडियन सोल्जर्स के इस डेडिकेशंस से डर गया और वो अपने बचे खुचे टैंक्स लेकर वापस लौट गया। हम लड़ाई जीत चुके थे।
माहौल तो जश्न का था। लेकिन सभी की आंखें नम थी क्योंकि हमने एक 21 साल के ऑफिसर को खो दिया था। जिसने अपनी जिंदगी की शुरुआत की ही थी, वो इस दुनिया से चलगया था और एक इतनी बड़ी जीत इंडिया को देकर गया जिस पर हर एक इंडियन को आज भी फक्र होता है। वेल, अरुणपाल की कहानी यहीं खत्म नहीं होती है। 16 दिसंबर को उनकी डेथ होती है। परिवार रेडियो पर वॉर की एक-एक अपडेट सुन रहा होता है। अरुण खेत्रपाल को लेकर परिवार को कुछ भी क्लेरिटी नहीं मिलती है। इसी बीच 19 दिसंबर 1971 को अरुणपाल के परिवार को एक लेटर मिलता है आर्मी की तरफ से जिसमें कहा जाता है कि अरुण क्षेत्रपाल युद्ध लड़ते हुए शहीद हो गए। परिवार नम हो गया। इस सिचुएशन के बाद अरुणपाल के परिवार में क्या हुआ इसकीडिटेल अरुण के ब्रदर मुकेश ने अपने इंटरव्यूज में बताई कि उनके पेरेंट्स चुप रहने लग गए। घर में महीनों तक शोक का माहौल रहा। अरुण की कमी कोई पूरी नहीं कर पाया।
माता-पिता की उम्र बढ़ रही थी और वह खुश नहीं नजर आ रहे थे। इसी बीच ईयर 200 आया और तब अरुण केपाल के पिता ने डिसाइड किया कि उम्र हो रही है। मैं अपने गांव जाना चाहता हूं एक बार और कुछ दिन वहां पर बिताना चाहता हूं। अरुण के पिता का जन्म पाकिस्तान के सरगोदा में हुआ था। बाद में उनके परिवार ने इंडिया में माइग्रेट किया था। बस मरने से पहले अरुण के पिता सरगोदाही जाना चाहते थे तो उन्होंने सरगोदा की टिकट कटाई। वो वहां पर गए और वहां पर दो-तीन दिन बिताए। इसी दौरान पाकिस्तान के एक ब्रिगेडियर ने उन्हें होस्ट किया और तीन दिन तक उनकी काफी देखरेख की और जाने से पहले आखिरी रात उन्होंने अरुण के पिता के लिए एक डिनर रखा था। यह ब्रिगेडियर थे ख्वाजा मोहम्मद नासिर। ख्वाजा मोहम्मद नासिर ने अरुण के पिता को पहले डिनर करवाया और डिनर के बाद उन्होंने कहा कि मैं आपसे कुछ कहना चाहता हूं। अरुण के पिता ने कहा कि बताओ। तो नासिर ने बताया कि यह बात आपके बेटे अरुण खेत्रपाल के बारे में है जो इंडिया का हीरो है। जबअरुण खेत्रपाल वॉर लड़ रहे थे शक्करगढ़ में तब सामने वाली टीम में जो सोल्जर्स थे वो मेरी टीम थी और मैं ही उस टीम को लीड कर रहा था। अपने-अपने देश के हित में हम दोनों ही अपनी ड्यूटीज निभा रहे थे। मुझे यह बताते हुए अफसोस होता है कि आपका बेटा मेरे ही हाथों मारा गया। आमने-सामने उस रात हम दोनों ही बचे थे।
हो सकता था कि उस रात मैं मर जाता क्योंकि उधर से भी अटैक्स कंटिन्यू हो रहे थे लेकिन शायद अरुण की किस्मत में लिखा था कि आज रात उसे ही जाना है। मुझे बस इसी बात के लिए आपसे माफी मांगनी थी। लेकिन जिस तरह से 21 साल कीउम्र में अरुण ने अपने आप को अपने देश के प्रति समर्पित किया उससे मुझे लगता है कि यह बहुत ही गर्व की बात है और वह भारत के असली हीरो है। अरुण क्षेत्रपाल के पिता यह कहानी सुनकर साइलेंट हो गए।
उन्हें समझ ही नहीं आया कि वह कैसे रिएक्ट करें। जिस आदमी के साथ वह पिछले तीन दिन से रह रहे थे। जिस आदमी ने उनके पाकिस्तान में इतनी अच्छी देखरेख की, वही आदमी उनके बेटे का हत्यारा था। और यह बात उसी के मुंह से सुनकर अब उस आदमी के सामने वो कैसे रिएक्ट करें? अरुण के पिता चुप रहे कुछ देर। और उसके बाद उन्होंने नासिर से एक सवाल पूछा।
उन्होंने कहा कि तुम्हें कैसे पता वो ऑफिसर अरुण क्षेत्रपाल ही था। तो नासिर ने कहा कि जिस तरह से उस रात उस ऑफिसर ने अटैक किया और जब उनका टैंक डिस्ट्रॉय हो गया तब अगली सुबह हम वहां पर पहुंचे थे। इंडियन सोल्जर्स टैंक के टुकड़े इकट्ठे कर रहे थे। तब हमने पूछा कि वो सोल्जर कौन था? तो उन्होंने बताया कि वो सोल्जर अरुण क्षेत्रपाल थे। सुकून पाने के लिए अरुण के पिता उस जगह पर गए थे। लेकिन वहां से उन्हें ऐसी खबर पता चली कि उनके अंदर कंफ्यूजिंग इमोशंस थे और भारी मन था और उसी के साथ वो इंडिया वापस लौट गए। तो यहहै कहानी सेकंड लेफ्टिनेंट शहीद परमवीर चक्र अरुण खेत्रपाल की।
अरुण खेत्रपाल पर बनी फिल्म 21 में इनिशियली वरुण धवन होने वाले थे। लेकिन कोरोना की वजह से फिल्म काफी डिले हो गई और वरुण धवन की दूसरी फिल्में भी आ गई थी। यही वजह है कि उन्हें ना चाहते हुए भी यह फिल्म छोड़नी पड़ी और फाइनली वरुण धवन की जगह इस फिल्म में लिया गया अगस्त नंदा को। वो फिल्म में सिमर भाटिया भी है जो अक्षय कुमार की भांजी है।
